धार्मिक

बयान-ए-रमज़ान (क़िस्त 04)

मसाइले रोज़ा

मसअला- शकर वगैरह एसी चीज़ें जो मुंह में रखने से घुल जाती है,मुंह में रखी और थूक निगल गया तो रोज़ा जाता रहा,यूंही दांतों के दरमियान कोई चीज़ चने के बराबर या ज़्यादा थी उसे खा गया या कम ही थी मगर मुंह से निकाल कर फिर खा ली या दांतों से खून निकल कर हलक़ से नीचे उतरा और खून थूक से ज़्यादा या बराबर था या कम था मगर उसका मज़ा हलक़ में महसूस हुआ तो इन सब सूरतों में रोज़ा जाता रहा,और अगर कम था और मज़ा भी महसूस ना हुआ तो नहीं।
📕बहारे शरीअत जिल्द,1 हिस्सा 5 सफह 986

मसअला- मुबालग़े के साथ इस्तिंजा किया और हुक़ना रखने की जगह तक पानी पहुंच गया रोज़ा टूट गया।
📕बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 116

पाखाने के सुर्ख मक़ाम तक पानी पहुंचा तो रोज़ा टूट जायेगा लिहाज़ा बड़ा इस्तिंजा करने में इस बात का ख़्याल रखें कि फ़ारिग होने के बाद जब मक़ाम धुलना हो तो चंद सिकंड के लिये सांस को रोक लिया जाये ताकि मक़ाम बंद हो जाये अब जल्दी जल्दी धोकर पानी पूरी तरह से पोंछ लिया जाये क्योंकि अगर पानी के क़तरे वहां रह गये और खड़े होने में वो क़तरे अंदर चले गये तो रोज़ा टूट जायेगा,इसीलिए आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि रमज़ान भर बैतुल खला एक कपड़ा साथ लेकर जायें जिससे कि आज़ा के पानी को खड़े होने से पहले सुखा सकें।

मसअला- औरत का बोसा लिया मगर इंज़ाल ना हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा युंही अगर औरत सामने है और जिमअ के ख्याल से ही इंज़ाल हो गया तब भी रोज़ा नहीं टूटा।
📕बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 113

मसअला- औरत का बोसा लिया या छुवा या मुबाशिरत की या ग़ले लगाया औरत इंज़ाल हो गया तो रोज़ा जाता रहा औरत ने मर्द को छुआ और मर्द को इंज़ाल हो गया रोज़ा ना टूटा और मर्द ने औरत को कपड़े के ऊपर से छुआ और उसके बदन की गर्मी महसूस ना हुई तो अगर इंज़ाल हो भी गया तब भी रोज़ा ना टूटा।
📕बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 117

मसअला- औरत ने मर्द को सोहबत करने पर मजबूर किया तो औरत पर क़ज़ा के साथ कफ्फारह भी वाजिब है मर्द पर सिर्फ क़ज़ा।
📕बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 122

मसअला-_औरत को मुअय्यन तारीख पर हैज़ आता था आज हैज़ आने का दिन था उसने कस्दन रोज़ा तोड़ दिया मगर हैज़ ना आया तो कफ्फारह नहीं सिर्फ क़ज़ा करेगी युंही सुबह होने के बाद पाक हुई और नियत कर ली तो आज का रोज़ा नहीं होगा।
📕बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 123/119

मसअला- मर्द नें पैशाब के सुराख में पानी या तेल डाला तो रोज़ा ना गाय,और अगर औरत नें शरमगाह में टपकाया तो जाता रहा।
📕फतावा हिन्दिया जिल्द,1 सफह 204

मसअला- रमज़ान के दिनों में ऐसा काम करना जायज़ नहीं जिससे रोज़ा ना रख सके बल्कि हुक्म ये है कि अगर रोज़ा रखेगा और कमज़ोरी महसूस होगी और खड़े होकर नमाज़ ना पढ़ सकेगा तो भी रोज़ा रखे और बैठ कर नमाज़ पढ़े लेकिन ये तब ही है जब कि बिल्कुल ही खड़ा ना हो सके वरना बैठकर नमाज़ ना होगी।
📕बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 126

मगर मआज़ अल्लाह आज की अवाम का ख्याल तो ये है कि रमज़ान इबादत के लिए नहीं बल्कि कमाने के लिए आता है,ऐसा लगता है कि रमज़ानुल मुबारक के रोज़े फर्ज़ नहीं हुई है बल्कि रमज़ान में काम फर्ज़ हुआ है, 10 घंटा काम करने वाला 12 घंटे काम करता है 12 घंटे वाला 16 घंटा और कुछ तो रातो दिन पैसा कमाने में जुट जाते हैं,और रोज़ा भी नहीं रखते, जबकि हुक्म तो ये है कि नान-बाई मजदूर और हर मेहनत कश आदमी सिर्फ आधे दिन ही काम करे और आधे दिन आराम करे ताकि रोज़ा रख सके,मगर मआज़ अल्लाह सुम्मा मआज़ अल्लाह आज के नाम निहाद मुसलमानो को ना तो रोज़े की खबर है और ना नमाज़ की फिक्र दिन भर उसी तरह खाना पीना जैसे कि कोई बात ही नहीं और उस पर तुर्रा ये कि हम मुसलमान हैं जन्नती हैं अगर दीन पर बात आई तो जान दे देंगे सर कटा देंगे अरे जिन कमबख़्तों से दिन भर भूखा प्यासा नहीं रहा जाता वो गर्दन क्या खाक कटायेंगे,मौला ऐसों को हिदायत अता फरमाये।

والله تعالیٰ اعلم بالصواب

लेखक: क़ारी मुजीबुर्रह़मान क़ादरी शाहसलीमपुरी– बहराइच शरीफ यू०पी०
मदरसा ह़नफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू०पी०

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