धार्मिक सामाजिक

बतला दो गुस्ताख ए नबी को गैरते मुस्लिम ज़िंदा है।

नरसिंहानंद सरस्वती को फौरन गिरफ्तार करे सरकार!

लेखक: रौशन रज़ा मिस्बाही अजहरी.
धुरकी, गढ़वा, झारखंड

हम जिस मज़हब के मानने वाले हैं जिस का मुख्य संदेश ये है की दुनियां में अमन, आश्ती, मुहब्बत की फिज़ा कायेम किया जाए। और इस्लाम के पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सलाल्लहू अलैहे वसल्लम की ये तालीम भी है की दुनियां में हिंसा और क़त्ल व और कसी भी धर्मगुरु के खेलाफ़ अप्तीजनक टिप्पणी करना हमारे विचार धारा के विरूद्ध है।
और हमारा ये देश हमेशा से गंगा जमुनी तहजीब का गहवारा रहा है। और यहां पे रहने वाले सभी धर्म के लोग एक दूसरे का आदर और सम्मान करते हैं।
मगर बद किस्मती से देश में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो मज़हब के नाम पर नफरत फैलाते हैं। कभी क़ुरआन तो कभी पैग़मबरे इस्लाम के खिलाफ गुस्ताख़ी करते हैं।और उन की इज्ज़त पे कीचड़ उछालते हैं। जीस से ना सिर्फ़ मुसलमानो की अास्था को आहत करते हैं। बल्कि वो देश के क़ानून का उलंघन भी करते हैं।
अभी कुछ दिन पहले एक पंडित नरसिंहानंद सरस्वती ने ऐसा ही घटिया बयान दिया और उस में उस ने मुसलमानों के पैग़म्बर कि शान में गंदे शब्द इस्तेमाल किया। जीस से हिंदुस्तान में रहने वाले करोड़ों मस्लामनों का कलेजा छलनी हुआ है। क्यूं की मुसलमान सब कुछ बरदाश्त कर सकता है मगर अपने नबी की शान में गुस्ताख़ी बरदाश्त नहीं कर सकता। इस लिए की नबी से मुहब्बत ही असल इमान है। इसीलिए आज 14 सौ साल बीत गए मगर आज भी हर मुसलमान की ज़ुबान पर बस यही नारा है।
जो जान मांगो तो जान देंगे, जो माल मांगो तो माल देंगे। मगर ना ये हो सकेगा हम से नबी का जाह व जलाल देंगे।
जब से उस का ये बयान आया है। देश भर के मुसलमान इस के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे और सरकार से उस के विरूद्ध कार्रवाई की मांग रहे है।
क्यूं की ये कोई छोटी बात नहीं है।बल्कि ये हमारे इमान का मसला है। और किसी क़ीमत पर मुसलमान इस से समझौता नहीं कर सकता। इस लिए हुकूमत से अपील करते हैं की ऐसे बे लगाम व्यक्ति का बाहर रहना मुलक की शांति को ख़तरा है। ऐसे इंसान को जल्द गिरिफ्तार कर के जेल की सलाखों में डाले ताकि देश में अमन व शांति बरकरार रहें।
और मुसलमानों से भी गुज़ारिश है की आप लोग भी क़ानून के दायरे में रह कर अपने अपने निजी पुलीस चौकी में जा कर उस के ख़िलाफ़ एफ आई आर दायर कराएं और सरकार से उसको कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग करें। और इस जैसे गंदी भाषा के प्रयोग करने वालों को बता दें।की

बतलादो गुस्ताख ए नबी को गैरत ए मुस्लिम ज़िंदा है।
दिन मर मिटने का जज़्बा कल भी था और आज भी है।

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