इन का नाम है नासिरा अख्तर, यह गुड़गाम से दूर कश्मीर में कुलगाम की है। बाजी ने केवल दसवी तक पढ़ाई की है लेकिन इन्होंने एक ऐसा कारनामा कर डाला जिसके पीछे दुनिया के सारे वैज्ञानिक लगे हुए थे। बाजी ने पाव भाजी खाकर जैविक विधि से प्लास्टिक कचरे को राख में बदलने का कारनामा किया। उन्होंने एक ऐसी जड़ी बूटी का पेस्ट तैयार किया जिससे प्लास्टिक में कचरे , पॉलीथिन आदि को राख में बदला जा सकता है। इस प्रक्रिया से कोई प्रदूषण नहीं होता।

इन की इस खोज की कहानी दिलचस्प है उन्होनें कहीं पढ़ लिया था कि एक दिन दुनिया खत्म हो जाएगी मगर प्लास्टिक सदियों तक रहेगा तबसे इन्होंने प्लास्टिक को काट के गेरके खत्म करने का नवाचार शुरू कर दिया और लगातार 9 साल की मेहनत के बाद अपने मकसद में कामयाब हो गईं,दुनिया के बड़े बड़े जर्नल्स में इनके बारे में छपा तो एक निजी कंपनी ने इनसे इनका फार्मूला खरीदकर पेटेंट करवा लिया,इसके बदले इनको लाखों की रकम मिली,करार होने के कारण अब ये उस फार्मूले आदि के बारे में नहीं बता सकतीं मगर इनके इस महान काम के बदले इनको देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने सम्मानित किया है तथा अत्यंत गौरवशाली नारीशक्ति पुरुस्कार भी इनको इसी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर दिया गया है।दो बेटियों की मां नासिरा के पति का तीन साल पहले कैंसर से निधन हो चुका है उनका कहना है अब वे अन्य खोज में जुटी हुई हैं।
नासिरा अख्तर जी को उनकी इस बेहद महत्वपूर्ण खोज के लिए बहुत बहुत बधाई!