ज़फरुद्दीन रिज़वी
सदर रज़ा अकैडमी भांडुप मुलुंड मुंबई
मुकर्रमी जिस तरह से आए दिन सोशल मीडीया के ज़रीया ये ख़बरें निगाहों से गुज़रती हैं कि मिल्लत-ए-इस्लामीया की भोली-भाली बच्चीयां अपनी नादानी की बिना पर ग़ैरों से राह-ओ-रस्म बनाने में कोई आर महसूस नहीं कर रही हैं और अपनी पाक अज़दवाजी ज़िंदगी को उन के हवाले करती जा रही हैं जो पूरी क़ौम के लिए एक लमह-ए-फ़िक्रिया है।इन वहशतनाक ख़बरों से यही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आज़ादी –ए- निसवां किस भयानक मोड़ तक आ पहुंची है,जिसका नतीजा हमारे सामने है. अगर उस के सद्द-ए-बाब पर ग़ौर-ओ-ख़ौज़ नहीं किया गया तो ऐसी मज़ीद ख़बरें हमें आए दिन सुनने और देखने को मिलती रहेंगी कि फ़ुलां जगह से फ़ुलां मुस्लिम लड़की अपने ग़ैर मुस्लिम दोस्त के साथ फ़रार हो गई और जाकर किसी बुत-ख़ाने में शादी रचा ली या फ़ुलां मुशरिक ने इस को कुफ़रीया असलोक पढ़ा दिए वग़ैरा वग़ैरा।इस तरह की बेशुमार ख़बरें आज भी सुर्ख़ीयों में हैं।अपने सीने में दर्द-ए-दिल रखने वाला हस्सास मुस्लमान जब ऐसी ख़बरों को पढ़ता और सुनता है तो उस के दिल की कैफ़ीयत बदल जाती है और इस का दिल इज़तिराबी कैफ़ीयत का शिकार हो कर रह जाता है।वो इस सोच में पड़ जाता है कि आख़िर आज हमारा मुस्लिम मुआशरा अचानक इतना बदल कैसे गया.जब कि हमारा माज़ी बड़ा ताबनाक है और हमारे मुआशरे की माएं बहनें इस्मत-ओ-इफ़्फ़त की पासबान थीं।यही वजह थी कि उम्मत मुस्लिमा की मुक़द्दस माओं बहनों और बेटीयों के तक़द्दुस की कसमें ज़माना खाता था और उनकी पाकीज़गी की मिसालें देने पर मजबूर था।
मगर आज पूरी मिल्लत की रूह को तकलीफ़ पहुंचाने का काम आज की फैशनपरस्त और बेलगाम मुस्लिम बच्चीयां कर रही हैं और इस्लामी तालीमात और तहज़ीब और इस के उसूल की धज्जियाँ उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं और अपनी तहज़ीबी-ओ-सक़ाफ़्ती मीरास को अपने ही पैरों तले रौंदते हुए अपने मुहज़्ज़ब मज़हब ,मज़हब-ए-इस्लाम से इतनी दूरियाँ बनाती जा रही हैं।हम यही कह सकते हैं कि उनकी ग़ैरत को दीमक लग गया है जिसकी वजह से वह ग़ैर मुस्लिमों से अपनी रस्म-ओ-राह उस्तिवार करने में फ़ख़र महसूस कर रही हैं.इस दर्द-नाक और भयानक पहलू के अस्बाब क्या हैं?और इस का ईलाज कैसे किया जाये उस के बारे में हमें गौर व फ़िक्र करने की ज़रूत है.
