जीवन चरित्र

लफ़्ज़ों के जादूगर जावेद अख़्तर

✍️जावेद शाह खजराना

आमतौर पर आपने फिल्मों में हीरो-हीरोइनों की तीसरी-चौथी पीढ़ियों के बारे में ही सुना होगा। लेकिन बहुत कम लोग जानते है कि हिंदी फिल्म दुनिया में ‘अख्तर/खैराबादी खानदान भी मौजूद है जिनकी चौथी पीढ़ी फिल्मों दुनिया में लगातार सक्रिय है।

जी हाँ दोस्तों #जावेदअख़्तर के वालिद जाँ निसार अख़्तर
जिन्होंने #गुरुदत्त की सी0आई0डी0 फ़िल्म के ‘आंखों की आंखों में इशारा हो गया’ से लेकर #कमालअमरोही की रज़िया सुल्ताना के ‘ए दिले नादान’ तक के मशहूर गीत लिखे।

जाँ निसार अख़्तर के वालिद यानी जावेद अख़्तर के दादाजी मुज़तर खैराबादी की लिखी एक नामचीन नज़्म को 1960 में रिलीज़ हुई #लालकिला फ़िल्म में उनके नाम सहित इज्जत से नवाजा गया था।

जिसके बोल है- ना किसी की आंख का नूर हूँ’
इस नज़्म को मोहम्मद #रफी ने अपनी दर्दभरी आवाज़ में ढाला था।

दरअसल जावेद अख़्तर के दादा #मुज़तर उत्तरप्रदेश के खैराबाद के रहने वाले थे। इसलिए खैराबादी लगाते थे।
बाद में मुज़तर साहब #इंदौर में रहे फिर #ग्वालियर जा बसे। जहाँ जाँ-निसार अख्तर फिर जावेद अख्तर पैदा हुए इसलिए इन्होंने खैराबादी की जगह अख़्तर तख़ल्लुस रख लिया जो #फ़रहान_अख़्तर तक जारी-ओ-शारी है।

मुज़तर_खैराबादी फिर जाँ निसार अख्तर उनके बाद जावेद अख्तर और चौथी पीढ़ी में फ़रहान अख्तर ने ‘ब्राइड एंड प्रेजुडिन्स’ नामक #हॉलीवुड फिल्म में गीत लिखकर इस परंपरा को आगे बढ़ाया है।

दोस्तों आज 17 जनवरी को लफ़्ज़ों के जादूगर जावेद अख्तर की साल गिराह है। 1945 में ग्वालियर में जन्मे जावेद का बचपन का नाम जादू’ था। जो उनके दादाजी मुज़तर खैराबादी की एक नज़्म
‘लम्हा-लम्हा किसी जादू का फ़साना होगा’
के जादू से लिया गया। बाद में स्कूल में भर्ती के दौरान जादू से मिलता-जुलता नाम जावेद रखा गया।

इस तरह #नादिरा जादू बड़े होकर लफ़्ज़ों के जादूगर बन गए।
वैसे इनके बाप-दादा , परदादा-लकड़दादा सभी नामचीन लेखक थे। कुलमिलाकर 200 साल से सारा खानदान लेखकों से भरा पड़ा हैं।

जैसे 1857 की #क्रांति में इनके दादा के दादा #फ़ज़लहक़खैराबादी ने जंगे #आज़ादी में #फतवा जारी किया था। जिसमें अंग्रेजों के खिलाफ मुसलमानों को हथियार उठाने की इजाजत दी गई थी। नतीजन उन्हें कालापानी की सजा हुई जहाँ कैद में ही उनका इंतकाल हो गया। 1857 की जंगे आज़ादी का #इतिहास भी इन्होंने लिखा है।
गौरतलब है कि फ़ज़ल हक़ साहब मुगलों के धार्मिक सलाहकार और मुफ़्ती थे। इन्हें #अल्लामा यानि #सूफ़ी का दर्जा हासिल है।

मुज़तर खैराबादी के वालिद #अब्दुल_हक़ खैराबादी वल्द फ़ज़ल हक़ खैराबादी ने ‘मदरसा खैराबाद’ की नींव डाली जो आज सारे हिन्द में रोशन हैं।

फ़ज़ल खैराबादी के पोते मुज़तर खैराबादी इंदौर में #तुकोजीराव होल्कर महाराज के #इतिहासकार थे। इंदौर की गफूर खां की #बजरिया में मरने के पहले 1927 तक रहे। आख़री वक़्त में ग्वालियर जा बसे।

जाँ निसार अख़्तर आज़ादी के बाद ग्वालियर से भोपाल जा बसे । #भोपाल में बीवी बच्चों को छोड़कर फिल्मों की चाह में बम्बई जा पहुंचे।

कुछ अर्से बाद इनकी बीवी #सफ़ियाअख़्तर भोपाल में अल्लाह को प्यारी हो गई। मासूम जावेद कभी नाना तो कभी मामू (शायर #मज़ाज़) के यहाँ पले-बड़े। जाँ-निसार ने #ख़दीजा_तलत से दूसरी शादी कर ली। सौतेली माँ से जावेद की कभी नहीं पटी। लिहाज़ा अलग हो गए।

जावेद की लिखने की शुरुआत #लखनऊ में हो गई थी।
जावेद बचपन से ही दमदार लिखते थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि स्कूल के समय लोग उनसे लव लेटर लिखवाने आया करते थे।

