राजनीतिक

चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल ?

लेखक: सिद्दीक़ी मुहममद ऊवैस, महाराष्ट्र

हमारे देश भारत में साल भर विभिन्न प्रकार के त्यौहार मनाए जाते हैं जिनमें एक त्यौहार देश के हर नागरिक के लिए महत्वपूर्ण होता है, जो साल के बारह माह देश के किसी न किसी हिस्से में जारी रहता है, मैं बात कर रहा हूँ चुनावों की । इसी तरह इन दिनों पाँच राज्यों में चुनावों का मौसम खुब ज़ोर शोर से चल रहा है, जिनमें पश्चिम बंगाल, असम, पूदूचेरी, केरल और तामिल नाड शामिल हैं । और हाल ही में उत्तर भारत के दो राज्यों पश्चिम बंगाल और असम के चुनाव देश भर में चर्चा का विषय हैं ।

इसी बीच, 1 अप्रैल 2021 को असम के ज़िला करीमगंज में EVM इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनें भाजपा के विधायक की कार में पायी जातीं हैं और यह मामला मीडिया, सोशल मीडिया और विपक्ष के बीच विवादास्पद रूप धारण कर जाता है । 1 अप्रैल की शाम विधानसभा क्षेत्र नंबर एक से मतदान संपन्न होने पोलिंग पार्टी पुलिस की सुरक्षा में करीमगंज की ओर जा रही थी, जिसे पुलिस सेक्टर अफ़सर एबीएसआई लोहित गोहैन द्वारा एस्काॅट किया जा रहा था, की रास्ते में पोलिंग पार्टी की गाड़ी ख़राब हो जाती है और फ़िर वे रास्ते में एक दूसरी प्राइवेट गाड़ी से लिफ्ट लेते हैं । लेकिन संयोग से वे दूसरी गाड़ी भाजपा विधायक और विधानसभा क्षेत्र 2 पाथरकांडी से प्रत्याशी कृष्णेंदु पाॅल की होती है । जब स्थानीय लोगों को यह मालुम होता है कि पोलिंग पार्टी भाजपा प्रत्याक्षी की गाड़ी में EVM के साथ सवार है तो वे फ़ौरन वहाँ पहुँच जाते हैं और देखते ही देखते सैंकड़ों लोगों की भीड़ जमा हो जाती है और लोग आक्रोश में आकर गाड़ी को घेर लेते हैं, पत्थर बाज़ी करते हैं और अधिकारीयों को मारने का प्रयास भी करते हैं । जब स्तिथि आपे से बाहर होने लगती है तो पूलिस ने काबू पाने के लिए लाठी चार्ज किया और 3 हवाई फायरिंग की ताकि लोग तीतर भीतर हो जाएँ । मामला सामने आते ही लोगों ने इस की आलोचना शुरू कर दि और चंद घंटों में यह ख़बर सोशल मीडिया द्वारा देश भर में फैल गई । राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी, मौलाना बदरुद्दीन जैसे और भी कई विपक्ष के बड़े नेताओं ने ट्विट कर भाजपा को आड़े हाथों लिया और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए ।आलोचना करना लोकतंत्र का हिस्सा और देश के हर नागरिक का संविधानिक अधिकार है । और यहाँ आलोचना होना जायज़ भी है । अब सवाल यह उठता है कि चुनाव आयोग की ओर से इस मामले पर क्या स्पष्टीकरण है ? चुनाव आयोग की तरफ़ से 2 अप्रैल को दोपहर में जवाब जारी किया जाता है जो अपने आप में कई सवाल खड़े करता है और आयोग को भी शक के घेरे में घसीटता है । आयोग का कहना है कि उस दिन मौसम काफ़ी ख़राब था, भारी बारिश हो रही थी जिस के कारण पोलिंग पार्टी की गाड़ी ख़राब हो गई और हायवे पर तक़रीबन 1300 गाड़ियाँ चल रही थीं यानी ट्रेफ़िक जाम था और इसी बीच पोलिंग पार्टी की गाड़ी पुलिस की गाड़ी से अलग हो गई । पोलिंग पार्टी ने सेक्टर अफ़सर को फ़ोन पर सूचित किया, अफ़सर दूसरी गाड़ी का इन्तेजाम करते इससे पहले ही पोलिंग पार्टी ने ख़ुद एक कार को हाथ दिखा कर रोका और वे सवार हो गए, जब पोलिंग पार्टी कानिशाइल पहुँची तो लोगों उन्हें घेर लिया और हंगामा खड़ा कर दिया तब पोलिंग पार्टी को मालूम हुआ कि वे जिस गाड़ी में सवार हैं वे भाजपा के उम्मीदवार की है । कुछ देर बाद ज़िला निर्वाचन अधिकारी और ज़िला एस पी मौक़ा पर पहुंचे, लोगों ने कार पर पत्थर बाज़ी की जिसमें एस पी करीमगंज घायल हो गए लेकिन पोलिंग अधिकारीयों के घायल होने के बारे में आयोग ने कुछ नहीं बताया । कुछ देर बाद ज़िला निर्वाचन अधिकारी ने EVM मशीनें अपने कब्ज़े में ले लीं, और जांच के बाद मालुम हूआ की मशीनों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हूई है लेकिन चुनाव आयोग ने दोबारा चुनाव का आदेश जारी किया है । इसी मामले आयोग ने एक पीठासीन अधिकारी को ट्रांसपोर्ट प्रोटोकॉल के उल्लंघन के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया, तीन अन्य अधिकारीयों को निलंबित कर दिया और स्पेशल ऑबज़रवर से रिपोर्ट की मांग की है । ये तो रहा चुनाव आयोग का जवाब, जो की उसी रात आना चाहिए था लेकिन जबाव दूसरे दिन दोपहर में आता है जिसकी वज़ह यह बताई जाती है कि प्रथम मतदान कर्मचारी सुबह तक लापता थे और रात भर सर्च ऑपरेशन चल रहा था । इस बात का भी कोई तूक नहीं निकलता ।

