खाने को नहीं निवाले,भूखे पेट रह रहे हैं घर वाले
झोपड़ी में पड़ा सांसें गिन रहा निसार, शाईनिंग इण्डिया की पोल खोलता उसका आशियाना
हरदोई।’ (हमारी आवाज़)
देने वाले किसी को ग़रीबी न दे,मौत दे-दे मगर बदनसीबी न दे ‘ कैंसर की बीमारी से जूझ रहे एक कुनबे के मुखिया को उसकी बदनसीबी ने उसे ज़िंदगी से नफ़रत करने की सीख देते हुए उसे मौत को गले लगाने के लिए मजबूर कर दिया। तिल-तिल कर जी रहें उस ग़रीब ने मौत की भीख मांगते हुए लखनऊ और दिल्ली तक अपनी अर्ज़ी भेजी है।
बात बीच शहर की है। मोहल्ला नुमाइश पुरवा निवासी मोहम्मद निसार पुत्र नूर मोहम्मद मेहनत मज़दूरी कर अपना और अपने बच्चों का पेट पाल रहा था।इसी बीच उसे कैंसर जैसी बीमारी ने जकड़ लिया। इकलौता कमाने वाला निसार बीमार हो कर भी किसी तरह घर चलाता रहा।बाद में उसकी हिम्मत जवाब दे गई,तो पत्नी सलीम जहां किसी तरह घर की गाड़ी खींचने लगी। निसार के तीन बेटे हैं।दो बेटे एहसान व जीशान सनातन धर्म इण्टर कालेज में पढ़ते है। एक पांच साल का बेटा नूर है। सलीम जहां ने बताया कि वह बीड़ी बना कर मिलने वाले चंद रुपयों से बीमार पति का इलाज और बच्चों के लिए किसी तरह दो-जून की रोटी जुटा पाती है। निसार तो बीमारी से जूझ रहा है, वहीं सलीम जहां की हिम्मत भी अब जवाब देने लगी है। अब तो हालत कुछ ऐसी हो गई है कि एक वक्त की रोटी मिल गई,तो दूसरे वक्त फ़ाके की नौबत मुंह बाए खड़ी रहती है। ज़िंदगी से थक चुके निसार से अपने बच्चों का भूखे पेट रह पाना देखा नहीं जा रहा है। आखिरकार उसने मौत की भीख मांगने का फैसला लिया है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राज्यपाल से इच्छा मृत्यु के लिए अर्ज़ी भेजी है। बीमार निसार अपनी झोंपड़ी में एक कोने में पड़ा अपनी बदनसीबी को को रहा है।
साहब को तलाशने में फूल गई सांसें
इच्छा मृत्यु की अर्ज़ी ले कर भटक रहे निसार ने डीएम को अपना दुखड़ा सुनाया। डीएम ने उसकी अर्ज़ी पर सीएमओ से मदद करने की बात लिखी। बीमार निसार किसी तरह लम्बी दूरी तय करके सीएमओ के दफ्तर तो पहुंच गया। लेकिन वहां साहब नहीं मिले। वहां तक पहुंचने के लिए उसकी सांसें भी जवाब दे गई। इस तरह उसे मदद तो दूर अलबत्ता और दिक्कत का सामना ज़रूर करना पड़ा।