अक़ीक़ा– अक़ीक़ा बच्चे की पैदाईश से 7वें दिन करना सुन्नत है लेकिन अगर नहीं किया है तो उम्र भर में कभी भी कर सकता है सुन्नत अदा हो जायेगी,अक़ीक़े में लड़के के लिए 2 बकरा और लड़की के लिए 1 बकरी ज़बह करना अफज़ल है लेकिन अगर लड़के में 2 की जगह 1 कर दिया या बकरे की जगह बकरी कर दिया तब भी अक़ीक़ा हो जायेगा युंही लड़की में 1 की जगह 2 कर दिया और बकरी की जगह बकरा कर दिया तब भी अक़ीक़ा हो गया,इसी तरह बड़े जानवर में हिस्सा भी ले सकते हैं यानि लड़के के लिए 2 हिस्सा और लड़की के लिए 1 और अगर दोनों के लिए 1-1 हिस्सा ले लिया तो भी जायज़ है,तो अब अगर क़ुर्बानी के लिए बड़ा जानवर लाया और उसमे 4 हिस्से क़ुबानी के हैं और 3 हिस्से को अक़ीक़ा करना चाहता है तो कर सकता है जायज़ है बस अक़ीक़े की नियत कर लेना काफी है बाकी अक़ीक़े के लिए जो दुआ पढ़ी जाती है उसका पढ़ना कोई ज़रूरी नहीं बिस्मिल्लाह अल्लाहु अकबर पढकर जानवर ज़बह कर देना काफी है और अवाम में ये जो मशहूर है कि अक़ीक़े का गोश्त बच्चे के मां-बाप दादा-दादी नाना-नानी नहीं खा सकते महज़ बे अस्ल है ऐसा कुछ नहीं है उस गोश्त का वही हुक्म है जो क़ुर्बानी का है
ख़तना– खतना कराने की मुद्दत उल्मा ने 7 साल से 12 साल तक लिखी है मगर इससे पहले ही किसी ने करा लिया तो अच्छा किया मगर 12 साल से देर न किया जाए,और अगर 12 साल की उम्र को पहुंच गया और खतना न कराया तो अब या तो खुद करे या फिर ऐसी औरत से निकाह करे जो इसका ख़तना कर सके और ये दोनों सूरतें मुम्किन न हो तो फिर उसके लिए मुआफ है कि अब उसको खतना कराने की ज़रूरत नहीं,इसी तरह कोई काफिर मुसलमान हुआ तो भी यही हुक्म होगा जो बताया गया कि या तो खुद करे या बीवी करे और ये दोनों मुमकिन न हो तो मुआफ है
अक़ीक़ा और ख़तना दोनों काम मसरूर यानि ख़ुशी के हैं और ख़ुशी में दावत की जा सकती है लिहाज़ा दावत करने में भी हर्ज़ नहीं हां बस ख़िलाफ़े शरह काम न करे। {बहारे शरीयत,हिस्सा 15,सफह 151-155}