लेखक: मो सैफुल मलिक
ग़रीब नवाज़ पर तकरीरें भी खूब की गई और की जा रही हैं,ग़रीब नवाज़ की मनकबत भी खूब पढ़ी और पढ़ी जा रही हैं,ग़रीब नवाज़ का नारा भी ख़ूब लगाया और लगाया जा रहा है,
ग़रीब नवाज़ का लंगर ख़ूब पेट भर कर खाया और खाया जा रहा है,
ग़रीब नवाज़ की बारगाह में हज़ार हज़ार किलोमीटर से सफर तय करके हाज़िरी भी दी और देने जा रहे हैं,
“राजा तो मेरा ख़्वाजा है” ये लिखा भी खूब , बोला भी खूब और सुना भी खूब।
मगर इसी हिन्द में जब सरकार गरीब नवाज़ की शान में एक न्यूज़ एंकर अमीष देवगन ने गुस्ताखी की तब कितने लोगों ने अपने “हिन्द के राजा” के लिए एहतेजाज किया ? कितने लोगों ने उस बदबख़्त अमीष देवगन के खिलाफ एफआईआर FIR दर्ज करवाई ? और फिर हमारी बेग़ैरती की हद्द तो तब हो गई जब पिछले 5 सालों से ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के नाना जान मुस्तफा जाने रहमत हुज़ूर मुहम्मद मुस्तफाﷺ की शान में कसरत से गुस्ताखियां हुई है जिनका रिकॉर्ड पिछले 100 सालों में नहीं मिलता है तो हमने ग़रीब नवाज़ के नाना मुस्तफा जाने रहमतﷺ की इज़्ज़त ओ नामूस के लिए क्या किया? हम तमाशाई बने रहें? कल बरोज़ ए कयामत जब ग़रीब नवाज़ हमसे पूछेंगे की जब हिन्दुस्तान में मेरे नानाﷺ की गुस्ताखियां की जा रही थी तुम उस वक्त कहां थे? तो जवाब क्या होगा हमारे पास?
क्या यही वफ़ादारी है सरवर ए कायेनातﷺ से?
क्या यही वफ़ादारी है ग़रीब नवाज़ से?
क्या यही इश्क है ग़रीब नवाज़ से?
अगर हम वाक़ई सरकार गरीब नवाज़ के सच्चे आशिक़ होते तो जितने लोग आज उर्स ए ग़रीब नवाज़ में शामिल होने के लिए जा रहे हैं काश! इतने लोग उस वक़्त ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की इज़्ज़त पर पहरा देने के लिए सड़कों पर आ जाते तो वो गुस्ताख़ चौबीस घंटों में सलाखों के पीछे होता और सख़्त से सख़्त सज़ा का हकदार होता!
मगर हम मफाद परस्त बन चुके हैं, हमारा इश्क खोखला है और हमारे जज़बात खोखलें हैं, क्यूंकि हम एक ससती और मतलबी ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं जिसमे ना फ़िक्र की गहराई है , ना शउर है सिर्फ शोर शराबा हंगामा , ज़ाती मकसद, ज़ाती मसाइल हैं रोटी कपड़ा मकान और बीबी बच्चे हैं ना कोई मिशन(Mission) हमारे पास है ना कोई विज़न(Vision), क्यूंकी हम निहायती डरपोक किस्म की एक नस्ल में तब्दील हो चुके हैं जो सिर्फ अपने कंफर्ट ज़ोन(Comfort Zone) में रहना चाहते हैं
कब तक हम ऐसी एकतरफ़ा (One Sided) ज़िन्दगी गुज़ारते रहेंगे, आखिर एक दिन आंखें बंद हो ही जाना है!
मै बहैसियत ए हिन्द का एक मुसलमान होने के नाते सरकार ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के उर्स के मुबारक मौक़े पर शर्मिंदा हूं वो इसलिए की जब ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की गुस्ताख़ी और तौहीन हुई तो मै सिवाय एक एफआईआर FIR दर्ज करने के अलावा और कुछ ना कर सका!
फख़्र असलाफ पर करना तो है बहुत आसान
उनका दिल, उनका जिगर, उनकी नज़र पैदा कर