सावन का आखिरी सोमवार था. सुबह करीब सात बजे शिमला के फागली में अचानक भूस्खलन हुआ और इसकी चपेट में करीब पांच घर आ गए. देखते ही देखते मदद के लिए चीख-पुकार मच गई. हर कोई मदद की गुहार लगा रहा था. मदद की आवाज सुन सलाउद्दीन बाबर खान मंजर में उतरे. बाबर का छोटा भाई भी इसी मलबे में फंसा था।
हालांकि लगातार हो रही बारिश की वजह से मिट्टी खिसकने का क्रम जारी था. भूस्खलन के बाद बाबर ने मलबे में उतरकर दबे लोगों की मदद करने की कोशिश की, लेकिन तभी अचानक दूसरा भूस्खलन हो गया। दूसरा भूस्खलन होते ही आसपास के इलाके में चीख-पुकार मच गई. हर कोई तबाही का यह मंजर देखकर डर गया. हर कोई घटनास्थल पर जाने से डरने लगा।
भूस्खलन की तीव्रता और प्रभाव इतना ज्यादा था कि लोगों को मलबे से निकालने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी. लगातार हो रही बारिश की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन में परेशानी का सामना करना पड़ रहा था. मौके पर रेस्क्यू कर रहे जवानों ने कई लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला, लेकिन बाबर का कोई पता नहीं था।
दोपहर बाद बाबर का शव बरामद हुआ, जिसकी शिनाख्त इलाके के पूर्व पार्षद संजय सूद ने की. मदद के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर मलबे में उतरे बाबर की मौत ने हर किसी को हिलाकर रख दिया. शिमला की वह आवाज ‘मैं सलाउद्दीन बाबर खान. पेश है आज के मुख्य समाचार’ हमेशा के लिए शांत हो गई, जो अक्सर आकाशवाणी के समाचार बुलेटिन में सुनाई दिया करती थी।
बाबर खान का व्यक्तित्व ऐसा था, जिससे इलाके का हर शख्स प्रभावित था. बड़ों को सम्मान और छोटों को प्यार ही बाबर की पहचान थी. बाबर हर वक्त लोगों की मदद के लिए तैयार रहते।