लेखक: जावेद शाह खजराना
दोस्तों आज मैं आपकी ख़िदमत में ऐसी जानकारी लेकर आया हूँ जिसकी मालूमात सिर्फ चुनिंदा लोगों को है। लिहाजा गौर से पढ़ियेगा ।
वैसे तो ख्वाजा गरीब नवाज के आस्ताने के सामने 1 दिन का बादशाह निज़ाम सक्का भी दफ़्न है तो दूसरी तरफ मांडव के सुल्तान ग्यासुद्दीन ख़िलजी भी आराम फरमा रहे है जिन्होंने ख्वाज़ा की दरगाह की तामीर करवाई थी।
बेगमी दालान में शाहजहाँ की बेटी दफ़्न है
तो दूसरी तरफ बच्चा पैदा करने वाले हिजड़े की मज़ार भी यहाँ मौजूद है। वल्लाह दरगाह की चारों तरफ सूफी-संत और बेशुमार ख़ादिम भी दफ़्न हैं। कौन नहीं चाहेंगा सुल्तान-ए-हिंद के करीब दफ़्न होना?
ऐसी ही अनोखी वसीयत करने वाले शख्स थे।
महान क्रांतिकारी अर्जुन लाल सेठी जो बाद में करीम खान बन गए।
ये कहानी है जयपुर में जन्मे महान क्रांतिकारी अर्जुन लाल सेठीजी की । जिन्होंने आख़री वक्त में इस्लाम कुबूल करके अपना ठिकाना गरीब नवाज के आस्ताने को बना लिया था। इनकी मज़ार ख्वाजा गरीब नवाज के आस्ताने के ठीक पीछे बाबा फरीद के चिल्ले के सामने थी। जिसके निशान अब मिट चुके है।
इंदौर के कल्याणमल महाविद्यालय के प्रोफेसर रहे अर्जुन लाल सेठी की कहानी बड़ी दिलचस्प औऱ इबरत से भरी हुई है। आपने राजस्थान में आज़ादी का बिगुल बजाया। राजस्थान के सिरमौर यानि सबसे पहले क्रांतिकारी थे।
सेठीजी ने अपना आखरी वक्त गरीब नवाज की चौखट पर गुमनामी मे बसर किया।
आगे जानिएगा कि हिंदुस्तान को आज़ाद कराने वाला एक महान क्रांतिकारी कैसे जैन से मुसलमान बन गया?
बात उन दिनों की है जब हिंदुस्तान में महात्मा गाँधी नहीं बल्कि बाल गंगाधर तिलक और राजस्थान के क्रांतिकारी अर्जुन लाल सेठी की तूती बोलती थी। क्रांति का ही जमाना था।
राजस्थान में कहावत चल पड़ी थी।
अंग्रेजों में लार्ड कर्जन
जैनियों में अर्जन ,,,,, ऐसा दबदबा था सेठीजी का।
अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले गाँधीजी तो तब इंडिया में आए भी नहीं थे। ✔️
1905 में लार्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन करवा दिया नतीजन देशभर में स्वदेशी आंदोलन चलाया गया।
सेठीजी ने भी उसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
1907 में सूरत में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ।
हिंसा-अहिंसा को लेकर नेताओं में मतभेद बढ़ गया । सेठीजी भी मौजूद थे। नतीजन यही पर नरम दल और गरम दल में नेता बंट गए। वैसे तो सेठीजी गरम दल के नेता थे , लेकिन उनकी कद्र नरम दल वाले भी बराबर करते थे।
1857 की क्रांति की तर्ज पर 1915 में देशभर में सशत्र आंदोलन चलाने की गुप्त योजना बनाई गई ।
राजस्थान में इस मिशन की जिम्मेदारी अर्जुन लाल सेठी को सौपी गई।
इसके बाद शुरू हुआ सेठीजी का असली मिशन।
आपने सन 1907 में अजमेर में ‘जैन शिक्षा प्रचार समिति’ नामक स्कूल खोला । जिसकी आड़ में क्रांतिकारी तैयार किए जाते थे। ये क्रांतिकारियों के मदरसे थे। जहाँ देश को आज़ाद करवाने के लिए आज़ादी के दीवाने तैयार किए जाने लगे। ताकि अंग्रेज सरकार भृमित हो जाए।
