लेख

जावेद अख्तर ने जब मुशायरे में मिली रकम स्कूल के बच्चों की तालीम के लिए दान कर दी

12 फरवरी 2010 जुमा का दिन था। इतिफाक से उसी दिन महाशिवरात्रि भी थी।

रुबीना इकबाल खान मेडम पहली बार पार्षद बनी थी।
‘मैं नहीं हम’ की टीमटाम ने जीत की खुशी में
खिजराबाद गार्डन में जलसा/मुशायरा रखा था।

मशहूर पत्रकार और लेखक हिदायतुल्लाह खान प्रोग्राम के रहनुमा थे। उनकी सरपरस्ती में नामी~गिरामी शायर इंदौर में तशरीफ फरमा थे। जैसे मुनव्वर राना और जावेद अख्तर।

जावेद अख्तर चूंकि उर्दू अदब से ताल्लुक़ रखते है लिहाजा मरहूम अज़ीज़ इंदौरी साहब की उर्दू लायब्रेरी की क़दीम किताबों को निहारने चल पड़े।

दरगाह के पास उर्दू स्कूल की पूर्वी तरफ उनकी लायब्रेरी थी। जावेद अख्तर के दादाजी मुज़्तर खैराबादी ने तुकोजीराव होलकर और यशवंत राव होलकर की हुकूमत में सन् 1924 से लेकर 1927 तक होलकर रियासत में इतिहास लेखन का काम भी किया। गफूर खां की बजरिया में रहते थे। इसलिए जावेद अख्तर का इंदौर से जुड़ाव था। उनकी उर्दू की कोई किताब या नज़्म मिल जाए और कुछ नायब किताब हाथ लग जाए लिहाजा जावेद अख़्तर साहब को अजीज इंदौरी साहब ने लायब्रेरी का मुआयना कराया।
मुज्तर खैराबादी का शेर है👇
न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूं

इसके बाद पास ही स्थित उर्दू स्कूल के प्रोग्राम में भी जावेद अख्तर साहब ने शिरकत की। इतना ही नहीं जावेद अख्तर साहब को मुशायरा पढ़ने और इंदौर आने के एवज में जो फीस मिली थी उन्होंने खुशी~खुशी बच्चों की तालीम के लिए उर्दू स्कूल को दान कर दी।
मुज्तर खैरबादी ने क्या खूब लिखा है👇
“बुरा हूँ मैं जो किसी की बुराइयों में नहीं ,
भले हो तुम जो किसी का भला नहीं करते”

उस वक़्त ऐसा कोई शख़्स नहीं था जो उन्हें बोलता कि बाजू में हजरत नाहर शाह वली की मशहूर दरगाह भी है।
खैर सेक्युलर जावेद अख्तर को किसी ने बताया नहीं। मैं कहता भी तो किसे? मेरी सुनता भी कौन?

अगर मेरा बस चलता तो मैं उन्हें बताता आपके साथी राईटर जनाब सलीम खान के बड़े भाई यहाँ दरगाह के रिसीवर रह चुके है। सलीम साहब यहां अक्सर आया करते थे। मोहम्मद रफी की दोनों बहुएं भी सलीम साहब की भांजियाँ हैं। ये सभी यहाँ के जायरीन है।

“तेरी गली तक आए~तेरे कूचे से भी गुजरे,
काश नसीब में होते~तेरे पहलू तेरे हुजरे “

बहरहाल मैंने सोचा था कि बोलू।
लेकिन मेरी उस वक्त कौन सुनता?

खैर उस वक्त खजराना में गिनती के फोटोग्राफर औऱ पत्रकार थे। मेरे पास सोनी का डिजिटल कैमरा था ।
ऐसे यादगार लम्हों को कैद करना मैं नहीं भूलता था।

सोचा कि चलो बतौर निशानी कुछ फोटो ले लिए जाए।
उस वक्त जावेद अख़्तर के खजराने के सफ़र के मैंने सैकड़ों फोटो ओर दर्जनों वीडियो बनाई। उनसे आटोग्राफ भी लिया। उनके साथ दोस्तो के भी खूब फोटो खींचे।
ये सभी मेरे खजाने में आज भी महफूज़ रखे है।

फोटो में देखिए पार्षद हाजी उस्मान पटेल जी ,
पार्षद इक़बाल खान औऱ अन्नू पटेल उर्दू स्कूल में जावेद अख्तर के साथ तशरीफ़ फरमा हैं।

ये फोटो मैंने ही क्लिक किया था। 13 साल हो गए ऐसा लगता है कल की बात हो।

✍ जावेद शाह खजराना (लेखक)

9340949476

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