गोरखपुर

शोध निष्कर्षों का समाज के बीच पहुँचना ज़रूरी: प्रो० आर० इंदिरा

ऐसे शोध को बढ़ावा देना होगा जो वास्तविक जीवन में उपयोगी हो और समाज के लिए लाभकर हो। शोध के लिए शोधार्थी में जुनून होना चाहिए। वर्तमान में अनेक नए शोध कौशल का विकास हो रहा है। परंपरागत आधारों से आगे बढ़कर ज्ञान के नए मार्ग पर चलने की आवश्यकता है। शोध में निरंतर नए टूल्स एवं टेक्निक्स का प्रयोग बढ़ रहा है। ट्रायंगुलेशन मेथड्स का प्रयोग बढ़ा है। इस सभी प्रविधियों के प्रयोग से शोध को अधिक सार्थक बनाया जा सकता है। अंततः शोध के निष्कर्षों का समाज के बीच पहुँचना ज़रूरी है, जिससे उसका व्यवहारिक उपयोग हो सके।

उक्त बातें दी.द.उ. गोरखपुर विश्वविद्यालय के यूजीसी एचआरडीसी एवं समाजशास्त्र विभाग के सँयुक्त तत्वावधान में ‘रीसेंट ट्रेंड्स इन रिसर्च मेथोडोलॉजी’ विषय पर आयोजित किए गए सात दिवसीय शार्ट टर्म कोर्स के समापन सत्र को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए इंडियन सोसियोलॉजिकल सोसाइटी की पूर्व अध्यक्ष प्रो. आर. इंदिरा ने अपने उद्बोधन में कहा।

कार्यक्रम समन्वयक एवं अध्यक्ष समाजशास्त्र विभाग प्रो. संगीता पाण्डेय ने सात दिवसीय शार्ट टर्म कोर्स की रिपोर्ट को प्रस्तुत किया और कहा कि इस कोर्स में देश के 08 राज्यों के विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के शिक्षक प्रतिभाग कर रहे थे। कोर्स के विभिन्न सत्रों में अन्तर्विषयक शोध प्रविधि से जुड़े विविध आयामों पर चर्चा कराई गई और इसमें देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से अनेक विद्वानों को आमंत्रित किया गया।
कार्यक्रम में स्वागत भाषण देते हुए यूजीसी-एचआरडीसी के निदेशक प्रो. रजनी कान्त पाण्डेय ने कहा कि शोध कराना भी शिक्षक का कर्तव्य है, इसलिए उसे इसके नवीन आयामों से परिचित होना चाहिए। इसके साथ शोध में नैतिकता का समावेश भी आवश्यक है। शिक्षकों को निरंतर अपने ज्ञान में संवर्धन करते रहना चाहिए।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. मनीष पाण्डेय एवं आभार ज्ञापन डॉ. पवन कुमार ने किया।

इस दौरान समाजशास्त्र विभाग के प्रो. विनोद कुमार श्रीवास्तव, प्रो. कीर्ति पांडेय, प्रो. सुभी धुसिया, प्रो. अंजू, डॉ. अनुराग द्विवेदी, डॉ पवन कुमार, दीपेंद्र मोहन सिंह, प्रकाश प्रियदर्शी, डॉ राकेश प्रताप सिंह, डॉ कुशहर प्रसाद, डॉ प्रवीण मिश्रा सहित देश के कई महाविद्यालयों एव विश्वविद्यालय से जुड़े लगभग 50 शिक्षकों ने प्रतिभाग किया।

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