सोशल मीडिया पर की गई अपीलों और दीपक बनाने वाले गरीब कुम्हारों के प्रति संवेदनशीलता का भाव होते हुए भी दीपावली पर मिट्टी के दीपकों की बिक्री वैसी होती नही दिखी जैसी होती थी।कारण साफ है कि दीपकों में दीप प्रज्ज्वलन के लिए पड़ने वाला सरसों यानी कडुये तेल का भाव आसमान छू रहा है।
सरसों का तेल 180 से 190 रुपये किलो बाजारों में है। जबकि पिछली दीपावली को 110 रुपए और 2019 में मात्र 70-80 रुपये किलो था। अमूमन दिवाली पर दिए सरसों के तेल के ही जलते है। 100 दीपक कोई अपनी मुंडेर या द्वार पर जलाना चाहे तो उसके लिये कम से कम एक किलो सरसों का तेल और 20 रुपयों की रुई की बाती चाहिए। मिट्टी के 100 दीपक जो कुम्हारों के हाथों बनते हैं उनका भाव सस्ते से सस्ता 1 रुपया प्रति दिवालिया बाजार में था। जबकि सांचे या मशीनों से बने सजावटी दीपक 150 से 250 रुपये सैकड़ा बिक रहे थे।
बाजारों में दोनों तरह के दीपकों की दुकानें सड़क किनारे दर्जनों की संख्या में सजी देखी गईं। मगर इनके यहां भीड़ कम ही थी और लोग शगुन के लिए 10-15 ही दिए और मानिक यानी बड़ा दिया खरीद रहे थे। एक मानिक 5 रुपये का सादा वाला था और सजावटी 15-रुपये का था। जबकि मिट्टी के दीपकों की तुलना में मोम बत्ती 150 से 200 रुपये किलो तक भाव पर होने से लोग मोमबत्ती खरीदना ज्यादा मुनासिब मान रहे थे। क्योंकि छोटे साइज की मोम बत्ती एक किलो में 80-100 चढ़ रही थी। 10 मोमबत्ती वाले पैकिट 10-15 रुपये तक के दीपावली पर जलाने को बाजारों में उपलब्ध थे। सस्ती पड़ने और तेल- बाती डालने की मेहनत से बचने के लिए मोम बत्ती लोगों को ज्यादा लुभा रही थी।
बाजारों में भीड़ तो दो दिनों से काफी देखी गयी मगर बिक्री हर चीज की हल्की ही थी। दीपक बनाने वाले एक कुम्भकार ने बताया कि उसकी बनाई दिवलियाँ अभी तक आधी भी नही बिकी हैं। वह भी वाकिफ था कि सरसों के तेल की मंहगाई उसकी मेहनत पर पानी फेर रही है।