हिन्दुस्तान में अंग्रेज आये और अपनी मक्कारी से यहां के हुक्मरां बन गए। सबसे पहले अंग्रेजों के ख़िलाफ़ अल्लामा फज्ले हक़ खैराबादी ने दिल्ली की जामा मस्जिद से जिहाद के लिए फतवा दिया। पूरे मुल्क के हिंदू-मुसलमान तन, मन और धन से अंग्रेजों के ख़िलाफ़ सरफ़रोशी का जज़्बा लिए मैदान में कूद पड़े। लाल किले पर सात हजार सुन्नी उलमा-ए-किराम को अंग्रेजों ने सरे आम फांसी दी। उलमा-ए-अहले सुन्नत ने अपने ख़ून से हिन्दुस्तान को सींचा और लोगों को गुलामी के जंजीरों से आज़ाद होने का जज़्बा पैदा किया। हज़रत सुल्तान टीपू हिन्दुस्तान के पहले मुजाहिद हैं जिन्होंने अंग्रेजों के ख़िलाफ़ जिहाद किया और सबसे पहले तसव्वुरे आज़ादी का जेहन दिया।
हज़रत मौलाना हिदायत रसूल जो आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ां अलैहिर्रहमां के शागिर्दे खास थे। इन्हें भी अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थी। बहुत बड़े तकरीर दां थे अंग्रेजों के ख़िलाफ़ पूरी ज़िंदगी बोलते रहे। तकरीर करने में इन्हें महारत हासिल थी। आला हज़रत इनके बारे में फरमाते थे कि अगर मुझ जैसा एक क़लम का धनी और हिदायत रसूल जैसा एक और तकरीर करने वाला मिल जाता तो हम दोनों मिलकर ही अंग्रेजों को हिन्दुस्तान से निकाल देते।
हज़रत सैयद किफायत अली काफी मुरादाबादी अलैहिर्रहमां, हज़रत शाह वलीउल्लाह अलैहिर्रहमां, हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ अलैहिर्रहमां, नवाब सिराजुद्दौला, मुफ्ती किफायत उल्ला कैफी अलैहिर्रहमां, मुफ्ती इनायत अहमद अलैहिर्रहमां, हाफ़िज़ रहमत खां अलैहिर्रहमां, अल्लामा मौलाना रज़ा अली ख़ां अलैहिर्रहमां, बेगम हज़रत महल, मौलाना अब्दुल हक खैराबादी अलैहिर्रहमां, मौलाना मुफ्ती नकी अली ख़ां अलैहिर्रहमां व लाखों मुसलमानों ने मुल्क के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी, यह सभी वतन से बेपनाह मुहब्बत रखते थे। जंगे आज़ादी में उलमा-ए- अहले सुन्नत ने अहम किरदार निभाया। आला हज़रत के दादा अल्लामा रज़ा अली ख़ां के सर पर अंग्रेजो ने 600 रुपये का इनाम रखा था। जुर्म क्या था जब 1857 में गदर का मामला आया था तो ये भी उसमें शामिल थे। आला हज़रत के वालिद दिन मे लोगों को पढ़ाते थे और रात में घोड़े खरीद-खरीद कर मुजाहिदों मे तकसीम करते थे। बख्त खां जब बरेली पहुंचे तो सिर्फ बरेली से चौदह हजार मुसलमान जंगे आज़ादी के लिये निकले, ये उलमा-ए-अहले सुन्नत का क़िरदार था।
जंगे आज़ादी में हज़रत अल्लामा फज्ले हक़ खैराबादी का नाम सबसे पहले आता है उसके बाद हज़रत सैयद किफायत अली काफी मुरादाबादी हैं ये अपने वक्त के बहुत बडे़ जंगे आज़ादी के मुजाहिद थे। मुफ्ती सदरूद्दी देहलवी जंगे आज़ादी के वह उलमा हैं जिन्होंने लोगों में आज़ादी का जज़्बा पैदा किया और एक नई रूह फूंकी। इन्हीं में अल्लामा अहमदुल्लाह शाह मद्रासी जो एक बहुत बडे़ वलिये कामिल और एक मज्जूब बुजुर्ग थे जब अल्लामा फज्ले हक़ खैराबादी ने अंग्रेजों के ख़िलाफ़ जिहाद का फतवा दिया तो उस फतवे पर इस बुजुर्ग के भी दस्तख़त थे । इस बुजुर्ग ने पूरे हिन्दुस्तान मे घूम-घूम कर लोगों में आज़ादी का एक माहौल पैदा किया।
मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र ने उलमा-ए-किराम को बुलाया और मशविरा तलब किया कि अंग्रेजों के ख़िलाफ़ जंग क्या मायने रखती है क्या इनके इक्तेदार को तसलीम किया जाये या फिर इनसे जंग की जाये। चुनांचे हज़रत अल्लामा फज्ले हक़ खैराबादी ने अंग्रेजों के ख़िलाफ़ जिहाद का फतवा दिया और कहा अंग्रेजों से जिहाद करना जायज़ है। जब आपने फतवा दिया तो पूरे हिन्दुस्तान में कोहराम मच गया। फतवा देने के कई महीने बाद अंग्रेजों ने आपको गिरफ़्तार किया अदालत में गये । जज ने पूछा क्या ये फतवा आपका है। आपने बड़े दिलेराना अंदाज मे फरमाया हां ये मेरा फतवा है। आप पर मुकदमा चला आपने ने कोई वकील नहीं रखा बल्कि ख़ुद अपने मुकदमें को लड़ते और ऐसी जिरह और ऐसी बहस करते की अंग्रेजों को लगने लगा अगर कुछ दिन और मुकदमा चला तो अल्लामा फज्ले हक़ हमें देश से निकालकर रहेंगे और हमारे वजूद को हिन्दुस्तान में गलत साबित करके रहेंगे। चुनांचे अग्रेजों ने कहा चूंकि आपने हमारे ख़िलाफ़ जंग का फतवा दिया है और हमारे इक्तेदार को तसलीम नहीं किया इस पर हम आपको काले पानी की सज़ा देते हैं। चुनांचे आपको काला पानी अंडमान में भेज दिया गया। सन् 1861 मे आपका वहीं इंतकाल हुआ और वहीं मजार शरीफ है। ऐसे ही बख्त खां जो बहादुर शाह ज़फ़र के सेना के सालार-ए-आज़म थे बहुत बड़े सिपहसालार थे और बहुत बड़े जंगे आज़ादी के हीरो थे। मुफ्ती सदरूद्दीन देहलवी को भी अंग्रेजो ने काला पानी की सजा सुनाई थी।
अभी बाकी है……