बिलाशुबा उम्मत मुस्लिमा के लिए ये एक लमह-ए-फ़िक्रिया है जिसका तदारुक अगर अभी नहीं किया गया तो फिर एक होलनाक तबाही के लिए पूरी मिल्लत को तैयार रहना चाहीए क्योंकि इर्तिदाद की ये आंधी आसानी से थमने वाली नहीं दिख रही है इस के लिए मुनज़्ज़म तौर पर हमारी पूरी क़ौम को उठ खड़ा होना होगा।अगर ऐसा नहीं किया गया तो सिवाए कफ़-ए-अफ़्सोस मिलने के हम कुछ नहीं कर पाएँगे।आज अशद ज़रूरत इस बात की है कि इस भयानक फ़ित्ने से डट कर मुक़ाबला किया जाये और कोई ऐसा मज़बूत लाइह-ए-अमल तैयार किया जाये जिससे हमारी क़ौम के जवान बच्चे और बच्चीयां अपनी इज़्ज़त की हिफ़ाज़त कर सकें और हक़-ओ-बातिल को बख़ूबी समझ सकें।हमें ये भी मालूम है कि इस काम के लिए वही लोग आगे आएँगे जिनके सीने में धड़कता दिल,क़लब-ओ-जिगर और रूह में उम्मत मुस्लिमा से हद दर्जा प्यार मुहब्बत है वही ख़ुलूस की हामिल शख़्सियात ही इस का सद्द-ए-बाब कर सकती हैं इसी के साथ उम्मत मुस्लिमा के हर फ़र्द की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो इस फ़ित्ने के सद्द-ए-बाब पर ग़ौर करे के इन मुस्लिम बच्चीयों को किस तरीक़े से इस ख़तरनाक दलदल से बाहर निकाला जाये उस की क्या तदाबीर हो सकती हैं इस पर भी बग़ौर जायज़ा लिया जाये और इस की बारीकियों की तरफ़ ध्यान दिया जाये कि आख़िर क्या वजह है कि वो हमसे अपने आपको दूर करती जा रही हैं।इस तबाही-ओ-बर्बादी के अस्बाब-ओ-अवामिल क्या हैं जिसकी बुनियाद पर वो ग़ैर मुस्लिमों के साथ राह-ए-फ़रार इख़तियार कर रही हैं।और वो इर्तिदाद जैसे भयानक जुर्म में ज़र्रा बराबर आर महसूस भी नहीं कर रही हैं उनके दिलों से अल्लाह व रसूल का ख़ौफ़ निकल चुका और जहन्नुम का ज़रा भी खटका नहीं रहा।
मैं दर्द-ए-दिल के साथ उन लोगों को भी आवाज़ दूँगा जो अभी भी माडर्न माडर्न के चक्कर में इस तबाही को कोई बुराई नहीं समझ रहे हैं और पियारे नबी सल्ल्लाहू अलैहि वसल्लम की तालीमात को अपनाने की फ़िक्र नहीं कर रहे हैं.
ओ ख़ाब-ए-ग़फ़लत की नींद लेने वालों !ज़रा होश में आओ और दुश्मनाँ इस्लाम के मकर व फरेब से इस्लाम कि मुक़द्दस शहज़ादियों को बचाओ
देखो दुश्मनाँ इस्लाम घर वापसी के नाम पर अपने नौजवानों को मुस्लिम बच्चीयों से प्यार-ओ-मुहब्बत के जाल में फंसा कर उन की ज़िंदगी अजीरन कर रहे हैं उनके दिलों से इस्लाम की मुहब्बत निकाल रहे हैं।इस के लिए वो वक़्त अस्बाब दौलत और सयासी हथकंडे सब कुछ इस्तिमाल कर रहे हैं। तुमने उस के लिए किया तैयारी की है।ग़ैर मुस्लिम लीडरान उनके हौसलों को बढ़ावा दे रहे हैं।वो अपने मिशन में किसी हद तक कामयाब होते दिखाई भी दे रहे हैं उनकी मंशायही है कि मुस्लिम बच्चीयों को अपने घरों में लाकर उनकी इस्मत-ओ-इफ़्फ़त से खेलें और किसी ना किसी बहाने से मुस्लमानों की रूह को चोट पहुंचाएं।ऐसी सूरत में हमें बेदार होने की सख़्त ज़रूरत है
चलते चलते हम अपनी मिल्लत की बच्चीयों को ये पैग़ाम देना चाहते हैं कि मेरी क़ौम की मुक़द्दस बेटीयों तुम इस्लाम की वो मुक़द्दस शहज़ादीयाँ हो जिनकी श्रम-ओ-हया-ए-के चर्चे सारी दुनिया में कल भी थे और आज भी हैं।क्योंकि तुम्हारी रिफ़अतों और बुलंदीयों को शुमार करना बड़ा मुश्किल है तुम्हारी मुस्कुराहटों से आँगन में बहारें आती हैं,तुम क़ुदरत का एक अज़ीम शाहकार हो ,तुम्हारे अन्दर अल्लाह ने बेशुमार खूबियां रखी हैं तुम अपने दिल से ग़फ़लत के पर्दे हटाओ और अपनी हरारत ईमानी की शम्मा रोशन करो।इस लिए कि तुम इस्लाम के आईन के लिए ढाल हो तुम आईना रस्म-ओ-राह हो तुम्हारी एक मुस्कुराहट से तुम्हारे वालदैन के कमलाए चेहरे खिलने लगते हैं तुम्हारी तबस्सुम की घनी छाओं मैं तुम्हारे वालदैन के अरमान मचलने लगते हैं
