मध्य प्रदेश विशेष बातचीत शिक्षा शैक्षिक संस्थानों से

विद्यालय को बनाया “शिक्षा-संस्कार एक्सप्रेस” और शत-प्रतिशत हुआ परीक्षा परिणाम

हजारों विद्यार्थियों को पुस्तकालय से जोड़ा

ताहिर कमाल सिद्दीकी
इंदौर। शिक्षक दिवस पर बात एक ऐसे अनूठे शिक्षक की, जिसने अपने 34 वर्षों के शिक्षा सेवाकाल के दौरान न केवल हजारों विद्यार्थियों का भविष्य संवारा बल्कि कई ऐसे नवाचार भी किये जिनसे संपूर्ण शिक्षा जगत लाभान्वित हुआ। शिक्षण गतिविधियों से इतर भी उन्होंने कई ऐसी जिम्मेदारियों को इतनी कर्मठता, सजगता और तत्परता से निभाया कि वो अपने आप में मिसाल बन गईं। ये हैं शहर की सुपरिचित शिक्षिका सुश्री लिली संजय डावर। जिन्होंने कोरोना काल की भीषण त्रासदी के दौर की कड़वी यादों से विद्यार्थियों को उबारने के लिए पेडमी स्थित विद्यालय, जहाँ वो प्राचार्य के रूप में पदस्थ थीं, को “शिक्षा और संस्कार एक्सप्रेस” रेलगाड़ी का स्वरूप दे दिया। उनके इस प्रोजेक्ट को स्थानीय एवं प्रादेशिक स्तर के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर भी बहुत सराहा गया।

महामहिम राज्यपाल और सांसद द्वारा पुरस्कृत
विद्यार्थियों, विद्यालयों एवं समाज हित में किए जा रहे उनके उत्कृष्ट कार्यों के दृष्टिगत उन्हें समय-समय पर महामहिम राज्यपाल, सांसद, संभागायुक्त, जिलाधीश, पुलिस आयुक्त सहित अनेकों सामाजिक, साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है। लिलीजी बताती हैं कि उनके जीवन में सबसे कठिन समय तब आया जब करीब 16 साल पहले, सन 2008 में पति श्री संजय डावर जी का साथ छूट गया। उन विपरीत परिस्थितियों में अपने जीवन को नए सिरे से आकार देने के बजाय उन्होंने जीवन भर अकेले रहकर, हजारों-लाखों बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने का दुष्कर मार्ग चुना और उस संकल्प पर पूरी दृढ़ता से सफलतापूर्वक चलकर दिखाया। इसीलिए वो आज न केवल साथी शिक्षकों बल्कि औरों के लिए भी एक ऐसी आदर्श शिक्षिका बन गईं हैं, जिसका अनुसरण हर कोई करना चाहता है।

ऐतिहासिक पुस्तकालय का कायाकल्प
वर्तमान में देवी अहिल्या केंद्रीय पुस्तकालय में क्षेत्रीय ग्रंथपाल जैसे महत्वपूर्ण पद पर पदस्थ सुश्री डावर, यहाँ भी अपने नवाचारों के माध्यम से 62 वर्ष पुराने इस ऐतिहासिक पुस्तकालय का कायाकल्प करने की हरसंभव कोशिश कर रही हैं। लाइब्रेरी साइंस में प्रशिक्षित न होते हुए भी उन्होंने इस डिजिटल युग में हजारों विद्यार्थियों को पुस्तकालय से जोड़ने का आश्चर्यजनक कार्य अत्यंत सहजता से संभव कर दिखाया। अनेक नवाचारों के माध्यम से पुस्तकालय को अति सुंदर स्वरूप प्रदान किया। बच्चों के लिए एक रुपए में पुस्तकालय की आजीवन सदस्यता प्रारंभ कर इतने बड़े ज्ञान के भंडार को उपलब्ध करवाया।

कैसेट्स के जरिए बनाया शिक्षा के लिए वातावरण
1990 में शिक्षक (व्याख्याता) के रूप में लिली जी सफर राजगढ़ जिले की खिलचीपुर तहसील के एक शासकीय विद्यालय से प्रारंभ हुआ था। जहां ग्रामीण परिवेश के बच्चों को उन्होंने रसायनशास्त्र जैसे नीरस एवं जटिल विषय को उन्होंने इतने रोचक तरीके से पढ़ाया कि वहाँ के पुराने स्टूडेंट उन्हें दशकों बाद भी याद करते हैं। इसी तरह उन्होंने देवास जिले के शासकीय विद्यालय में पदस्थ रहते हुए दूरस्थ ग्रामीण अंचल में साक्षरता अभियान में महती भूमिका निभाते हुए अनेकानेक गीतों की रचना कर और उनके ऑडियो, वीडियो कैसेट्स बनाकर शिक्षा के लिए वातावरण का निर्माण किया।

हर वर्ष बोर्ड परीक्षा परिणाण शत-प्रतिशत
एक शिक्षक के रूप में उनकी यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव इंदौर जिले के दूरस्थ आदिवासी ग्राम पेडमी में प्राचार्य के रूप में अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए आया। पांच वर्ष के कार्यकाल में हर वर्ष बोर्ड परीक्षा का शत-प्रतिशत परीक्षा परिणाम प्राप्त करने का उनका अद्भुत कारनामा आज भी याद किया जाता है। यह वही स्कूल था, जहाँ उनके जुड़ने से पहले तक परीक्षा परिणाम बहुत अच्छा नहीं आता था। इसके अलावा उन्होंने वहाँ विभिन्न साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं खेलों आदि के आयोजन के माध्यम से बच्चों की शिक्षा के समग्र व्यक्तित्व निर्माण की बुनियाद रखी। मजदूर वंचित वर्ग के बच्चों को एयरपोर्ट सहित चिड़ियाघर, म्यूजियम आदि की सैर करवाकर उन्हें कूप-मंडूक होने से बचाया और बाहरी दुनिया से परिचित करवाया।

छात्रों पर खर्च किया अपना वेतन
2010 में सुश्री डावर ने पति के नाम से मानव सेवा प्रकल्प “संजय स्पंदन” प्रारंभ किया। इस प्रकल्प के माध्यम से उन्होंने हजारों जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा, पोषण, स्वास्थ्य आदि के लिए उल्लेखनीय कार्य किये। ये सिलसिला अब भी जारी है। खास बात ये कि ये सभी सेवा कार्य उन्होंने बिना किसी डोनेशन या अनुदान के अपने वेतन की राशि से किये। इस प्रकार लिली जी ने न केवल एक शिक्षक के रूप विद्यार्थियों को औपचारिक शिक्षा दी बल्कि नवाचारों माध्यम से समाज में शिक्षक की गरिमा एवं गुरूता भी स्थापित की।

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