गोरखपुर। मुकद्दस रमज़ान के पहले जुमा की नमाज़ दोपहर 12:30 से 2:30 बजे तक शहर की छोटी-बड़ी तमाम मस्जिदों में अदा की गई। अमनो सलामती की दुआ मांगी गई। पूरा दिन अल्लाह की इबादत में गुजरा। फ़र्ज़ नमाज़ों के साथ कसरत से नफ्ल नमाज़ अदा की गई। मुकद्दस क़ुरआन की तिलावत हुई। तस्बीह व जिक्र हुआ। पूरा जुमा अल्लाह को राज़ी करने में गुजरा।
सुबह रोज़ेदारों ने सहरी खायी। मर्दों ने मस्जिदों में तो औरतों ने घरों में फज्र की नमाज़ अदा की। इसके बाद क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत की गई। इसके बाद कुछ आराम करने के बाद हफ्ते की ईद यानी जुमा के नमाज़ की तैयारी शुरु हो गई। लोगों ने गुस्ल किया। साफ कपड़े पहने। खुशबू लगाई। टोपी पहनी। जुमा की अज़ान शुरु होते ही मस्जिदें नमाज़ियों से भरने लगी। इसके बाद नमाज़ियों ने सुन्नत नमाज़ अदा की। इमाम ने तकरीर पेश की। रोज़े के फजाइल बयान किए। मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने कहा कि रोज़ेदार खुशनसीब है। जिसके लिए हर रोज़ जन्नत सजाई जाती है। रोज़ेदार की मग़फिरत के लिए दरिया की मछलियां दुआ करती हैं। रोज़ा सिर्फ भूखे रहने का नाम नहीं है बल्कि नफ्स पर नियंत्रण का जरिया है। असल रोज़ा तो वह है जिससे अल्लाह राज़ी हो जाए। जब हाथ उठे तो भलाई के लिए। कान सुने तो अच्छी बातें। कदम बढ़े तो नेक काम करने के लिए। आंख देखे तो जायज चीज़ों को। रमज़ान का अदबो एहतराम बेहद ज़रूरी है। उन्होंने बताया कि सदका-ए-फित्र ग़रीबों, यतीमों व बेसहारा मुसलमानों को दिया जाता है। जितनी जल्दी आप सदका-ए-फित्र निकालेंगे उतने जल्दी ही वह ग़रीबों के लिए फायदामंद होगा।
नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना मो. असलम रज़वी ने कहा कि रोज़ा सिर्फ खाने और पीने से दूर रहने का नाम नहीं, रोज़ा तो यह है कि बेहूदा बातों से बचा रहे। झूट, चुगली, गीबत, गाली देने व किसी को तकलीफ देने से बचें। यह चीजें वैसे भी नाजायज व हराम हैं।
गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर में मौलाना मोहम्मद अहमद निज़ामी ने अल्लाह की इनायतों, रहमतों और बख़्शिश का तज्किरा किया। कहा कि अल्लाह रमज़ान में हर रोज दस लाख गुनाहगारों को जहन्नम से आज़ाद फरमाता है। अल्लाह फरिश्तों से फरमाता है ऐ गिरोहे मलाइका! उस मजदूर का क्या बदला है जिसने काम पूरा कर लिया? फरिश्तें अर्ज करते हैं उसको पूरा-पूरा अज्र दिया जाए। अल्लाह फरमाता है मैं तुम्हें गवाह करता हूं कि मैंने इन सबको बख़्श दिया।
तकरीर के बाद मस्जिदों के इमामों ने मिम्बर पर खड़े होकर अल्लाह की हम्दो सना बयान की। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दरूदो सलाम पेश किया। खुलफा-ए-राशिदीन हज़रत अबू बक्र, हज़रत उमर, हज़रत उस्मान, हज़रत अली व अहले बैत का जिक्र किया। इसके बाद पाक रमज़ान के फजाइल बयान किए। जुमा की नमाज़ अदा की गई। इमाम के साथ सभी ने अल्लाह की बारगाह में दुआ के लिए हाथ उठाए। इमाम की दुआ पर सभी ने आमीन की सदाएं बुलंद की। इसके बाद सभी ने सुन्नत नमाज़ अदा की। मिलकर सलातो सलाम पढ़ा गया। लोगों ने एक दूसरे से मुसाफा किया। घरों में औरतों ने मुसल्ला बिछाया और नमाज़ अदा की, क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत की। मर्दों ने भी घर आकर तिलावत व तस्बीह की। इसके बाद इफ्तारी की तैयारी शुरू हो गई। शाम को अस्र की नमाज़ पढ़ी गई। लज़ीज़ पकवान व शर्बत से दस्तरख़्वान सज गए। इफ्तार का इंतजार शुरु हुआ। मस्जिद का डंका जैसे ही बजा। सबने अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए रोज़ा खोला। रोजा खोलने के बाद मस्जिदों का रुख किया। मग़रिब की नमाज़ अदा की। फिर थोड़ा चाय नाश्ता किया। इसके बाद एशा व तरावीह की नमाज़ अदा की। हफ्ते की ईद व छठवां रोजा मुसलमानों ने अल्लाह की रज़ा में गुजारा।