इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़ित या फिर शिकायतकर्ता को संज्ञेय किस्म के अपराध को वापस लेने का अधिकार नहीं है। राज्य सरकार का दायित्व है कि समाज के विरुद्ध अपराध की विवेचना कर अपराधी को दंडित कराये। कोर्ट ने कहा कि यह सरकार और अभियुक्त के बीच का मामला होता है। सरकार की कानून व्यवस्था बनाए रखने और अभियुक्त का अभियोजन करने की जिम्मेदारी होती है।
यह आदेश न्यायमूर्ति समीर जैन ने गढ़मुक्तेश्वर हापुड़ के बुंदू वह तेरह अन्य की याचिका पर दिया। याचिका में अपराधिक केस के पक्षकारों ने समझौते के आधार पर केस को रद्द करने की मांग की थी। कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।चौदह लोगों पर दो लोगों पर जानलेवा हमला करने का आरोप था। याचियों पर देशी पिस्तौल से फायर करके घायल करने का आरोप था। पुलिस की चार्जशीट पर कोर्ट ने संज्ञान भी ले लिया।इसके बाद याची इनाम और घायल दानिश ने समझौता कर लिया।इसी आधार पर धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत याचिका दायर कर केस को समाप्त करने की मांग की गई।याची का कहना था कि आपसी झगड़े में अपराध हुआ है समाज के खिलाफ अपराध नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के आधार पर केस को समाप्त किया जा सकता है किन्तु कोर्ट ने इसे नहीं माना और कहा कि हत्या की कोशिश समाज और कानून व्यवस्था को चुनौती देने वाला अपराध है जिसे समझौते से समाप्त नहीं किया जा सकता।