इन स्कूलों में शिक्षा के साथ बम बनाने से लेकर उसे चलाने तक की ट्रेनिंग दी जाती थी।
1911 में कलकत्ता से राजधानी दिल्ली लाई गई।
इस खुशी में जलसों की शुरुआत होने लगी।
बेतहाशा सरकारी खजाने लुटाएं जा रहे थे।
वायसराय लॉर्ड हॉर्डिंग्स ने भी लालकिले के सामने चांदनी चौक में हाथी पर बैठकर जुलूस निकालकर शेख़ी बघारी। सेठीजी ने लार्ड हॉर्डिंग्स को मारने की प्लानिंग की।
जुलूस के दौरान अचानक उसके ऊपर बम गिरा।
महावत वही ढ़ेर हो गया। लॉर्ड हॉर्डिंग्स घायल हुआ।
बम फेंकने वालों की धरपकड़ शुरू हुई।
रासबिहारी बोस और जोरावर सिंह भाग निकले।
दिल्ली के ‘जैन स्कूल’ के डरपोक टीचर अमीरचंद ने अंग्रेजों का सरकारी गवाह बनने के बाद मुख़बरी में बताया कि इस बम कांड का मास्टरमाइंड अर्जुन लाल सेठी है।
ख़ैर सुबूत के बिना पर सेठीजी बच गए।
वैसे बम फेंकने वाले जोरावर बारहठ और उनका भतीजा प्रताप सिंह बारहठ दोनों सेठीजी के ही चेले थे।
अगले बरस जब क्रांतिकारीयों को पैसे की जरूरत पड़ी।
तब सेठीजी ने उन्हें आरा जिले के निमाज नगर भेजा। जहां के जैन संत के पास बहुत माल था।
यहां भी जोरावर सिंह मौजूद थे। हाय-बाप में संत की हत्या हो गई और हाथ भी कुछ नहीं लगा।
पूछताछ करते-करते पुलिस इंदौर पहुँच गई।
उन दिनों अर्जुन लाल सेठी जी का गढ़ इंदौर का कल्याणमल महाविद्यालय था। यही के स्टूडेंट आरा कांड निपटाने गए थे। सेठीजी के साथी शिव नारायण जो कि इंदौर के कल्याणमल कालेज में साथी प्रोफेसर थे। अंग्रेजों के मुखबिर बन गए। उन्होंने सेठीजी को फंसवा दिया। नतीजन सेठीजी इंदौर में गिरफ़्तार कर लिए गए।
इंदौर जेल में बंद सेठी जी को जयपुर ले जाया गया।
जयपुर के महाराजा ने भी अंग्रेजों से बोलकर इन्हें वेल्लूर जेल भिजवा दिया।
7 साल बाद आपकी रिहाई हुई।
आपने इंदौर जाने का इरादा किया।
वैल्लूर से जब इनकी ट्रेन महाराष्ट्र के पुना रेलवे स्टेशन पहुंची तब वहां हजारों क्रांतिकारियों को लेकर बाल गंगाधर तिलक वहां पहुंच गए। सेठीजी का ऐतिहासिक स्वागत हुआ। उन्होंने सेठीजी को कहा – हमारा महाराष्ट्र आपके मुबारक कदमों से धन्य हो गया ।
जब ट्रेन गुजरात के बरदोली पहुँची ।
वहां सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी शानदार इस्तकबाल किया। ऐसा स्वागत आज तक किसी क्रांतिकारी का नहीं हुआ जैसा सेठीजी का जगह-जगह हुआ था।
इंदौर में तो इतिहास रच गया।
जब कल्याणमल महाविद्यालय के उत्साहित छात्रों ने अपने लाडले गुरु को बग्गी में बैठाकर घोड़ों की जगह खुद को जोत लिया और सारे शहर में उनके जुलूस को कांधों-हाथों से खींचते हुए जोरशोर से निकाला।
सारे इंडिया के जैन समाज ने अपने हीरो को सर आंखों पर बैठा लिया। ऐसा था सेठीजी का रुतबा।
इंदौर के बाद सन 1920 के करीब आपने अपना आखरी मुकाम अजमेर में बनाया। शुरुआत में आप मदारगेट के करीब रहते थे।
काकोरी कांड में फ़रार अशफाकउल्ला खां को आपने ही शरण दी। जयपुर फिर अजमेर में उन्हें कुछ दिन छिपाया।
दौर बदल चुका था।
