धार्मिक

रोज़ा का बयान(क़िस्त 2)

हदीस शरीफ़:
इब्ने माजा, हज़रत अनस रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रावी कहते हैं

रमज़ान आया, तो हुज़ूर ने फ़रमाया “ये महीना आया इसमें एक रात हज़ार महीनों से बेहतर है जो इससे महरूम रहा वो हर चीज़ से महरूम रहा और उसकी ख़ैर से वही महरूम होगा जो पूरा महरूम है।

हदीस शरीफ़:
बैहक़ी इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा से रावी कहते हैं
जब रमज़ान का महीना आता रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम सब क़ैदियों को रिहा फ़रमा देते और हर साइल को अता फ़रमाते।

हदीस शरीफ़:
बैहक़ी शूऐबुल ईमान में इब्ने उमर रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा से रावी के
नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
जन्नत इब्तिदाऐ साल से साल आइंदा तक रमज़ान के लिए आरास्ता की जाती है जब रमज़ान का पहला दिन आता है तो जन्नत के पत्तों से अर्श के नीचे एक हवा हूरैन पर चलती है वो कहती हैं ऐ रब तू अपने बन्दों से हमारे लिए उनको शौहर बना जिनसे हमारी आंखें ठंडी हों और उनकी आंखें हमसे ठंडी हों।

हदीस शरीफ़:
इमाम अहमद अबू हुरैरा रज़िअल्लाहु तआला अन्ह से रावी के हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं:
रमजान की आखिर शब (रात) मैं इस उम्मत की मग़फिरत होती है अर्ज़ की गई क्या वो शबे क़दर है फरमाया नहीं व लेकिन काम करने वाले को उस वक़्त मज़दूरी पूरी दी जाती है जब काम पूरा करले।

हदीस शरीफ़:
बहक़ी शुऐबुल ईमान में सलमान फारसी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत करते हैं;
रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने शअबान के आखिर दिन में वअज़ फ़रमाया;
फ़रमाया ऐ लोगो तुम्हारे पास अज़मत वाला बरकत वाला महीना आया वो महीना जिसमें एक रात हज़ार महीनों से बेहतर है उसके रोज़े अल्लाह तआला ने फ़र्ज़ किए और उसकी रात में क़याम (यानी नमाज पढ़ना) ततव्वो (यानी सुन्नत) जो इसमें नेकी का कोई काम करे तो ऐसा है जैसे और किसी महीने में फ़र्ज़ अदा किया और इसमें जिसने फ़र्ज़ अदा किया तो ऐसा है जैसे और दिनों में 70 फ़र्ज़ अदा किए ये महीना सब्र का है और सब्र का सवाब जन्नत है और ये महीना मवासात का है और इस महीने में मोमिन का रिज़्क़ बढ़ाया जाता है जो इसमें रोज़ादार को इफ़्तार कराए उसके गुनाहों के लिए मग़फिरत है और उसकी गर्दन आग से आज़ाद कर दी जाएगी और उस अफ़्तार कराने वाले को वैसा ही सवाब मिलेगा जैसा रोज़ा रखने वाले को मिलेगा बगैर उसके अज्र में से कुछ कम हो, हमने अर्ज़ की या रसूलल्लाह हम में का हर शख़्स वो चीज़ नहीं पाता जिससे रोज़ा इफ्तार कराए हुज़ूर ने फ़रमाया अल्लाह तआला ये सवाब उस शख़्स को देगा जो एक घूंट दूध या एक खुरमा या एक घूंट पानी से रोज़ा इफ़्तार कराए और जिसने रोज़ादार को भरपेट खाना खिलाया उसको अल्लाह तआला मेरे हौज़ से पिलाएगा के कभी प्यासा ना होगा यहां तक के जन्नत में दाखिल हो जाए ये वो महीना है के इसका अव्वल रहमत है और इसका औसत मग़फिरत है और इसका आखिर जहन्नम से आज़ादी है जो अपने गुलाम पर इस महीने में तख़्फ़ीफ़ करे यानी काम में कमी करे अल्लाह तआला उसे बख़्श देगा और जहन्नम से आज़ाद फरमा देगा।
📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफ़ह 92—93)

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लेखक: मुफ़्ती मुहम्मद ज़ुल्फ़ुक़ार ख़ान नईमी
अब्दुल्लाह रज़वी क़ादरी
, मुरादाबाद यू०पी०

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