कविता

नात ए रसूल: नबी की याद में बीमार होना

फ़ैसल क़ादरी गुन्नौरी

ग़म ए दुनिया से यूँ बेज़ार होना
नबी की याद में बीमार होना


वूजूद ए ख़ल्क़ का मक़सद यही था
मिरे आक़ा का जलवा बार होना


बुलायें जब कभी सरकार तैबा
अदब से हाज़िर ए दरबार होना


यक़ीनन बादशाही से है अफ़ज़ल
गदा ए सय्यद ए अबरार होना


क़यामत में नज़र आयेगा मुन्किर
नबी का मालिक ओ मुख़्तार होना


अगर ख़्वाहिश है कुछ होने की तुझ को
तो पहले साहिब ए किरदार होना


करम से हो गये आक़ा के फ़ैसल
बहुत मुश्किल था ये अशआर होना

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