धार्मिक

कूंडे की नियाज़

माहे रज्जब में हजरत इमाम जाफर सादिक़ रदियल्लाहु अन्ह को ईसाले सवाब के लिए कूंडे भरे जाते हैं यह जाइज़ है।
अक्सर लोग 22 रज्जब को कूंडे की नियाज़ करते हैं और कहते हैं कि उस दिन *इमाम जाफर सादिक़ रदियल्लाहो अन्ह का विसाल हुआ था। मगर यह गलत है। अस्ल यह है कि हज़रत का विसाल 15 रज्जब को हुआ था न कि 22 रज्जब को।
हाँ! 22 रज्जब को सहाबी-ए-रसूल हज़रत अमीरे मुआवियह रदियल्लाहु अन्ह का विसाल हुआ है, और शिया और राफजी लोग हज़रत अमीरे मुआविया के गुस्ताख,और सख्त नफरत करते हैं। तो शिया इस तारीख में हज़रत}अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु अन्ह के विसाल की ख़ुशी में ईद मनाते हैं और सुन्नियों को धोका देने के लिये उसे हज़रत इमाम जाफर सादिक़ रज़ियल्लाहु अन्ह की नियाज़ कहते हैं।
लिहाज़ा सुन्नी हज़रात पर लाज़िम है कि वह शियों की मुखालिफत से दूर रहें। और जिस तारीख में यानी 15 रज्जब को हज़रत इमाम जाफर सादिक का विसाल हुआ उसी तारीख में उन की नियाज़ करें।

यहाँ पर मैं उन चन्द बातों का ज़िक्र ज़रूरी समझता हूँ जिन को लोगों ने ज़बरदस्ती ज़रूरी बल्कि फ़र्ज़ व वाजिब के दर्जे में समझ रखा है। हालाँकि दीन व शरीअत से उन बातों का कोई तअल्लुक़ नहीं। बल्कि सरासर गलत और शरीअत पर ज़्यादती है।

(1) इस फातिहा में कोई भी हलाल चीज़ पर फातिहा दिला सकते हैं, ज़रूरी नहीं कि खीर पूरी ही बनाई जाए। बिरयानी,दही,मछली,गोश्त,चने,जलेबी,मिठाई हर हलाल चीज़ की नज़्र पेश की जा सकती है।
(2) नियाज़ का खाना दिन,रात,शाम,दोपहर किसी भी वक़्त बनाया और खिलाया जा सकता है।ज़रूरी नही कि सुबह या दिन का ही वक़्त हो।
(3) नियाज़ का खाना एक ही कमरे में खिलाया जाए, दूसरे कमरे में या घर के बाहर नहीं ले जा सकते यह सब ख्याल बेहूदा ॆऔर गलत है।
(4) फातिहा का खाना बच जाये तो उसे दफन कर दिया जाए, ऐसा करना हराम और गुनाह है। बचे हुए खाने को तक़सीम करना बिल्कुल जाइज़ है। बल्कि बाइसे अज्र व सवाब है।
(5) फातिहा एक साल की तो हर साल करना ज़रूरी है, ऐसा मानना भी गलत है। हाँ! अल्लाह ने हैसियत दी है तो हर साल हर बुजुर्ग की फातिहा करनी चाहिए।
किसी साल किसी जाइज़ वजह से फातिहा न कराई तो कोई हर्ज नही। लेकिन न कर पाए तो यह सोचना कि अब इमाम जाफर सादिक़ रज़ियल्लाहु अन्ह मुझ से नाराज़ हो जाएंगे और मेरे घर पर मुसीबत आ जायेगी, ऐसा सोचना गलत है।
(6) हर साल नियाज़ में जो खाना पकाया,खिलाया वही खाना हर साल पकाना,खिलाना ज़रूरी नही।
(7) किसी मुसीबत आने पर यह कहना कि कूंडे की फातिहा में मैं ने ऐसा या वैसा खिलाया इस लिये यह मुसीबत आयी, सख्त हराम है कि अपनी गैर शरई हरकत की मुसीबत या कोई और बात को इमाम जाफर सादिक़ रदियल्लाहु अन्ह की तरफ मंसूब करते हैं।
अगर किसी मुसलमान ने कभी ज़िन्दगी में कूंडे की फातिहा न भी दिलाई हो तब भी सरकार इमाम जाफर सादिक़ रदि़यल्लाहु अन्ह उस की मदद फरमाते हैं।
(8) घर का बना हुआ खाना हो, या सिर्फ हलवा हो, या सिर्फ एक गिलास पानी ही क्यों न हो उस पर फातिहा पढ़ें और ज़रूर पढ़े। कोई ज़रूरी नहीं कि जिस के घर पहले से होती आयी उसी के घर कूंडे की फातिहा हो। हर कोई करें।
★ बेशक गैर जरूरी रस्म-व-रिवाज जो क़ायम हो चुके, चाहे हमारे या किसी के बाप दादाओं ने किया हो, इस्लाम से उन बातों का कोई लेना देना नहीं है।
★अगर कोई मना करे तो घर के बुज़रुगों को प्यार से समझायें कि यह सब गलत बातें हैं जो अब हमें खत्म करनी हैं।
अल्लाह तआला हम सब को अपने हबीब सललल्लाहो अलैहि वसल्लम और तमाम सहाबाऐ किराम के सदके दीन की समझ बूझ अता फरमाये।
आमीन

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