चुनाव आयोग का जवाब देख कर किसी फिल्मी कहानी की याद आती है, अचानक गाड़ी का खराब होना ? फ़िर संयोग से भाजपा के उम्मीदवार की कार का मिलना ? ऐसे कई बड़े सवालात हैं जिनसे चुनाव आयोग की छवि को धक्का लगा है । अगर पोलिंग पार्टी को किसी गाड़ी में सवार होकर जल्दी पहुंचना ही था तो पहले गाड़ी के मालिक के बारे में जानना तक ज़रूरी नहीं समझा ? क्या गाड़ी के ड्राइवर को EVM नहीं दिखे और उसने नहीं बताया की गाड़ी का मालिक कौन है ? जाम होते हुए भी आख़िर पुलिस की गाड़ी कैसे अलग हो गई ? जाम के होते हुए दूसरी गाड़ी को कैसे रोका गया ? चुनाव के माहौल में इतने सख़्त इंतजामात के होते हुए भी पोलिंग पार्टी की गाड़ी ख़राब होने पर कोई दूसरी सरकारी गाड़ी का इन्तेजाम कैसे नहीं था ? आदी…!!!!

ऐसे मामलों की सख्त और निष्पक्ष जांच होना ज़रूरी है । गाड़ी को घेरने वाले लोगों ने आरोप लगाया है कि EVM मशीनों को छेड़खानी के लिए ले जाया जा रहा था, ऐक लोकतंत्र के लिए ये बहुत ही शर्मनाक बात है । ऐसे मामलों के बाद सरकार, प्रशासन, वयवस्था और खास तौर पर चुनाव आयोग पर जनता का विश्वास कमजोर हो जाता है । ऐसा लगता है कि अब चुनाव बे माईनी हो जाएँगे ! “सरकार जनता की, जनता के लिए, जनता द्वारा” का ये नारा अब झूठ मालूम होने लगा है जो कभी लोकतंत्र की नींव माना जाता था ।

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