याद रखो तुम्हारे वालदैन की ख़ुशनुदी में ख़ुदा की रजामंदी मौक़ूफ़ है
याद करो उस भयानक दौर को जब बच्चीयां मायूब समझी जाती थीं उन्हें ज़िंदा दरगोर कर दिया जाता था इस तूफ़ान बदतमीज़ी से अगर किसी ने बचाया है तो वो कोई और नहीं बल्कि वो पैग़ंबर इस्लाम हज़रत मुहम्मद अरबी सल्ल्लाहू ताला अलैहि वसल्लम की ज़ात गिरामी है।जिनका तुम कलमा पढ़ती हो इन्होंने ही तुमको दुनिया के सामने रहमत बनाकर पेश किया।तुम्हें अनमोल ज़िंदगी अता की है तुम्हारी हैसियत और वक़ार-ओ-अज़मत को दुनिया के सामने पेश किया है।और तुम्हें रहमत क़रार दिया है और तुम्हें सदाक़त-ओ-अमानत और ज़बत-ओ-तहम्मुल के साँचे में ढलने का हुनर अता किया है।आज तुमने जिस डगर पे चलने का इरादा करर खा है वो निहायत ही ख़तरनाक है और जहन्नुम की तरफ़ ले जाता है ।याद करो अपने माज़ी की मुक़द्दस माओं और बहनों को कि जिन्हों ने ज़माने को देखा है गर्दिश-ए-अय्याम के पुर ख़तर रास्तों से गुज़री हैं उनके सामने भी दुनियावी ऐश-ओ-इशरत को ख़ूबसूरती के साथ पेश किया गया था लेकिन उन्होंने इस दुनियावी चमक दमक को ठोकर मार दी.
तुमसे तुम्हारा भाई ज़फ़र फ़र्याद कर रहा है कि तुम अपने वालदैन के अरमानों का जनाज़ा मत निकालो।उनके सीनों मैं तुम्हारे तईं मचलते जज़्बात-ए-पिन्हाँ हैं।उनके जज़बात से खिलवाड़ मत करो वो अगर चाहते तो तुम्हें कूड़ेदान में फेंक देते, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि अपने दिल का टुकड़ा समझा।तुम्हारे दिलों को कोई ठेस पहुंचे ये उन्हें गवारा नहीं तुम्हारे लिए तुम्हारे माँ बाप ने कितनी मुसीबतों को झेला है।तुम्हें सूखी जगह पर सुलाया ख़ुद गीली जगह सोए।ख़ुद भूके रहे मगर तुम्हें भूका रखना गवारा ना किया। लेकिन आज तुम हो कि उनके जज़बात से खिलवाड़ कर रही हो उनकी अनमोल ख़िदमात को फ़रामोश करके ग़ैरों की आग़ोश में पनाह लेने को फ़ख़र महसूस कर रही हो।तुम्हारे इन्हीं कारनामों की वजह से तुम्हारे वालदैन के साथ साथ क़ौम मुस्लिम अफ़्सुर्दगी की हालत में नज़र आरही है,तुम्हारे ग़लत इक़दाम की वजह से पूरी क़ौम मुस्लिम इंतिहाई बेचैनी के आलम में है.
ए मेरी क़ौम की बेटीयों तुम याद करो कि जब तुम अपने वालदैन के सामने नहीं होती हो तो उनके दिल पर किया गुज़रती है उनके दिल से पूछो कैसी क़ियामत गुज़रती है चंद लम्हों के लिए बेटी अगर वालदैन की नज़रों से ओझल हो जाती है तो उनके दिल में तरह तरह के सवालात जन्म लेने लगते हैं ज़ाहिर सी बात है कि बेटियां अपने वालदैन की आबरू हैं उनका लख़्त-ए-जिगर हैं।और इस माँ से पूछो जिसने तुम्हें अपनी कोख में नौ माह कितने नाज़ो नअम से महफ़ूज़ रखा।इस वक़्त माँ बड़े ही नाज़ के साथ ज़मीन पर अपने क़दमों को रखती है कि कहीं मेरी कोख में जन्म लेने वाली औलाद को कोई तकलीफ़ ना पहुंच जाये जो माँ अपनी कोख में पलने वाली औलाद को ज़र्रा बराबर भी तकलीफ़ देना गवारा ना करे वो कैसे औलाद की जुदाई बर्दाश्त कर सकती है.
