- ‘I LOVE MOHAMMAD’ नई परंपरा नहीं, मुसलमानों का ईमान है
- धारा 25 का उल्लंघन: धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला, बर्दाश्त नहीं
- मोहब्बते रसूल जताना अगर जुर्म है, तो हम इस जुर्म पर गर्व करेंगे
- मुसलमान मोहब्बते रसूल में अपनी जान तक क़ुर्बान कर सकता है
- निर्दोष नौजवानों पर दर्ज केस तुरंत वापस हों — ग़ौसे आज़म फाउंडेशन
गोरखपुर।
ग़ौसे आज़म फाउंडेशन के चेयरमैन व चीफ़ क़ाज़ी हज़रत मौलाना सूफ़ी सैफुल्लाह क़ादरी साहब ने कानपुर की घटना पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ईद-मिलादुन्नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के जुलूस में नौजवानों द्वारा लगाया गया “I LOVE MOHAMMAD” का बैनर किसी नई परंपरा का हिस्सा नहीं, बल्कि मुसलमानों की रूह और ईमान का इज़हार है।
उन्होंने कहा कि मोहब्बते रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम, हर मुसलमान की सांसों में बसी हुई है। अगर इसे जुर्म क़रार दिया जाता है तो यह सीधे तौर पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है, जो हर नागरिक को धार्मिक आस्था और उसकी अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है। मोहब्बत जताना कभी अपराध नहीं हो सकता।
हज़रत सूफ़ी सैफुल्लाह क़ादरी साहब ने सवाल उठाया कि आखिर कौन-सा क़ानून कहता है कि मोहब्बते रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम जताना प्रतिबंधित है? क्या सरकार और प्रशासन अब यह तय करेंगे कि मुसलमान अपने नबी से कितना और किस अंदाज़ में मोहब्बत करें? अगर “I LOVE MOHAMMAD” लिखना अपराध है, तो हम इस अपराध को अपने सीने पर गर्व की तरह सजाएँगे और इसकी हर सज़ा मंज़ूर करेंगे।
उन्होंने चेतावनी दी कि निर्दोष नौजवानों पर दर्ज यह केस तुरंत वापस लिया जाए, वरना भारतीय मुसलमान, लोकतांत्रिक और क़ानूनी तरीक़े से एक बड़ा आंदोलन खड़ा करेगा।
अंत में सूफ़ी सैफुल्लाह क़ादरी साहब ने कहा:
“मुसलमानों का शेवा मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से वफ़ा करना है और इस वफ़ा को कोई ताक़त रोक नहीं सकती।”