गोरखपुर। ग़ौसे आज़म हज़रत सैयदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी अलैहिर्रहमां को शिद्दत से याद करते हुए सोमवार देर रात अहमदनगर चक्शा हुसैन में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा व लंगर-ए-ग़ौसिया का आयोजन हुआ। आगाज़ क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत से हुई। नात व मनकबत कारी आबिद अली ने पेश की। मरहूम नाज़िर अली खान की रूह को इसाले सवाब किया गया।
मुख्य अतिथि मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कहा कि दीन का इल्म हासिल कर दीन-ए-इस्लाम के साथ रिश्ता मजबूत किया जाए। दीनी तालीम हासिल करने पर जोर दीजिए। दुनियावी तालीम भी हासिल कीजिए। हलाल कमाई से खुद की और बच्चों की परवरिश कीजिए।हालात से मायूस होने के बजाय जरूरी है कि उसे बदला जाए। ये तभी संभव है जब मुस्लिम कौम के नौज़वान आगे आएं और अपने किरदार को बदलें। मुसलमानों को चाहिए कि वह अपनी ज़िंदगी पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नतों पर चलकर गुजारें।
अध्यक्षता करते हुए शाकिर अली सलमानी ने गुस्ताख़े रसूल वसीम रिज़वी व यति नरसिंहानंद की अलोचना की। कहा कि हिन्दुस्तान का मुसलमान बाइ चांस नहीं बाइ च्वाइस हिन्दुस्तानी है। हमारे खून का कतरा-कतरा हिन्दुस्तान के जर्रे-जर्रे में शामिल है। हम इसी मिट्टी से बने। इंशाअल्लाह इसी मिट्टी में दफ़न होंगे। कयामत में इसी मिट्टी से फिर उठाये जायेंगे। हमें न डराया जाए, हम हिंदू और मुसलमान भारत की दो आंखें हैं रूह जैसे जिस्म से जुदा हो जाती है तो जिस्म बेकार हो जाता है इसी तरह से हिंदू और मुसलमान रूह और जिस्म की तरह है दोनों एक दूसरे के बगैर अधूरे है हमारे बुजुर्गों ने हिन्दुस्तान में पूरी ज़िदंगी गुजारी है, यहां मस्जिदें, खानकाहें, मदरसे बनाये हैं। उस हिन्दुस्तान को भला हम कैसे छोड़ सकते हैं। हिन्दुस्तान व यहां के आईन (संविधान) से हमें बेपनाह मोहब्बत है। इस पर हम कभी कोई आंच नहीं आने देंगे। हमने बड़े जालिम हाकिमों का भी दौर देखा है। न ही दीन-ए-इस्लाम मिट सकता है और न ही कलमा पढ़ने वाले मिट सकते हैं। कोई भी मसला हो कोई भी नबी की शान में गुस्ताखी करें तो फैसला हमारे मस्जिदों के इमाम साहब जो हमें नमाज अदा कर आते हैं उनकी अगुवाई वह कहेंगे घर में रहो तो हम घर में रहेंगे वह कहेंगे बाहर निकलो तो हम बाहर निकलेंगे वह कहेंगे मजमत करो निंदा करो तो निंदा करेंगे गुस्ताख ए रसूल कि जो नबी की शान में अपमान करेगा उसके खिलाफ जबान खोली जाएगी लेकिन जब हिन्दुस्तान की आजादी का मसला आया था तो हम पहले हिन्दुस्तानी मुसलमान थे और हैं मुल्क में अमन कायम रहे यही हम सबकी दुआ है। हम पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में हम बदजुबानी व गुस्ताख़ी बर्दाश्त नहीं करेंगे। सरकार से हमारी मांग है कि तहफ्फुज-ए-नामूस-ए-रिसालत बिल संसद में पारित करवाया जाए।
विशिष्ट वक्ता मौलाना शमसुद्दीन निज़ामी ने कहा कि हिन्दुस्तान में दीन-ए-इस्लाम की हर प्रक्रिया को बिना किसी बाधा के पूरा किया जा सकता है। दीन-ए-इस्लाम के तहत सामाजिक आंदोलन के लिए हिन्दुस्तान की ज़मीन पर किए गए औलिया किराम के प्रयोगों का यहां के समाज ने खुले दिल से स्वीकार किया और आज पूरी दुनिया हिन्दुस्तान में औलिया किराम के कामयाब प्रयोगों में अमन की राह तलाश रही है।
अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमन, शांति व भाईचारे की दुआ मांगी गई। संचालन हाफ़िज़ अज़ीम अहमद नूरी ने किया। नव व्यापार मंडल अध्यक्ष शमशाद खान भोला, वाजिद अली, सोनू खान जलसा संयोजक की भूमिका में रहे।
