गोरखपुर

पूरी दुनिया में आला हज़रत की शख़्सियत पर रिसर्च हो रहा है : मौलाना तफज़्ज़ुल

गोरखपुर। आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां अलैहिर्रहमां के उर्स-ए-पाक मनाने का सिलसिला जारी है। अक्सा मस्जिद शाहिदाबाद हुमायूंपुर उत्तरी में उर्स-ए-आला हज़रत मनाया गया। फातिहा व दुआ ख़्वानी की गई।

मस्जिद के इमाम मौलाना तफज़्ज़ुल हुसैन रज़वी ने कहा कि आला हज़रत 10 शव्वाल 1272 हिजरी यानी 14 जून 1856 को बरेली शहर में पैदा हुए। आप बहुत सारी खूबियों के मालिक थे। आप भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे मशहूर शख़्सियतों में से हैं। शायद ही कोई जगह ऐसी हो जहाँ मुसलमान आबाद हों और आपका जिक्र न हो। एक बात जो सिर्फ आपकी ही जात को हासिल है कि 200 साल में किसी भी आलिम-ए-दीन की हयात और ख़िदमात पर इतनी किताबे नहीं लिखी गई जितनी किताबें आपकी ज़िन्दगी पर लिखी गई। जिनकी तादाद तक़रीबन 528 से ज्यादा है। जो अरबी, फ़ारसी, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, पंजाबी, पश्तो, बलूची, कन्नड़, तेलगू, सिंधी, बंगला आदि भाषाओं में है। दुनिया के कमोबेश 15 से ज्यादा विश्वविद्यालय जिनमें अमेरिका, मिस्र, सूडान, भारत, पाकितान, बांग्लादेश से आपकी जात पर पीएचडी और एमफिल की 35 से ज्यादा डिग्रियां मुकम्मल हो चुकी हैं।

नायब इमाम हाफ़िज़ अज़ीम अहमद नूरी ने कहा कि आला हज़रत ने 56 से ज्यादा विषयों पर 1000 से ज्यादा किताबें लिखीं। आपका इल्मी दबदबा इतना था कि उस वक़्त के क़ाज़ी-ए-मक्का, मुफ़्ती-ए-मक्का, इमाम-ए-हरम, मुफ़्ती-ए-मदीना, क़ाज़ी-ए-मदीना, उलमा-ए-सीरिया, इराक, मिस्र आपकी तारीफ़ करते थे। अल्लामा डॉक्टर इक़बाल ने आला हज़रत के बारे में कहा था कि आला हज़रत अपने वक़्त के इमाम अबू हनीफ़ा थे।

अंत में सलातो सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई। उर्स में हाफ़िज़ मो. आरिफ, मौलाना शाबान, मौलाना इम्तियाज़ अहमद, बरकत अली, मुर्तजा, मुहर्रम अली, मो. हम्माद रज़ा, सुब्हान मो. सनी आदि ने शिरकत की।

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