सोचो इस के अरमानों का जनाज़ा निकालने वाली बच्चीयों सोचो ज़रा होश के नाख़ुन लू।जो लोग तुम्हारे नहीं तुम्हारे दीन से उनका कोई ताल्लुक़ नहीं।जो तुम्हारे सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।वही आज तुम्हारी तक़दीर संवारने की बातें कर रहे हैं।और तुम हो कि उनकी आग़ोश में बैठने को तैयार हो. अपने लिए फ़ख़र समझ रही हो तुम्हारी ग़ैरत को क्या हो गया है।तुम्हारा ज़मीर इतना मुर्दा कैसे हो गया तुम्हारी श्रम व ह्या कहाँ चली गई। अगर अब भी आँखों में श्रम-ओ-हया नहीं तो ज़रा उन लड़कीयों की भी ख़बर पढ़ लेना जो तुम्हारी तरह माँ बाप से बेगाना हो कर अपने घर से भाग गईं और आज या तो उनको मार दिया गया या आज अस्पताल में मौत की आख़िरी साँसें गिन रही हैं।ना वो घर की रहीं ना घाट की
तुम जिस मज़हब के मानने वाली हो इस से बेहतर इस दुनिया में कोई मज़हब नहीं
तुम जिस नबी का कलमा पढ़ने वाली हो इस नबी से कोई अफ़ज़ल नहीं
तुम जिस घराने में आँखें खोली हो इस घराने से कोई घराना अच्छा नहीं।याद करो नबी करीम सल्ल्लाहू अलैहि वसल्लम की मुक़द्दस शहज़ादी को याद करो उनकी टूटी चटाई को,याद करो uनकी हयात मुबारका के मुक़द्दस पहलूओं को कि चांद-ओ-सूरज जिनके सर मुबारक के बाल ना देख पाए।याद करो अजवाज-ए-मुतहरात को,याद करो इस मुक़द्दस शहज़ादी को जिसने कर्बला की सरज़मीन पर ज़ुलम-ओ-सितम को देखते हुए भी क़दमों में जुंबिश ना होने दी।सर से बाप का साया उठ चुका है मगर ज़ालिमों के सामने सीना सिपर रही जिसने क़यामत-ख़ेज़ मज़ालिम के साय में भी मायूसी को गले ना लगाया क्योंकि वो जानती थी मेरे बाप का साया ज़ाहिरी तौर पर उठ गया है लेकिन इस की मुहब्बत हम पर साया-फ़गन है
ख़ुदारा आज भी वक़्त है ईमान की हिफ़ाज़त कर लो ये तुम्हें इज़्ज़त देगा तुम्हें दुनिया-ओ-आख़िरत में ज़िल्लत से बचाए गा और तुम्हारा सर फ़ख़र से बुलंद कर देगा।क्योंकि इस्लाम मोमिन के लिए मुकम्मल ज़ाबित-ए-हयात है ज़िंदगी के हर शोबे मैं तुम्हारी रहबरी के लिए काफ़ी है यही वो सर चश्म-ए-हिदायत है जिससे सेराब होने वाले हमेशा पुरसुकून रहते हैं यही वो मुक़द्दस मज़हब है जिससे फ़ैज़ उठाने वालों को मंज़िल-ए-मक़्सूद है।
होशयार रहना काफिर व मुशरिकीन के मकरो फरेब से वो हमेशा से इस्लाम को नुक़्सान पहुंचाते और मुस्लमानों को कमज़ोर करते रहे हैं उनकी रग रग में इस्लाम दुश्मनी कूट कूट कर भरी हुई है उनके बहकावे में कभी ना आना।तुम बाज़ार की ज़ीनत नहीं बल्कि घर के अंदर मलिका बन कर बावक़ार ज़िंदगी गुज़ारने वाली हो अभी भी वक़्त है जाग जाओ ।अल्लाह तबारक-ओ-ताला तुम्हारी इज़्ज़त-ओ-इस्मत का मुहाफ़िज़ हो।(आमीन
ख़ैर-ख़्वाह
ज़फरूदीन रिज़वी मुंबई