गोरखपुर। मुकद्दस रमज़ान में रोज़ेदारों के लिए इफ्तार का वक्त अहम होता है। रोज़ेदार को अल्लाह के दिए हुए हलाल रिज़्क से रोज़ा इफ्तार करना होता है। इस वक्त मस्जिदों व दरगाहों में रोज़ेदार मिलकर रोज़ा खोल रहे हैं और मोहब्बत का पैग़ाम आम कर रहे हैं। ग़रीब-अमीर सब इसमें शामिल हो रहे हैं। जात-पात, धर्म का बंधन भी नहीं हैं। कोई भी आकर कर इफ्तारी में शामिल हो सकता है।
मुकद्दस रमज़ान में घरों से तैयार इफ्तारी मस्जिद व दरगाहों में पहुंचाई जा रही है। इफ्तारी पहुंचाने का मकसद है कि रमज़ान में कोई भी शख़्स शाम के वक्त भूखा न रहे, बल्कि बेहतरीन चीज़ खा सके। शहर की तकरीबन हर मस्जिद में पंद्रह से बीस घरों से तैयार इफ्तारी पहुंच रही है। अस्र की नमाज़ खत्म होते ही मस्जिदों में इफ्तारी पहुंचने का सिलसिला शुरू होता है, जो इफ्तार के आखिरी वक्त तक जारी रहता है। हर घर से चना, पकौड़ी, चिप्स, पापड़, फ़ल, खजूर, शर्बत, खीर, खस्ता, नमक पारा आदि आता है। सभी एक कतार में बैठकर इफ्तारी करते हैं। मस्जिदों में कभी-कभी इफ्तारी ज्यादा हो जाती है तो आसपास के घरों में पहुंचा दी जाती है। मुस्लिम समुदाय में दोस्तों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों व जरूरतमंदों के यहां इफ्तारी पहुंचाने व सामूहिक रोज़ा इफ्तार का रिवाज है। इस काम का केवल एक उद्देश्य है अल्लाह को राज़ी करना, मोहब्बत भाईचारगी को बढ़ाना।
कारी मोहम्मद अनस रज़वी ने बताया कि मुकद्दस रमज़ान में इफ्तार के वक्त कोई भूखा नहीं रहे इसलिए मुस्लिम समुदाय मस्जिदों, दरगाहों व घरों में इफ्तारी भेजते है। मस्जिद में कई घरों की इफ्तारी आती हैं। यह इफ्तारी स्वाद के साथ मोहब्बत व अकीदत की खुशबू भी अपने अंदर समाहित किए हुए रहती है।
हाफ़िज़ रहमत अली निज़ामी व हाफ़िज़ महमूद रज़ा क़ादरी बताते हैं कि हर रोज घरों से इफ्तार आती है। दो दर्जन से अधिक लोग मस्जिदों में इफ्तार भेजते हैं। कुछ इफ्तार में खाया जाता है कुछ सहरी के लिए बचा कर रख लिया जाता है। इफ्तार के वक्त मुसाफिर, बच्चे, बूढ़े, ग़रीब, फकीर एक दस्तरख़्वान पर इफ्तार खोलते है।