दीन के किले बनाने के नाम पर मुसलमानों के साथ क्या धोखा हुआ है।
लेख: मतीन खान
आप खुद गौर कीजिए कि आखिर इन बच्चों को दीनी मदारिस में भेज कर क्या फायदा हुआ, अगर यही सब करना होता तो इन बच्चों के मां बाप कान्वेंट स्कूलों में भेजते।
अकीदा ए इस्लामी की तरबियत के मराहिल से गुजर रहे इन मासूम सिपाहियों को देखिए , और बातिल के सामने मजबूर इस बारेश बुजुर्ग नुमा इस्लाम के लाचार कमांडर को देखिये , और गौर किजिये यह लोग क्या इन बच्चों में तौहीद और इमान की शमा रोशन करेंगे, इन नन्हे वजूदों में गैरत ए ईमानी की रूह फूंक सकेंगे, क्या इनके तरबियत याफता मुसलमान बच्चे कुफ्र व शिर्क की पुर कशिश व पुरफरेब आंधी का रुख बदल सकते हैं, उसके मुकाबले में टिक सकते हैं या, क्या इन में यह शऊर पैदा होगा कि मुकाबला ना सही खुद को ही बचा लें ?
जब यही मोलवी हज़रात योगा जैसे गैर इस्लामी अमल के लिए अहसन तावीलों से जवाज पेश करेंगे तो यह बच्चे क्या असर लेंगे, और क्या बनेंगे इनकी नज़र में इमान की क्या हैसियत होगी? ऐसा उलमा के तरबियत याफता मुस्लिम बच्चे उतना सा इमान भी गंवा देंगे जितना इमान इसके जाहिल मां बाप ने विरसे में दिया था और इनका यह थोड़ा सा इमान भी इमान बचाने के लिए काफी था।
अभी तो योगा का जवाज निकाल कर बच्चों से योगा करवा रहे हैं, कल को हालात अगर ज्यादा सख्त हुए तो ऐसे मोलवी गायत्री मंत्र और हनुमान चालीसा की फजीलतें और बरकातें बयान करने में तकल्लुफ नहीं करेंगे।