गोरखपुर। शुक्रवार को हज़रत सैयदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु का जन्मदिवस व हज़रत इमाम अबू ईसा मोहम्मद बिन ईसा तिर्मिज़ी अलैहिर्रहमां का उर्स-ए-पाक अकीदत व एहतराम के साथ शहर की मस्जिदों में मनाया गया। कुरआन ख्वानी, फातिहा ख्वानी व दुआ ख्वानी की गई। जुमा की तकरीर में उलेमा-ए-किराम ने हज़रत सैयदना अली व इमाम तिर्मिज़ी की शान बयान की।
सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाजार में मुसलमानों के चौथे खलीफा अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना अली व हज़रत इमाम अबू ईसा मोहम्मद बिन ईसा तिर्मिज़ी की याद में कुरआन ख्वानी व फातिहा ख्वानी की गई। मस्जिद के इमाम हाफिज रहमत अली निज़ामी ने कहा कि जिसे कुरआन-ए-पाक की तफसीर देखनी हो वह हज़रत सैयदना अली की ज़िन्दगी का अध्ययन करे। हज़रत सैयदना अली इल्म का समंदर हैं। बहादुरी में बेमिसाल हैं। आपकी इबादत, रियाजत, तकवा-परहेजगारी और पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम से मोहब्बत की मिसाल पेश करना मुश्किल है। आप बच्चों में सबसे पहले ईमान लाने वाले हैं। आप पैगंबर-ए-आज़म के दामाद हैं। आप हज़रत सैयदा फातिमा के शौहर हैं। हज़रत सैयदना इमाम हसन व हज़रत सैयदना इमाम हुसैन के वालिद हैं।
हा़फिज रहमत ने इमाम तिर्मिज़ी की शान में कहा कि आप इमामुल आइम्मा, शेखुल मुहद्दिसीन, मोहसिने उम्मत और एक मशहूर व अज़ीम मुहद्दिस हैं। आप की पैदाइश 209 हिजरी तिर्मिज़ में हुई। आपकी शुरुआती तालीम व तरबियत तिर्मिज़ में हुई। आपने इमाम मोहम्मद बिन हंबल, इमामुल मोहद्दिसीन इमाम बुखारी और इमाम अबू दाऊद से हदीस का दर्स लिया और फिर हदीसों को जमा करने के लिए खुरासान, इराक और हिजाज़ सहित तमाम देशों का सफ़र किया। आपकी बेशुमार तसनीफों में से ‘तिर्मिज़ी शरीफ’ निहायत मकबूल, मुमताज व काबिले हुज्जत है। आपका विसाल 13 रजब 279 हिजरी में हुआ। आपका मजार उज्बेकिस्तान में है। अंत में दरूदो सलाम पढ़कर मुल्क की खुशहाली व तरक्की के लिए दुआ की गई। इस मौके पर हाफ़िज आमिर हुसैन निज़ामी, गुलाम जीलानी, हाफ़िज सद्दाम हुसैन, हाफ़िज मुजम्मिल रज़ा, मोहम्मद जैद, मोहम्मद रुशान, आसिफ रज़ा, रहमत अली अंसारी आदि मौजूद रहे।
चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में हज़रत सैयदना अली, इमाम तिर्मिज़ी, हज़रत सैयद सालार मसूद गाजी (गाजी मियां), हज़रत सैयदना इमाम जाफ़र सादिक को शिद्दत से याद किया गया। फातिहा ख्वानी की गई। मस्जिद के इमाम हाफिज महमूद रज़ा कादरी ने हज़रत सैयदना अली की शान में कहा कि इल्म का गौहर आपके खानदान से निकला। विलायत की शुरुआत आपके खानदान से हुई। पैगंबर-ए-आज़म ने फरमाया कि मैं इल्म का शहर हूं और अली उसके दरवाजा हैं। अब जो इल्म से फायदा उठाना चाहता है वह बाबे इल्म (हज़रत अली) से दाखिल हो। आपकी शहादत माह-ए-रमज़ान में हुई। अंत में सलातो सलाम पढ़कर खैरो बरकत की दुआ मांगी गई। इस मौके पर हाफिज़ सैफ अली, महबूब आलम, अबू बक्र, इमरान, इमाम हसन, मुख्तार खान, शाद अहमद, अज़हर अली, फुजैल, फैज़ान, चांद अहमद, नेसार अहमद, शहाबुद्दीन, सलीम आदि मौजूद रहे। नार्मल स्थित दरगाह हज़रत मुबारक खां शहीद में बाद नमाज जुमा हज़रत सैयदना अली की यौमे विलादत मनाई गई। मस्जिद जोहरा मौलवी चक में बच्चों ने कुरआन ख्वानी की।