वक्त गुज़रा।
महज़ 19 बरस की उम्र में जावेद फिल्मों में किस्मत आजमाने बम्बई पहुंचे। उस समय जाँ -निसार अख़्तर फिल्मों में सक्रिय थे लेकिन खुद्दार जावेद ने बाप का साथ गंवारा नहीं किया।

संघर्ष के दिनों में उन्हें पेड़ के नीचे तक सोना पड़ा था।
ये 4 अक्टूबर 1964 की बात है। कभी पेड़ के नीचे , कभी सड़क किनारे तो कभी #कमाल_स्टूडियो में डेरा डालने वाले संघर्षरत जावेद को फिल्मों में क्लैपर ब्वॉय तक का काम करना पड़ा।

फिल्म ‘सरहदी लुटेरा’ की शूटिंग के दौरान उनकी मुलाकात सलमान खान के वालिद #सलीम_खान से हुई। कुछ ही दिनों में दोनों काफी अच्छे दोस्त बन गए।

उनसे मुलाकात के बाद जावेद भोपाल के #कैफी_आजमी के असिस्टेंट बन गए। जावेद अख़्तर और कैफ़ी आज़मी भोपाल से थे लिहाज़ा उन्होंने इंदौर के सलीम साहब को अपना हमवतन समझा। इन्‍हीं के सपोर्ट से सलीम-जावेद की जोड़ी बनी और फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ की दमदार स्क्रिप्ट लिखी गई।

सलीम-जावेद की पटकथा लेखक के तौर पर पहली फिल्म अंदाज में मुख्य भूमिका #राजेश खन्ना ने निभायी थी। इस जोड़ी ने हिन्दी सिनेमा को 24 फिल्में दीं जिनमें जंजीर, दीवार, डॉन, शक्ति, सीता और गीता, शोले, क्रांति और मिस्टर इंडिया समेत कुल 20 फिल्में हिट रहीं।
सलीम-जावेद की जोड़ी भी चल पड़ी।

जावेद अख्तर उर्दू में शायरी किया करते थे और यश चोपड़ा उनकी कविताएं सुन चुके थे। जावेद के वालिद जाँ निसार अख़्तर की काबलियत से भी सभी वाकिफ़ थे।
सो चोपड़ा ने अख्तर को सिलसिला के गीत लिखने के लिए कहा।

सिलसिला से शुरू हुआ गीत लिखने का शानदार सिलसिला आज तक जारी है।

58 साल के इस लंबे फिल्मी सफ़र में जावेद साहब ने कई टेढ़ी-मेढ़ी सड़कें, कई रोलर कोस्टर और उतार-चढ़ाव पार किए हैं।
जावेद जी की फिल्मी और असल जिंदगी की जोड़ियां भी बनी और टूटी । बिलआखीर कामयाबी का पलड़ा जावेद पक्ष में भारी रहा।

जावेद अख्तर की पहली बीवी हनी ईरानी भी लेखिका है।
सीता और गीता फ़िल्म की शूटिंग के दरमियान हनी ईरानी से जावेद जी की मुलाकात हुई। दोनों में नजदीकियां बढ़ी। शर्त लगी अगर फ़िल्म हिट हुई तो दोनों शादी कर लेंगे। फ़िल्म सुपरहिट हुई। दोनों ने शादी कर ली। उस समय ईरानी की उम्र करीब 17 साल थी। इत्तिफ़ाक़ से हनी ईरानी का जन्मदिन भी 17 जनवरी को ही है। अख्तर और ईरानी से दो बच्चे फरहान अख्तर और जोया अख्तर हुए।

दोनों 1978 में अलग हो गये। 1985 में दोनों ने तलाक ले लिया। जावेद अख्तर ने कैफ़ी आज़मी साहब की साहबजादी शबाना आजमी से सन 1984 में दूसरी शादी कर ली।

जावेद साहब आज भी सक्रिय है।
इनके बेटे फ़रहान अख्तर और बेटी ज़ोया अख़्तर नामी फ़िल्म निर्देशक हैं।

लेकिन यहाँ तक पहुंचने के लिए जावेद अख़्तर जैसी शख़्सियत जिनके दादा-परदादा मुगलों-होल्करों के मुलाज़िम थे कड़ा संघर्ष करना पड़ा।

जावेद अख्तर को पटकथा लेखक और गीतकार के तौर पर एक दर्जन से ज्यादा फिल्म फेयर पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्हें उनकी कविता संग्रह “लावा” के लिए उर्दू का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है।

12 फरवरी सन 2010 बरोज़ जुमा मैंने जावेद अख़्तर साहब को खजराना में करीब से देखा और सुना था। उनका ऑटोग्राफ , फोटोग्राफ और इंदौर के उस यादगार सफ़र को कैमरे में कैद कर लिया था।
ये तमाम यादें मेरे पास महफूज़ है।

मेरे सलीम चाचा ने मेरे पैदा होने के बाद मेरा नाम जावेद रखा और कहा कि सलीम-जावेद की तरह हम चाचा-भतीजे की जोड़ी भी मशहूर रहेगी।

ख़ैर अल्लाह को कुछ और ही मंजूर था ।
मेरे सलीम चाचा भी उस वक्त चल बसे जब सलीम जावेद की जोड़ी टूटी।

आज जावेद अख़्तर साहब का 77वां जन्मदिन है।
हमारे भोपाल और इंदौर की शान जावेद अख़्तर साहब को जन्मदिन की बहुत-बहुत मुबारकबाद।
अल्लाह उन्हें सेहतमंद और खुशमिज़ाज़ रखे।
यही दुआ है।

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