हदीस शरीफ़:
सहीहीन व सुनने तिर्मिज़ी व निसाई व सहीह इब्ने ख़ुज़ैमा में सहल बिन सअद रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है कि
रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं:
जन्नत में आठ (8) दरवाज़े हैं उनमें एक दरवाज़ा का नाम रय्यान है इस दरवाज़ा से वोही जाएंगे जो रोज़े रखते हैं।
हदीस शरीफ़:
बुखारी व मुस्लिम में अबू हुरैरह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है कि
हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
जो ईमान की वजह से और सवाब के लिए रमज़ान का रोज़ा रखेगा उसके अगले गुनाह बख़्श दिये जाएंगे और जो ईमान की वजह से और सवाब के लिए रमज़ान की रातों का क़याम करेगा (नमाज़ पढ़ेगा) उसके अगले गुनाह बख़्श दिये जाएंगे और जो ईमान की वजह से और सवाब के लिए शबे क़दर का क़याम करेगा उसके अगले गुनाह बख़्श दिये जाएंगे।
हदीस शरीफ़:
इमाम अहमद व हाकिम और तिबरानी कबीर में और इब्ने अबिद्दीनिया और बहक़ी शुऐबुल ईमान में अब्दुल्लाह बिन उमर रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा से रावी हैं कि
रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं:
रोज़ा व क़ुरान बंदा के लिए शफ़ाअत करेंगे रोज़ा कहेगा ऐ रब मैंने खाने और ख्वाहिशों से दिन में इसे रोक दिया मेरी शफ़ाअत इसके हक़ में क़ुबूल फ़रमा क़ुरान कहेगा ऐ रब मैंने इसे रात में सोने से बाज़ रखा मेरी शफ़ाअत इसके बारे में क़ुबूल कर दोनों की शफ़ाअतें क़ुबूल होंगी।
हदीस शरीफ़:
सहीहीन में अबू हुरैरह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है कि
रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं:
आदमी के हर नेक काम का बदला दस (10) से सात सौ (700) तक दिया जाता है अल्लाह तआला ने फ़रमाया मगर रोज़ा के वो मेरे लिए है और उसकी जज़ा में दूंगा बंदा अपनी ख़्वाहिश और खाने को मेरी वजह से तर्क करता है, रोज़ादार के लिए दो खुशियां हैं एक इफ़्तार के वक़्त और एक अपने रब से मिलने के वक़्त और रोज़ादार के मुंह की बू अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल के नज़दीक मुश्क से ज़्यादा पाकीज़ा है और रोज़ा सपर है, और जब किसी के रोज़ा का दिन हो तो ना बेहूदा बके और ना चीखे फिर अगर इससे कोई गाली गलौच करे या लड़ने पर आमादा हो तो कह दे मैं रोज़ादार हूं, इसी के मिस्ल इमाम मालिक व अबू दाऊद व तिरमिज़ी व निसाई व इब्ने ख़ुज़ैमा ने रिवायत की।
हदीस शरीफ़:
तिबरानी औसत में और बहक़ी इब्ने उमर रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा ने रावी के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल के नज़दीक आमाल 7 क़िस्म के हैं दो अमल वाजिब करने वाले और दो का बदला उनके बराबर है और एक अमल का बदला 10 गुना और एक अमल का मुआवज़ा 700 है और एक वो अमल है जिसका सवाब अल्लाह ही जाने वो दो जो वाजिब करने वाले हैं उनमें एक ये के जो खुदा से इस हाल में मिले के खालिस उसी की इबादत करता था किसी को उसके साथ शरीक ना करता था इसके लिए जन्नत वाजिब दूसरा ये के जो खुदा से मिला इस हाल में के उसने शिर्क किया है तो उसके लिए जहन्नम वाजिब और जिसने बुराई की उसको इसी क़दर सज़ा दी जाएगी और जिसने नेकी का इरादा किया मगर अमल न किया तो उसको एक नेकी का बदला दिया जाएगा और जिसने नेकी की उसे 10 गुना सवाब मिलेगा और जिसने अल्लाह की राह में खर्च किया उसको 700 का सवाब मिलेगा एक दिरहम का 700 दिरहम और एक दिनार का सवाब 700 दिनार और रोज़ा अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल के लिए है उसका सवाब अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल के सिवा कोई नहीं जानता।
📚 बहारे शरीअत हिस्सा 5, सफ़ह 93—94—95) पुराना एडीसन)
लेखक: मुफ़्ती मुहम्मद ज़ुल्फ़ुक़ार ख़ान नईमी
अब्दुल्लाह रज़वी क़ादरी, मुरादाबाद यू०पी० इंडिया