लेखक:अब्दे मुस्तफ़ा
इल्म ज़रूरी है, अमल ज़रूरी है इनका किसी को इंकार नहीं।
दीन के लिये आप का काम और क़ौम के लिये ख़िदमात भी क़ाबिले ज़िक्र हैं पर इन सब के बावजूद अल्लाह वालों से निस्बत एक अलग शय है।
ये निस्बत ऐसी शय है कि ख़त्म नहीं होती, कोई खत्म कर दे तो भी नाम बाक़ी रहता है।
अल्लाह वालों से निस्बत रखने वाले तो पाते ही हैं, निस्बत तोड़ देने वाले भी पाते हैं।
रखने वाले इज़्ज़त और बरकत पाते हैं, तोड़ देने वाले ज़िल्लत और ज़हमत पाते हैं।
अल्लाह त’आला ने फ़रमाया कि तक़वा इख़्तियार करो फिर फ़रमाया कि सच्चों के साथ हो जाओ।
ये हम इन्हीं सच्चों से निस्बत की बात कर रहे हैं।
इनसे निस्बत जोड़े रखिये, ये ग़ैरे खुदा ज़रूर हैं पर खुदा की तरफ ले जाने वाले हैं।
इनकी निस्बत वो दे जायेगी जो पूरी ज़िंदगी की जिद्दो जहद में ना मिल सके।