धार्मिक

ईद ए ग़दीर क्या है ?

जैसे ईसाई लोग हज़रत ए ईसा की पैदाइश का दिन क्रिसमस इस अक़ीदे के साथ मनाते हैं कि मआज़ल्लाह वो अल्लाह के बेटे हैं।
अब अगर कोई कहे कि मैं तो क्रिसमस हज़रत ईसा की पैदाइश की खुशी में मना रहा हूं, जैसे हुज़ूर का मिलाद मानता हूं तो उलेमा इसकी इजाज़त नहीं देंगे क्यों कि ये नाम दिया हुआ उनका है जो आपको अल्लाह का बेटा मानते हैं, और क्रिसमस के नाम से हज़रत ईसा की पैदाइश का दिन मानने पर उनसे मुशाबिहत होगी।

इसी तरह ईद ए ग़दीर भी राफ़जियो का दिया हुआ नाम है और उनका अक़ीदा है कि इस दिन हुज़ूर ﷺ ने हज़रत अली को मौला फ़रमा कर पहला खलीफ़ा बनाया, और ये अक़ीदा अहलेसुन्नत के नज़रिए के ख़िलाफ़ है। और राफ़ज़ी लोग इसी दिन हज़रत उस्मान ए ग़नी की शहादात की ख़ुशी भी मानते हैं। क्यों कि ग़दीर ए ख़ुम का वाक़िआ और हज़रत उस्मान ए ग़नी की शहादत की तारीख़ एक ही (18 ज़िल हज) है।

अल्हमदुलिल्ला हम अहले सुन्नत हज़रत अली को अपना मौला (मददगार) मानते हैं और पूरे साल मानते हैं सिर्फ़ 18 ज़िल हज के लिए ही ख़ास नहीं मानते, इसलिए हमें ज़रूरत नहीं है कि हम सहाबा के गुस्ताख़ो के तरीक़े से हज़रत अली की याद मनाएं।

अब पढ़िए कि ईद ए ग़दीर की शुरुआत कैसे हुई

ई़दे ग़दीर सुन्नियों की नहीं

आज की मुरव्वजा ‘ई़दे ग़दीर’ जिसने सबसे पहले शुरू की, उसका नाम ‘अह़मद इब्ने बुवैह’ था, जो आमतौर पर हिस्ट्री में ‘मुइ़ज़्ज़ुद् दौलह’ के नाम से मशहूर है;

ये जब बग़दाद का हाकिम बना, तब इसने 352 हि. में ये सब शीओं वाली हरकतें एलानिया तौर पर शुरू कीं;

ये शख़्स शीआ़ हुकूमत ‘दौलते बुवैहिय्यह (الدَّولَةُ البُوَيهِيَّةُ)’ का बग़दाद में बनने वाला पहला हाकिम था;

इस सल्त़नत की बुनियाद 932 ई. में ‘रुक्नुद् दौलह बुवैही’ ने रखी, और ईरान पर 932 ई. से लेकर 949 ई. तक हुकूमत की, और अपनी सल्त़नत को फैलाया. फिर आख़िरकार ये सल्त़नत 1062 ई. में ख़त्म हो गयी;

इमाम अन्दलुसी (d. 741 हि.) अपनी किताब: ‘अत् तम्हीद वल् बयान फ़ी मक़्तलिश् शहीद उ़स्मान’ में लिखते हैं:

“وقد اتخذت الرافضة اليوم الذي قتل فيه عثمان (رضي الله عنه) عيداً، وقالوا: ‘هو يوم عيد الغدير’.”۔

“और जिस दिन ह़ज़रत उ़स्माने ग़नी (रद़ियल्लाहु अ़न्हु) को शहीद किया गया, उस दिन को राफ़िज़िय्यों ने ‘ई़द’ बना लिया, और कहा: ‘ये ई़दे ग़दीर का दिन है’.”

📙अत् तम्हीद वल् बयान फ़ी मक़्तलिश् शहीद उ़स्मान
[इमाम अन्दलुसी (d. 741 हि.)], पेज न. 234, फ़स़्ल न. 8, पब्लिकेशन: दारुस् सक़ाफ़ह (क़त़र), फ़र्स्ट एडीशन, 1405 हि.

इमाम ज़हबी (d. 748 हि.) अपनी किताब: ‘अल् इ़बर फ़ी ख़बरि मन ग़बर’ में लिखते हैं:

“وفيها يوم ثامن عشر ذي الحجة، عملت الرافضة عيد الغدير، غدير خم، ودقت الكوسات، وصلوا بالصحراء صلاة العيد”۔،

“और 352 हि. में 18 ज़िल्-ह़िज्जह को राफ़िज़िय्यों ने ई़दे ग़दीर (ग़दीरे ख़ुम) मनाई, ढोल बजाये और रेगिस्तान में ई़द की नमाज़ पढ़ी.”


अल् इ़बर फ़ी ख़बरि मन ग़बर [इमाम ज़हबी (748 हि.)], जिल्द न. 2, पेज न. 90, पब्लिकेशन: दारुल् कुतुबिल् इ़ल्मिय्यह (बेरूत), फ़र्स्ट एडीशन, 1405 हि. / 1985 ई.

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