राजनीतिक

कॉमन सिविल कोड या मुस्लिम मुख़ालिफ़ सिविल कोड ?

आजकल बाअज़ अपने लोग भी इधर उधर की बातें सुन कर ये सवाल करने लगे हैं कि यूनीफार्म सिविल कोड अभी आया नहीं है, कैसा होगा ये भी पता नहीं है, फिर अभी से क्यों इस मुख़ालिफ़त में हंगामा खड़ा किया जा रहा है, पहले आने दीजिए, देखते हैं क्या आता है, दूसरे मज़हब के लोग भी हैं, ख़ुद हिंदूओं में इख़तिलाफ़ है, दूसरों को आगे बढ़ने दीजिए, अभी से शोरशराबा करके सारी लड़ाई अपने सर लेने की क्या ज़रूरत है ………… ये बात सही ज़रूर है मगर मुकम्मल नहीं आधी सही है ।

पहली बात तो ये कि अभी कोई हंगामा नहीं किया जा रहा, हकूमत-ए-हिन्द के इदारे ला कमीशन ने तमाम बाशिंदगान वतन से यूनीफार्म सिविल कोड के सिलसिले में राय तलब की थी, एक ज़िम्मेदार शहरी होने के नाते अपनी राय देना हमारा फ़र्ज़ है ये बात बार-बार कही जा रही है कि अभी अवामी प्रोग्राम, जलसे, जलूस वग़ैरा से अहितराज़ किया जाये इस सिलसिले में दीगर मज़ाहिब से राबिता किया जा रहा है,………. मगर हक़ीक़त ये है कि मुस्लमानों का अपने मज़हब से जितना जज़बाती ताल्लुक़ है दूसरों का अपने मज़हब से नहीं है, ………. कुछ मज़हब ऐसे भी हैं जिनको हुकूमत हिंदू कहती है और उन्हें नौकरीयों वग़ैरा में रिज़र्वेशन फ़राहम करती है, उन लोगों के लिए मज़हब से ज़्यादा रिज़र्वेशन एहमीयत रखता है कुछ अक़ल्लीयती मज़हब ऐसे भी हैं जिनकी तादाद बहुत कम है,उन लोगों के लिए मज़हब से ज़्यादा तहफ़्फ़ुज़ एहमीयत रखता है, वो लोग सोचते हैं कि हिन्दोस्तान के हर इलाक़े में हमारे मिशन और स्कूल क़ायम हैं, इबादत गाहैं भी हैं, कहीं ऐसा ना हो कि हमारे किसी अमल की वजह से ये सारी इमलाक जिनको हमने सदीयों के मेहनत के बाद जमा किया है बर्बाद कर दी जाएं हाँ एक मज़हब ऐसा ज़रूर है जिसके लोग क़लील तादाद में होने के बावजूद अभी तक सख़्त मुख़ालिफ़त में बयान दे रहे हैं, आगे का पता नहीं? शुमाल मशरिक़ के क़बाइली इलाक़ों से भी कुछ मुख़ालिफ़त की आवाज़ें आई हैं, लेकिन पूरी उम्मीद है कि इन को कॉमन सिविल कोड से मुस्तसना कर दिया जाएगा, इस लिए भी कि उन्हें दस्तूर की दफ़ा371 की ज़मानत हासिल है

ये बात वाज़िह हो जानी चाहीए कि हम उसूली तौर पर इस मुल्क के लिए यूनीफार्म सिविल कोड को पसंद नहीं करते, यहां का दस्तूर सबको अपने मज़हब, अक़ीदे और नज़रिए पर अमल की आज़ादी देता है ये हमारा मुलक है हम किसी को अपना ये हक़ छीने की इजाज़त नहीं दे सकते, ……….. कई साल क़बल जब ला कमीशन आराम से सौ रहा था तब बी जे पी के मैंबर पार्लीमैंट अशवीनी उपाध्याए ने सुप्रीमकोर्ट में मुक़द्दमा दाख़िल करके मुतालिबा किया था कि हिन्दोस्तान में यूनीफार्म सिविल कोड नाफ़िज़ किया जाये, अशवीनी उपाध्याय ख़्वामख़्वाह सुप्रीमकोर्ट में केस करता रहता है, हैरत ये है कि अदालते आलिया भी इस को बखु़शी इजाज़त देदीती है आजकल उसने तलाक़ हुस्न, मता और निकाह मिस्यार वग़ैरा पर अलग अलग केस दायर कर रखे हैं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड बरसों से ये केस लड़ रहा है कि हिन्दोस्तान में यूनीफार्म सिविल कोड की कोई ज़रूरत नहीं है, ये मुस्लमानों के लिए नाक़ाबिल-ए-क़बूल होगा

ताज्जुब इस पर भी होता है दस्तूर के रहनुमा उसूलों की दफ़ा44 मैं यकसाँ सिविल कोड की बात की गई है, जबकि इस से पहले इन ही रहनुमा उसूलों के आग़ाज़ में कहदया गया है कि ये आपसी इत्तिफ़ाक़,इफ़हाम-ओ-तफ़हीम से ही नाफ़िज़ हो सकते हैं, ज़ोर ज़बरदस्ती और अदालती हुक्म के ज़रीये उनको नाफ़िज़ नहीं किया जा सकता,…………. इस के बावजूद अदालत के जज साहिबान अपने तबसरों में यकसाँ सिविल कोड नाफ़िज़ करने की बात करते हैं मज़ीद ताज्जुब की बात ये है कि जज साहिबान ने अब तक जिन मुक़द्दमात के ज़िमन में यकसाँ सिविल कोड की बात की है इन में शाह बानो केस के इलावा जितने भी केस हैं सब ग़ैरमुस्लिमों के हैं, इन में दोनों फ़रीक़ हिंदू थे मगरजज साहिब ने बिलावजह उन के बीच यूनीफार्म सिविल कोड घुसेड़ दिया है

दरअसल जज साहिबान हों या दीगर फ़सताई फ़िरक़ा -परस्त ये सब लोग ऐसा सिविल कोड लाना चाहते हैं जिसका नाम तो यकसाँ सिविल कोड होगा मगर हक़ीक़त में वो होगा इस्लाम मुख़ालिफ़ सिविल कोड /

आख़िर में एक दिलचस्प बात और ……… ज़ाबता फ़ौजदारी यानी क्रिमिनल कोडIPC औरCr PC भी सब के लिए यकसाँ होने के बावजूद यकसाँ नहीं है मसला मुल्क की अलग अलग रियास्तों में गाएज़बीहे के लिए अलग अलग क़ानून और अलग अलग सज़ाएं हैं इसी तरह रिज़र्वेशन के लिए भी मुख़्तलिफ़ रियास्तों में मुख़्तलिफ़ क़वानीन हैं हुकूमत पहले उन में यकसानियत ले आए फिर अगली बात करे, अदालते आलिया के जज साहिबान भी तवज्जा फ़र्मा दें हमारे वज़ीर-ए-आज़म तो पहले ही फ़र्मा चुके हैं कि एक देश में अलग अलग क़ानून क्यों ?

लेखक: महमूद अहमद ख़ां दरयाबादी

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