लेखक: मो०जबिहुल कमर “जुगनू”, नई दिल्ली
समाज के निर्माण और संचालन में यदि किसी की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है तो वह शिक्षक है, क्योंकि बच्चों को शिक्षक द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है और उनके प्रशिक्षण के माध्यम से ही वे पूरे समाज में प्रभाव डालते हैं. इस्लाम ने शिक्षक को बहुत महत्व दिया है और शिक्षक का पहला अधिकार यह है कि उसके छात्र उसका सम्मान करें, उसके साथ सम्मान, विनम्रता और अधीनता का व्यवहार करें. शिक्षक की आज्ञा माने और अपने शिक्षक का पालन करे, एक शिक्षक एक आध्यात्मिक पिता होता है, उसका अपने छात्रों पर उतना ही अधिकार होता है जितना एक पिता का अपने बच्चों पर होता है।
यदि उसके माता-पिता उसके संसार में आने के साधन हैं, तो शिक्षक उसे एक अच्छा और सम्मानजनक जीवन जीना सिखाता है. वह उसे ज्ञान के गहनों से अलंकृत करता है और उसे नैतिक रूप से प्रशिक्षित करता है. शिक्षक अपने शिष्य के व्यक्तित्व और चरित्र को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है ताकि वह समाज में एक उच्च स्थान प्राप्त कर सके. जैसे माता-पिता की दया का वर्णन नहीं किया जा सकता है वैसे ही शिक्षक की दया का वर्णन भी नहीं किया जा सकता है।
एलएनएमयू के सहायक प्रोफेसर (उर्दू) डॉ. सलमान अब्दुस समद कहते है कि अतीत के पन्ने में मुसलमानों के महान इतिहास, साहित्य की अनगिनत घटनाओं और शिक्षकों के सम्मान से भरे पड़े हैं. यहाँ हम खलीफा हारून अल-रशीद का उल्लेख करते हैं. खलीफा हारून अल-रशीद स्वयं ज्ञान के उपकारी थे और ज्ञानी लोगो को बहुत महत्व देते थे. इस काल में मुसलमानों के बौद्धिक विकास में जबरदस्त वृद्धि हुई. खलीफा हारून अल-रशीद अपने शिक्षक के जूते मस्जिद से बाहर ले जाते थे, जब वह एक छात्र थे, जबकि उन्होंने अपने बेटे अमीन को प्रसिद्ध विद्वान इमाम इस्माई के पास विज्ञान और साहित्य में प्रशिक्षण के लिए भेजा था. कुछ दिनों बाद, खलीफा अपने शाहिबजादे के शिक्षा और प्रशिक्षण की समीक्षा करने के लिए अघोषित रूप से वहां पहुंचे. उसने देखा कि इमाम इस्माई वुज़ू करते हुए अपने पैर धो रहे हैं और राजकुमार अमीन पानी डाल रहा था. यह देखकर खलीफा बहुत क्रोधित हो गए और इमाम इस्माई से कहा, “हजरत, मैंने उसे ज्ञान और साहित्य सीखने के लिए आपके पास भेजा है. आप इसे एक हाथ से पानी डालने व दूसरे हाथ से पैर धोने का आदेश देना चाहिए था।”
उन्होंने कहा कि एक हदीश में आया है कि हज़रत इमाम अबू हनीफ़ा कहते हैं, “हर नमाज़ के बाद, मैं अपने शिक्षक और अपने पिता के लिए क्षमा की प्रार्थना करता हूँ. मैंने अपने आदरणीय शिक्षक के घर में कभी पैर नहीं रखा, भले ही मेरे घर और उनके घर के बीच सात गलियों की दूरी ही क्यों ना हो. हर उस व्यक्ति की क्षमा के लिए प्रार्थना करना मेरा फर्ज है जिससे मैंने कुछ सीखा है या जिसने मुझे ज्ञान दिया।”
बुद्धिजीवी मो सुलतान रहमानी कहते है कि भारत में यह केवल 5 सितंबर को ही मनाया जाता है. इस्लाम में इस तरह की कोई भी दिवस मनाने का रिवाज नही है. यूं कहे तो शिक्षक ज्ञान का स्रोत है. राष्ट्रों के निर्माण और विकास में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण है मानवता के निर्माण और विकास में शिक्षकों की भूमिका को कोई नकारा नहीं सकता है।
मो सुलतान रहमानी आगे कहते है कि शिक्षक शुरू से ही शिक्षा व्यवस्था में सबसे आगे रहे है. वह अपने छात्रों को प्रशिक्षित करने में आनंद लेते है क्योंकि एक माली हमेशा अपने पौधों की देखभाल करता है. शिक्षा एक ऐसा पेशा है जिनका न केवल इस्लाम में बल्कि दुनिया के हर धर्म और समाज में प्रमुख स्थान है. लेकिन यह एक सार्वभौमिक तथ्य है कि ज्ञान की दुनिया ने शिक्षक के वास्तविक मूल्य को कभी प्रकट नहीं किया है, जैसे इस्लाम ने मनुष्य को शिक्षक की उच्च स्थिति से अवगत कराया है. इस्लाम ने शिक्षक को बहुत सम्मान दिया है. अल्लाह ताआला ने कुरान में पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की वर्णन किया है. उन्होंने सांसारिक सम्मान और उच्चतम डिग्री प्राप्त की है. इस्लाम में शिक्षक का दर्जा बहुत ऊंचा है. इस्लाम ने शिक्षक को आध्यात्मिक पिता का दर्जा दिया है।
अब आपके मन में यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि भारत में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है जबकि विश्व 5 अक्टूबर को ही मनाती है? बता दें कि भारत के महान विद्वान, राजनीतिक, धार्मिक और वैज्ञानिक व्यक्ति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जन्म तिथि 5 सितंबर को ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाई जाती है. वे भारत में एक शिक्षक के रूप में जाने जाते थे. वे भारत गणराज्य के पहले उपराष्ट्रपति चुने गए और फिर गणतंत्र के दूसरे उपराष्ट्रपति बने. वे कई विश्वविद्यालयों के कुलपति भी रहे. महान धार्मिक, विद्वान और राजनीतिक व्यक्तित्व और हमेशा शिक्षा, संस्कृति, सभ्यता और संस्कृति के मामले में भारत को एक महान भारत बनाने के बारे में सोचा, इसलिए सरकार ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ श्रद्धांजलि अर्पित की कि उनकी जन्मतिथि पूरे भारत में मनाई जाती है. इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है जो एक लोकतांत्रिक देश की पहचान में से एक है।
जबकि दुनिया में हर साल 5 अक्टूबर को ही शिक्षक दिवस मनाया जाता है. शिक्षकों के अधिकारों और जिम्मेदारियों को पहचानने और विश्व के शिक्षकों की प्रशंसा, मूल्यांकन और सुधार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए यह दिन मनाया जाता है।
बता दे कि संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने 1994 में 5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस के रूप में घोषित किया. यह दिन शिक्षकों की स्थिति से संबंधित 1966 आईएलओ / यूनेस्को की सिफारिश को अपनाने की वर्षगांठ का प्रतीक है. इसे पेरिस में आईएलओ के सहयोग से यूनेस्को द्वारा आयोजित एक विशेष अंतर-सरकारी सम्मेलन में अपनाया गया था।
“यह सिफारिश शिक्षकों के अधिकारों और जिम्मेदारियों के साथ-साथ आगे की शिक्षा, भर्ती, रोजगार, शिक्षण और सीखने के लिए उनकी प्रारंभिक तैयारी और शर्तों के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों को निर्धारित करती है।”