सामाजिक

बकरा ईद और ग्रामीण अर्थव्यवस्था

बकरा ईद एक ऐसा त्यौहार जिसमें पैसा, जानवर के खाने के चारे से लेकर, ट्रांसपोर्ट से लेकर, कुर्बान करने का मेहनताना तक, सब गरीब देसी तबके के लोगों के हाथ में जाता है।

बकरा बकरी पालन देश का सबसे गरीब तबका और गाँव में रहने वाला वर्ग करता है।
यह वो FD है जो हर बकरीद पे वो लोग कैश करवाते हैं।यही एक इकलौता बड़ा त्योहार है जहां पैसा बाजार की बजाय गांवों की ओर आता है।

गांवों में गरीबों के लिए भेड़ बकरियां ATM की तरह होती हैं, जिन्हें वे ज़रूरत के समय बेचकर पैसा कमा सकते हैं।बकरा ईद गरीबों की कमाई करवाता है, जिससे वो पैसा बच्चों की पढ़ाई या परिवार के किसी बीमार की दवाई का सहारा बनता है। वर्ना सब त्योहार बाजारुओं को फायदा पहुंचाते हैं।

इस त्योहार का विरोध सिर्फ वे पाखंडी लोग कर रहे हैं जो खुद 1000 तरह का पाखंड करते हैं। ऐसे लोगों को गांव, किसान, कृषि और पशुधन अर्थव्यवस्था की समझ नहीं हैं। भारत की लगभग 50% आबादी अपनी कृषि पर निर्भर है।

हर गांव में कई परिवार ऐसे होते हैं जिनकी कबीलदारी भेड़ बकरीयों से चलती है, उनके लिए आज Lottery का दिन है। बकरीद अकेला ऐसा त्यौहार है जिसका फायदा किसी कॉरपोरेट, चीनी कम्पनी या किसी MNC (मल्टीनेशनल कंपनी) को नहीं बल्कि देश के आम आदमी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलता है।

इसमें जानवर के खाने के चारे से लेकर ट्रांसपोर्ट, कुर्बान करने का मेहनताना सब देसी लोगों के हाथ में जाता है।

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