गोरखपुर

क़ुर्बानी का जानवर औरतें भी ज़बह कर सकती हैं: महज़बीन, अलहदादपुर में औरतों का इज़्तिमा

गोरखपुर। सोमवार को मदरसा क़ादरिया तजवीदुल क़ुरआन लिल बनात इमामबाड़ा अलहदादपुर में ईद-उल-अज़हा पर्व को लेकर औरतों का इज़्तिमा (सभा) हुआ। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत कारिया काशिफा बानो ने की। नात-ए-पाक नौशीन फातिमा व नौशिया फातिमा ने पेश की।

सदारत करते हुए आलिमा महज़बीन खां सुल्तानी ने कहा कि ईद-उल-अज़हा पर्व पैग़ंबर हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम व पैग़ंबर हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम की क़ुर्बानी की याद में मनाया जाता है। क़ुरआन-ए-पाक में अल्लाह ने क़ुर्बानी करने का हुक्म दिया है, इसलिए मुसलमान क़ुर्बानी में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेकर अल्लाह के हुक्म को पूरा करें। इस्लामी माह ज़िल हिज्जा की 10, 11, 12 (21, 22 व 23 जुलाई) तारीख़ क़ुर्बानी के लिए खास दिन है। मगर पहला दिन अफ़ज़ल है। देहात में 10 ज़िल हिज्जा की तुलू फज्र के बाद ही से क़ुर्बानी हो सकती है मगर बेहतर यह है कि तुलू आफताब (सूर्योदय) के बाद क़ुर्बानी की जाए। शहर में ईद-उल-अज़हा की नमाज़ से पहले क़ुर्बानी नहीं हो सकती। क़ुर्बानी दिन में करनी चाहिए। क़ुर्बानी की खाल या गोश्त वगैरा ज़बह करने वाले को बतौर मेहनताना देना जायज़ नहीं। क़ुर्बानी का जानवर औरतें भी ज़बह कर सकती हैं। क़ुर्बानी का खून व अपशिष्ट पदार्थ नालियों में न बहाकर किसी मुनासिब जगह दफ़न कर दें। क़ुर्बानी का वीडियो-फोटो बिल्कुल न बनाया जाए और न ही सोशल मीडिया पर डाला जाए। पर्व को सादगी से मनाया जाए। यह मेहमान नवाज़ी का पर्व है। भाईचारे को आम किया जाए।

उन्होंने बताया कि पैग़ंबर हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम, उनकी बीवी हज़रत हाजरा और बेटे पैग़ंबर हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के सभी हुक्मों को पूरा किया। बहुत अज़ीम क़ुर्बानियां पेश कीं। अल्लाह ने पैग़ंबर इब्राहिम को हुक्म दिया कि वो अपनी बीवी हज़रत हाजरा और बेटे हज़रत इस्माइल को फ़लस्तीन से अरब ले आयें।अल्लाह ने पैग़ंबर इब्राहिम से हज़रत हाजरा व हज़रत इस्माइल को अपनी क़िस्मत पर छोड़ देने के लिए कहा। उन्हें खाने की कुछ चीज़ें और थोड़ा पानी दिया गया। कुछ दिनों में ही ये सामान ख़त्म हो गया। हज़रत हाजरा और हज़रत इस्माइल भूख और प्यास से बेहाल हो गए। मदद की तलाश में हज़रत हाजरा मक्का में स्थित सफ़ा और मरवा की पहाड़ियों से नीचे उतरीं। भूख और थकान से टूट चुकी हज़रत हाजरा गिर गईं और उन्होंने संकट से मुक्ति के लिए अल्लाह से दुआ की। हज़रत इस्माइल ने ज़मीन पर पैर पटका तो ज़मीन के भीतर से पानी का एक सोता फूट पड़ा और दोनों की जान बच गई। हज़रत हाजरा ने पानी को सुरक्षित किया और खाने के सामान के बदले पानी का व्यापार भी शुरू कर दिया। इसी पानी को आबे ज़मज़म यानी ज़मज़म कुआं का पानी कहा जाता है। यह बहुत पाक पानी है। जब पैग़ंबर इब्राहिम फ़लस्तीन से लौटे तो उन्होंने देखा कि उनका परिवार एक अच्छा जीवन जी रहा है। इसी दौरान पैगंबर इब्राहिम को अल्लाह ने काबा शरीफ की तामीर का हुक्म दिया। हज़रत इब्राहिम व हज़रत इस्माइल ने काबा शरीफ तामीर किया।

अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान व तरक़्क़ी की दुआ मांगी गई। इज़्तिमा में साहिबा बानो, अलैना बानो, इकरा, आयशा बानो, कशिश फातिमा सहित तमाम औरतों ने शिरकत की।

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