धार्मिक

अल्लाह व रसूल का फ़रमान और आज का मुसलमान (क़िस्त 8)

लेखक: अब्दुल्लाह रज़वी क़ादरी, मुरादाबाद यूपी भारत

प्यारे अज़ीज़ दोस्तो मुनासिब यही है के लोगों को हम नमाज़ रोज़ा हज व ज़कात और दीगर अहकामे शरिअह पर अमल करने की दावत भी देते रहें और ख़ुद भी अमल करने की कोशिश करते रहें जब हम ख़ुद अमल करेंगे और फिर दूसरों को नेकी की दावत देंगे तो इन्शा अल्लाहुर्रहमान नताइज निहायत ही उम्दा आएंगे,
जो लोगों को सिर्फ़ दीन की दावत देते हैं और ख़ुद अमल नहीं करते और ना ही गुनाहों से बचने की कोशिश करते हैं तो ऐसे लोगों के लिए हदीसे पाक में अज़ाबे इलाही की सख़्त बईद आई है चुनांचे,
हुज़ूर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि:
मेंने शबे मेराज में देखा के कुछ लोगों के होंट आग की कैंची से काटे जा रहे हैं, मेंने पूछा जिब्राईल ये कौन लोग हैं,
अर्ज़ किया:
ये आप की उम्मत के वो वाईज़ीन (मुक़र्रिर+दीन की दावत देने वाले) हैं जो लोगों को अच्छी बात का हुक्म करते थे और अपने को भूले हुए थे (अबू दाऊद)

जैसे आजकल दावते इस्लामी और सुन्नी दावते इस्लामी, के ख़ुद तो हराम काम करते हैं और दूसरों को नेकी की दावत की आड़ में लोगों को भटकाते फिरते हैं,
पहले टी वी वीडियो तस्वीर कशी को हराम बताते रहे और यह कहते रहे कि मारो शैतान को, और बहुत से टीवी तुड़वाए भी और इसी पर एक किताब भी लिखी जिसका नाम (टीवी वीडियो की तबाहकारियां) और अब वही तबाहकारियां जाइज़ बल्के बाइसे सवाब हो गईं, और वही शैतान यानी टीवी चैनल नेकियों का ज़रिया बना दिया और यह कहकर टीवी चैनल पर आए के हम इसके ज़रिए बदमज़हबो यानी वहाबी, देवबंदी, तब्लीग़ी, अहले हदीस, शिआ राफ़ज़ी वग़ैरहा फ़िर्क़ाहाए बातिला का रद्द करेंगे लेकिन ना तो आजतक उनका रद्द किया और नाही कोई किताब बदमज़हबो के रद्द में लिखी, यही हाल सुन्नी दावते इस्लामी का है, जबकि सरकार आलाहजरत रज़िअल्लाहु तआला अन्ह ने फ़रमाया कि
रद्दे बदमज़हबा फ़र्ज़े आज़म है, और यह हदीस शरीफ़ से साबित है,

रह गई रश्मे अज़ां रूहे बिलाली ना रही
फ़लसफ़ा रह गया तल्क़ीने ग़ज़ाली ना रही

अहले इल्म हज़रात से पुरज़ोर गुज़ारिश है के आप इख़्लास के साथ अपनी इस्लाह की कोशिश भी जारी रखें और दूसरों को भी नेकी की दावत देते रहें अगरचे आप अभी मुकम्मल तौर पर नेक नहीं बन सके और बुराइयों से कमा हक़्क़हु नहीं रुक सके,
मगर हर हाल में लोगों को नेकी की दावत देते रहें चुनाचे हज़रते सय्यिदुना अनस रज़िअल्लाहू तआला अन्ह कहते हैं के
हमने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह क्या हमें नेकी का उस वक़्त हुक्म करना चाहिए जब हम मुकम्मल तौर पर नेकियों पर अमल करें और बुराइयों से उस वक़्त रोकना चाहिए जब हम मुकम्मल तौर पर बुराइयों से किनारा कश हो जाएं,
हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
तुम नेकियों का हुक्म देते रहो अगरचे तुम मुकम्मल तौर पर अमल ना कर सको, तुम बुराइयों से रोकते रहो अगरचे तुम तमाम व कमाल इससे किनारा कश ना हो सके हो (मुकाशिफ़तुल क़ुलूब)

प्यारे अज़ीज़ दोस्तो कोई कितने ही बड़े ओहदे पर फ़ाइज़ हो, कितना ही बड़ा सर्मायादार हो,
गुनाहों पर उसकी हरगिज़ हरगिज़ हौसला अफज़ाई मत करो, बल्के उसकी बुराइयों को बुरा ही समझो चुनाचे
हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
मेरे बाद उमरा होंगे जिनकी बअज़ बातें अच्छी होंगी और बअज़ बुरी,
जिसने बुरी बात से कराहत की वो बरी है और जिसने इन्कार किया वो सलामत रहा, लेकिन जो (उसकी बुरी बात पर) राज़ी हुआ और पैरवी की वो हिलाक हुआ (मुस्लिम शरीफ़)

जैसे वहाबी देवबंदी अहले हदीस तब्लीग़ी शिआ राफ़ज़ी और दीगर फ़िर्क़ाहाए बातिला,, और भटकी हुई जमाअत दावते इस्लामी की कुछ बातें सही हैं और कुछ ग़लत, तो जिसने ऐसे लोगों की गुमराही वाली बातों पर अमल किया तो वो हिलाक हो जाएगा,

प्यारे अज़ीज़ दोस्तो ज़ालिम हाकिम के सामने भी हक़ बात का ऐलान करते हुए हरगिज़ ना घबराओ बल्के उसके सामने भी दो टोक बात कहो, क्योंके हुज़ूर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं:
बादशाहे ज़ालिम के पास हक़ बात बोलना अफ़ज़ल जिहाद है (इब्ने माजा)

हज़रते सय्यिदुना हसन बसरी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह कहते हैं हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
मेरी उम्मत में सबसे अफ़ज़ल शहीद वो शख़्स है जो ज़ालिम हाकिम के पास गया उसे नेकी का हुक्म दिया और बुराई से रोका और इसी वजह से उसे क़त्ल कर दिया गया, ऐसे शहीद का ठिकाना जन्नत में हज़रते हम्ज़ा और हज़रते जअ्फ़र रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा के दरम्यान होगा (मुकाशिफ़तुल क़ुलूब)

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