धार्मिक

क्या चाहते हैं आप लोग ?

सेहरी में 1 घंटे माइक पर नात तक़रीर बजाकर क्या साबित करना चाहते हैं, यही की हम बहुत बड़े बड़े वाले दीनदार हैं,
क्या आप लोग चाहते हैं कि अज़ान भी माइक से बंद हो जाये?
हालात के साथ जीना सीखो वरना यही हालात आपको किसी हालात के लायक नही छोड़ेंगे,
सबके पास मोबाइल है, अलार्म है, घड़ी है, इसके बावजूद भी आप लोग फुल आवाज़ में रात के 3 बजे लाउडस्पीकर पर चीख चीख कर लोगों से कहते हैं सेहरी कर लीजिये,
ये कहाँ का तरीका है,
जिनको रोज़ा रखना है वह आपके एलान के मोहताज नही उनका ईमान उन्हें जगा देता है,
और जिन्हें रोज़ा नही रखना है आप उनके कान में ज़ोर ज़ोर सेमाइक लगाकर रात भर चिल्लाईये उनको कोई फर्क नही पड़ेगा,
जो लोग आपके रोज़ा रमज़ान से मतलब नही रखते कम से कम उनको तो सुकून से सोने दो,
बच्चों को 6 बजे उठकर स्कूल जाना होता है,
ड्यूटी वालों को 5 बजे उठकर तैयारी करना होती है, दुकान दार को सुबह सुबह उठकर दुकान खोलना होती है, आपके रोज़े के चक्कर मे किस किस को प्रॉब्लम होती है,
क्या मजहबे इस्लाम मे इसकी इजाजत है? कि आप पडोसियों को अपने आमाल से तकलीफ दें?
जब लोग परेशान होकर इस पर आवाज़ उठाते हैं उनकी नींद खराब होती है,और वह लोग माइक बंद करने की बात करते हैं तब हम चीख चीख कर कहते हैं कि हम पर जुल्म हो रहा है,

जब रास्ते पर पड़े कांटे और पत्थर को हटाना ईमान का हिस्सा कहा गया तो क्या आप लोग दूसरों के रास्ते मे कांटे बिछाकर आप इस्लाम की शान पेश कर पाएंगे?,
बता पाएंगे कि हमारा मज़हब अमन का मज़हब है?
आज हालात ये हो गए हैं कि जब जहां जी चाहा इस्लाम का नाम लेकर मनमानियां शुरू कर दी जाती हैं,
अभी तक तो कोर्ट में 3 तलाक साबित नही कर पाए हो, माइक साबित करने में सारी मनमानी निकल जायेगी।
5 वक़्त अज़ान आप माइक से दीजिये कोई नही रोकता लेकिन मस्जिदों को आप अपनी खुवाहिशों की तकमील के तौर पर इस्तेमाल करें ये इस्लाम कभी इजाज़त नही देता।

इसलिए मैंने ने अपने पिछले आर्टिकल में कहा था कि मस्जिदों में पढ़े लिखे लोग सदर सिकरेट्री बनाये जाएं,
इन जाहिलों ने मज़हब ओ मिल्लत को बहुत नुकसान पहुंचाया है।

याद रखें,,,अगर समझदारी और दूर अंदेशी से काम न लिया गया तो इस नादानी और बेवक़ूफ़ी के भयानक नतायज सामने आने वाले हैं,
फिर न कहना कि हम बे कसूर थे, हमे कुछ पता नहीं था,
तुम्हारे जुलूस और फुल आवाज़ में सडकों पर बजने वाले
डी, जे, का जवाब उनकी तरफ से बढ़ चढ़ कर दिया जा रहा है।
ऐ दीन के गद्दार बुलाऊँ क्या अली को, जैसे विवादित कलाम बजा बजा कर तुम अली को तो न बुला सके लेकिन ओ लोग ज़रूर हमारे मस्जिद के दरवाजे और मीनार तक पहुंच गए,और उस पर अपना झंडा भी लगा चुके हैं,
फुल आवाज़ में अपने जुलूस में डी, जे, बजाकर खुद तुमने उनको यही सब करने की दावत दी है। कि वह भी आपकी तरह मज़हब के नाम पर आवारा गर्दी करें,
क्योंकि हर एक्शन का रिएक्शन होता है।
अब वह लोग आवारा गर्दियाँ कर रहे हैं तो तुम्हें तकलीफ क्यूं हो रही है।
जिस क़ौम ने दीन को छोड़ा, दीन ने भी उस क़ौम को छोड़ दिया,

आज आसमानों से मदद क्यूं नही आती है,
क्या हमारी मस्जिदें नही गिराई जा रही हैं,क्या मदरसों पर जुल्म नही हो रहा है,क्या क़ुरआन पर हमला नही हुवा?क्या हमारे मज़हबी आज़ादी के साथ खिलवाड़ नही किया जा रहा है?
इतना सब होने के बावजूद भी तुम डी, जे,पर ज़ोर ज़ोर से बजाकर चैलेन्ज करते हो कि
ऐ दीन के गद्दार बुलाऊँ क्या अली को,
मैं कहता हूँ तुम्हारे आमाल को देखकर अली तो क्या कोई जिन्नात भी नही आएगा जो तुम्हारी मदद करे,
हर जगह पीटे जाओगे,और तुम्हारे ज़ख्मों पर मरहम रखने वाला कोई नही होगा,
नौजवान नस्ल मुकम्मल बर्बाद हो चुकी है,
बजाय इसकी इस्लाह करने के ,आये दिन नए नए काम जुलूस ,फ़र्ज़ी उर्स,ढोल ,नगाड़ा,चहल्लुम,गागर, वगैरह की कसरत बढ़ती जा रही है।

दिल बदल सकते हैं जज़्बात बदल सकते हैंं।
मुल्क के फ़िक्र ओ ख्यालात बदल सकते हैं।।

दौरे मौजूद के दिन रात बदल सकते हैंं।
तुम बदल जाओ तो हालात बदल सकते हैैैैं।।

अगर हमने मुस्तक़बिल का कोई प्लान तैयार न किया तो याद रखें आने वाला वक़्त बहुत भयानक साबित होने वाला है।

लेखक: जमाल अख्तर सदफ़

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