20, रकअत पर सहाबा का इजमा है
हदीस शरीफ़,
हजरत अबू हुरैरह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने कहा के रसूले करीम अलैहिस्सलातू व तस्लीम ने फरमाया के
जो शख़्स सिदक़े दिल और एतेक़ादे सही के साथ रमज़ान में क़याम करे यानी तरावीह पढ़े तो उसके अगले गुनाह बख्श दिए जाते हैं (मुस्लिम शरीफ़, जिल्द 1, सफ़ह 259, मिश्कात शरीफ़, सफ़ह 114)
हदीस शरीफ़,
हजरत साइब बिन यज़ीद रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने फ़रमाया हम सहाबा ए किराम हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रज़िअल्लाहू तआला अन्ह के ज़माना में 20 रकअत तरावीह और वित्र पढ़ते थे (बहक़ी जिल्द 2 सफ़ह 699)
इस हदीस शरीफ़ के बारे में मिरक़ात शरह मिश्कात जिल्द 2, सफ़ह 175, में है
इमाम नबवी ने ख़ुलासा में फ़रमाया
के इस रिवायत की अस्नाद (सनदें) सही है
हदीस शरीफ़,
हज़रत यज़ीद बिन रोमान रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने फ़रमाया के हज़रते उमर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह के ज़माने में लोग 23 रकअत पढ़ते थे यानी 20 रकअत तरावीह और 3 रकअत वित्र (इमाम मालिक जिल्द 1 सफ़ह 115)
मलिकुल उल्मा हज़रत अल्लामा अलाउद्दीन अबू बकर बिन मसऊद कासानी रहमतुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फ़रमाते हैं के
मरवी है के हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने रमज़ान के महीना में सहाबा ए किराम को हज़रत उबी बिन कअब रज़िअल्लाहू तआला अन्ह पर जमा फरमाया तो वो रोज़ाना साहबा ए किराम को 20 रकअत पढ़ाते थे और उनमें से किसी ने मुख़ालिफ़त नहीं की तो 20 रकअत पर सहाबा का इज्मा हो गया (बदायउस्सनाएअ जिल्द 1 सफ़ह 288)
और उम्दातुल क़ारी शरहे बुख़ारी जिल्द 5 सफ़ह 355 में है
अल्लामा इब्ने अब्दुलबर ने फ़रमाया के 20 रकअत तरावीह जम्हूरे उल्मा का क़ौल है,
उल्मा ए कूफा इमाम शाफ़ई और अक्सर फुक़्हा यही फ़रमाते हैं और यही सही है,
अबी बिन कअब से मनक़ूल है इसमें सहाबा का इख़्तिलाफ़ नहीं,
और अल्लामा इब्ने हजर ने फ़रमाया
सहाबा ए किराम का इस बात पर इज्मा है के तरावीह 20 रकअत हैं,
और मराक़ीउलफ़लाह शरह नूरुल ईज़ाह मैं है तरावीह 20 रकअत है इसलिए के इस पर सहाबा ए किराम का इज्मा है और मौलाना अब्दुल हई साहब फिरंगी महली उम्दातुर्रिआयह हाशियह शरह वक़ायह जिल्द 1 सफ़ह 175 में लिखते हैं,
हज़रत उमर हज़रत उस्मान और हज़रत अली रज़िअल्लाहू तआला अन्हुम के ज़माने में और उनके बाद भी सहाबा ए किराम का 20 रकअत तरावीह पर एहतेमाम साबित है,
इस मज़मून की हदीस को इमाम मालिक, इब्ने सअद, और इमाम बहक़ी वगैरहुम ने तख़रीज की हैं
और मौलाना अली क़ारी अलैहिर्रहमातुल्लाहुल बारी तहरीर फ़रमाते हैं:
सहाबा ए किराम का इस बात पर इज्मा है के तरावीह 20 रकअत हैं (मिरक़ात जिल्द 3, सफ़ह 194)
अहले हदीस यानी ग़ैर मुक़ल्लिद वहाबी जो 20 रकअत तरावीह का इन्कार करते हैं वो इन आहादीसे मुक़द्दसा और बुज़ुर्गों के अक़वाल से सबक़ हासिल करें और मुसलमानों को 8, रकअत तरावीह बताकर गुमराह करने की कोशिश ना करें वरना जहन्नम में जाने के लिए तैयार रहें!
लेखक: मुफ़्ती मुहम्मद ज़ुल्फ़ुक़ार ख़ान नईमी रज़वी
अब्दुल्लाह रज़वी क़ादरी
मुरादाबाद, यूपी भारत