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“बल्ली की होटल” में राहत साहब की दावत

पुराने इंदौर का एक अदबी किस्सा है।वफ़ा नाम की शायरा थी। मुशायरे में बहुत कम शिरकत करती थी लेकिन आकाशवाणी लखनऊ में इनकी आवाज अक्सर सुनाई देती। इनके कई शेर बहुत मकबूल हैं। मुलाहिजा फरमाए ” मैने ये सोच के बोये नहीं ख्वाबों के दरख़्त,कौन जंगल में लगे पेड़ को पानी देगा। “ एक मर्तबा […]