महात्मा गांधी का सूरज चढ़ रहा था।
फिर भी बहुत खुशी की बात है कि महात्मा गांधी ने सिर्फ अर्जुन सेठी से मिलने के लिए अपनी एक गुप्त अजमेर यात्रा की थी। जिसके बारे में आज़ादी के बाद बताया गया।
सेठीजी से मिलकर गाँधीजी उनसे राजनीतिक दांवपेंचों पर चर्चा करते थे।
महात्मा गांधी ने इसके बाद अजमेर का 3 मर्तबा सफर किया और अर्जुन लाल सेठी से मिलने खुद उनके मदारगेट स्थित घर पहुंचे। ख्वाज़ा गरीब नवाज की दरगाह की जियारत भी की।
एक वक्त ऐसा भी आया जब इस महान क्रांतिकारी और बेजोड़ शख्शियत का दिल धर्म और दुनिया से उठ गया। आपने भाईचारे की मिसाल पेश करते हुए फ़कीरी अख्तियार कर ली। गुमनामी में दरगाह पर डेरा जमा लिया।
अर्जुन लाल सेठी जिनके नाम का डंका बजता था पाई-पाई को मोहताज़ होने लगे। उनकी आर्थिक स्थिति खराब होने लगी। नतीजन मदारगेट से घर बदलकर आपने अपना क़याम ख्वाज़ा गरीब नवाज की दरगाह पर कर लिया। यही से क्रांतिकारियों से मिला करते।
सेठीजी ने अपना नाम बदलकर करीम खान रख लिया।
आपने जयपुर से फारसी में बी0ए0 किए था।
अरबी और उर्दू के साथ हिंदी पर भी मजबूत पकड़ थी लिहाजा खुद्दार सेठीजी उर्फ करीम खान दरगाह के मदरसे में रहकर बच्चों को फारसी और अरबी पढ़ाने लग गए। इन्होंने 2 ग्रँथ और 3 नाटक भी लिखे।
आपने अजमेर में चुनाव भी लड़ा था।
1934 में मध्यभारत और मेवाड़ प्रांत के कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे। अजमेर में उन्हें सब जानते-पहचानते थे।
लिहाज़ा देश और इस्लाम की खिदमत करते-करते राजस्थान के सबसे पहले क्रांतिकारी ने 23 दिसंबर 1941 को गरीब नवाज की दरगाह पर दम तोड़ दिया।
मुस्लिम भाईयों ने आपको ग़ुस्ल देकर ख्वाजा गरीब नवाज के आस्ताने के पीछे सहन में दफ़्न कर दिया।
देश की आज़ादी के बाद प्रधानमंत्री नेहरू जी अपने नवासों संजय गांधी और राजीव गांधी की उंगलियां थामे इस महान क्रांतिकारी की मज़ार पर फूल पेश करने दरगाह शरीफ पर तशरीफ़ लाए थे।
1975 में अजमेर में भयंकर बाढ़ आई।
इंदिरा गाँधी जब दरगाह पहुंची तब वो भी अर्जुन लाल सेठी उर्फ़ करीम खान की पानी में डूबी मज़ार की ज़ियारत करने पहुंची थी।
वक्त की बेरहम मार ने धीरे धीरे उनकी मजार की निशानीयां मिटा दी। जहां उनकी मज़ार थी वहां संगमरमर की फर्श बिछा दी गई और इस महान क्रांतिकारी की आखरी निशानी भी वक्त के साथ मिट गई।
हज़ारों-लाखों लोग रोज़ाना दरगाह पर हाज़री देने जाते है। आप भी कई बार गए होंगे। लेकिन आपने शायद ही ठोकरों में पड़ी उन गुमनाम क़ब्रों की निशानियों पर गौर किया होगा जिसके अंदर महान आत्माएं चिरनिंद्रा में सो रही है।
जिस शख्स ने कभी जयपुर के महाराज के प्रधानमंत्री के पद को ये कहकर ठुकरा दिया था कि अगर सेठी चाकरी करेगा तो भारत माँ को आज़ादी कौन दिलाएगा।
देश के लिए मर मिटने वाला प्रधानमंत्री जैसे पद को ठोकर मारने वाला गुमनाम-सा महान सपूत ठोकरों में ना जाने कहाँ पड़ा है।
सलाम हो सेठीजी पर।
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