धार्मिक

जीवन और मृत्यु किस के हाथ मे?

अल्लाह ने क़ुरान में फरमाया: जिसने पैदा किया मृत्यु और जीवन को, ताकि तुम्हारी परीक्षा करे कि तुममें कर्म की दृष्टि से कौन सबसे अच्छा है। वह प्रभुत्वशाली, बड़ा क्षमाशील है। – (सूरत अल मुल्क 67:2)

मतलब यह दुनिया तो परीक्षा एवं कर्म की जगह है ,और असल जिंदगी तो आख़िरत की है। तो जो यहाँ जैसे कार्य करेगा उस को वैसा फल मरने के बाद मिलेगा।

अतः अच्छे बुरे कर्मो का चयन करना और उन्हें कर गुज़रना अल्लाह ने बंदे के ऊपर छोड़ दिया है। यानि उसके पास free will/चुनाव करने का अधिकार है।

और सूरह बक़रह अयाह 256 में है

दीन में किसी तरह की जबरदस्ती नहीं…. “

मतलब अगर अल्लाह चाहता तो वो किसी को दुनिया मे अच्छा बुरा चयन करने का अधिकार ही नही देता, फिर सब अच्छे ही काम करते चाहते हुए भी और ना चाहते हुए भी। फिर इस हालत में ज़िंदगी का इम्तहान होने का कोई मतलब नही रहता।

इसलिए जिस तरह से जब कोई व्यक्ति कुछ गलत करने का इरादा कर लेता है और कुछ गलत करने लगता है तो अल्लाह उसे कोई चमत्कारी तरीक़े से नही रोकता।

मिसाल के तौर पर किसी ने किसी का मर्डर करने का इरादा किया और गोली चला दी, अब वो गोली उसे लगेगी और दुनिया के कानून के हिसाब से गोली लगने से जो होता है वह होगा।

अल्लाह ऐसा नही करता के गोली को चलने ही ना दे । या वो इधर उधर चली जाए ,या लगे ही नही। क्योंकि अगर ऐसा होता तो फिर इसका मतलब यह हुआ के आदमी जो इरादा कर रहा है उसका उसे करने का अधिकार ही नही है । तो जब अधिकार ही नही है तो फिर ये कोई परीक्षा हुई ही नही।

अतः यकीनन दुनिया का हर काम अल्लाह की अनुमति से ही होता है, और अल्लाह ने दुनिया मे मनुष्य को यह अनुमति दी है कि वह अपनी मर्ज़ी अनुसार चीज़ों का इस्तेमाल कर अपना उद्देश्य पूरा करे फिर चाहे वह किसी चीज़ का इस्तेमाल करते हुए किसी को नुकसान पोहचाये या फायदा। जान बचाये या जान ले ताकि आख़िरत में उसे बदला और उसकी सज़ा या इनाम दिया जा सके।

क्योंकि यकीनन असल जिंदगी तो आख़िरत की ही है

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