धार्मिक

हजरत मखदूम अशरफ जहांगीर समनानी रहमतुललाहअलेह

हजरत मखदूम अशरफ जहांगीर समनानी रहमतुललाहअलेह जब युपी पहुँचे तब देखा वहा कुफ्रियत फैली हुवी थी एक गाव पहुचे और खाना मांग ने के लिए एक बूढीया के घर पहुचे देखा बुढीया जारो कतार रो रही थी आपने रोने की वजह पूछी बुढिया ने कहा यहा पर हमारे भगवान की पचास फुट ऊंची मूर्ति है जिसे साल में एक बार एक इन्सान की बली दी जाती है आज वो दिन है और मेरे आखरी बेटे की बारी है हजरत मखदूम अशरफ ने फरमाया माई मै भी तुम्हारे बेटे जैसा हु मै तुम्हारे बेटे की जगह जाऊगा और जाने के लिए बैल गाड़ी में चादर ओढ़ कर बैठ गये एक मैदान में खूब भीड़ जमा थी करीब पचास हजार लोग और उनका पुजारी उन्हें कुछ बता रहा था तभी बैल गाड़ी वहा आई पुजारी बोला रुक जाओ
तुम बुढिया के लडके नही हो
तो तुम कौन हो और तुम्हरा नाम क्या है?
हजरत मखदूम अशरफ ने फरमाया तुम मेरी बली ले सकते होतो ले लो पर तुम्हारा खुदा मेरी बली अपने हात से ले पुजारी बोला तुम कोंन हो और अपना नाम बताओ
हजरत मखदुम अशरफ ने फरमाया मै कौन हूं ये तुम्हारा खुदा ही बतायेगा और फरमाया ए बुत बता मै कौन हूँ बेसाखता बुत बोल पढ़ा
आप हजरत तरिकुल सल्तनत अमीर कबीर सैय्यद मखदूम अशरफ है आप समनान से आए है आप का दीन इस्लाम है और आप अल्लाह के मुकदस वली है और ए लोगो सुन लो लाईलाहा इल्ललाह मुहम्मदूर रसूल अल्लाह और मै भी दाखिले इस्लाम हो चुका हूँ
ये देख कर पचास हजार लोग ईमान ले आए और दाखिले इस्लाम हुवे और आप ने अल्लाह से दुवा की उस बुत को जुबान तो दी अल्लाह अब उसे इन्सान बना दे दुवा कुबूल हुवी
और बुत इन्सान बन गया और आपसे मुरीद हुवा और उसीने किला फतह किया . जिसमे आपका मज़ार शरीफ है !
आपका उर्स मुबारक 28 मुहर्रम को मनाया जाता हैं

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