धार्मिक

रमज़ान के फज़ाइल व मसाइल (4)

हदीस: नसई व इब्ने खुजैमा व हाकिम अबू उमामा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रावी अर्ज की या रसूलुल्लाह मुझे किसी अमल का हुक्म फरमाये ! इरशाद फ़रमाया: रोजे को लाजिम लो कि इसके बराबर कोई अमल नही ! उन्होंने फिर वही अर्ज की ! वही जवाब इरशाद हुआ !

हदीस: बुखारी व मुस्लिम व तिर्मिज़ी व नसई अबू सईद रदियल्लाहु तआला अन्ह से रावी है हुज़ूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो बन्दा अल्लाह की राह में एक रोजा रखे अल्लाह तआला उसके मुँह को दोजख से सत्तर बरस की राह दूर फ़रमा देगा !

और इसी के मिस्ल नसई तिर्मिज़ी व इने माजा अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रावी और तबरानी अबू दरदा और तिर्मिजी अबू उमामा रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत करते हैं फ़रमाया कि उसके और जहन्नम के दरमियान अल्लाह तआला इतनी बड़ी खन्दक कर देगा जितना आसमान व जमीन के दरमियान फासिला है !

और तबरानी की रिवायत
अम्र इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हु से है कि दोजख उससे सौ बरस की राह दूर होगी और अबू यअला की रिवायत मआज इब्ने अनस रज़ियल्लाहु तआला अन्हो से है कि रमजान के दिनों के अलावा अल्लाह तआला की राह में रोजा रखा तो तेज घोड़े की रफ्तार से सौ बरस की मसाफ़त(दूरी) पर जहन्नम से दूर होगा !

हदीस: बैहकी अब्दुल्लाह इब्ने अम्र इब्ने आस रज़ियल्लाह तआला अन्हुमा से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं रोज़ादार की दुआ इफ्तार के वक्त में रद्द नहीं की जाती हैं !
(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,71)

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