सुल्तान मुराद(प्रथम) का दौर सल्तनत-ए-उस्मानिया के लिए कई मायने में बहुत अहम साबित हुआ था। उन्होंने ही एड्रियानोपल शहर को फ़तेह किया था और इसका नाम बदलकर एड्रिन रख दिया था। जो कुस्तुन्तुनिया फ़तेह होने से पहले तक सल्तनत का दारुलहकूमत बना रहा। उन्होंने बलकान के ज़्यादातर इलाकों को सल्तनत में मिलकर जुनूबी यूरोप (South Europe) में सल्तनत की सरहदों को काफी फैलाया था।
उनके ही दौर-ए-हुकूमत में सन 1371 ई. में महज 800 के उस्मानी लश्कर ने 70,000 के सर्बियन लश्कर को शिकस्त से दोचार किया था। यूरोपी रियासतों के लिए ये शिकस्त उनके मौत का पैगाम थी। इस शिकस्त के बाद यूरोपी ईसाई अपने सारे इख्तेलाफ़ात को भुला कर इकट्ठे हो गए। वेटिकन में बैठे पोप ने भी उस्मानियों के खिलाफ ईसाइयों को एकजुट करने की मुहिम छेड़ दी। पोप की इस तैयारी का मतलब था, ईसाइयों और मुसलमानों में एक और सलेबी जंग का आगाज, लेकिन इस जंग की कयादत के लिए उनके पास कोई लीडर मौजूद नहीं था। लेकिन तलाश करने पर उन्हें वो लीडर मिल गया। उनका वो लीडर था सर्बिया की टूटी हुयी रियासत का एक शहजादा जिसे आज दुनिया प्रिंस लाजार के नाम से जानती है।
उसने उस्मानियों को जज़िया देना बंद कर दिया जो की वो 1371 में जंगे मैरिटसा के बाद से देते आ रहे थे इतना ही नहीं उसने एक छोटी सी झड़प में उस्मानी फौज को शिकस्त भी दे डाली। उसकी ये हिम्मत देखकर यूरोपी ईसाइयों के हौसले बुलंद हो गए। इसी दौरान बलकान के इलाके में ही बोस्निया ने भी सल्तनत-ए-उस्मानिया के खिलाफ बगावत कर दी, और उस्मानी तुर्कों के एक फौजी दस्ते को शिकस्त दे डाली। इस वाक़्ये के बाद प्रिंस लाजार के झंडे तले सभी यूरोपी रियासतें एक जुट हो कर उस्मानियों के मुकाबले पर उतर आयीं।
15 जून 1389 को यूरोप के केचनिक शहर में 1,00,000 ईसाइयों के लश्कर का सामना 60,000 की उस्मानी फौज से हुआ। यूरोप में उस्मानियों और ईसाइयों दोनों ही के लिए ये एक फैसलाकुन जंग थी। जंग अपने ओरुज पर थी तभी दोनों तरफ के सालार मैदाने जंग में ही क़त्ल कर दिए गए। दोनों सालारों के बेटों ने अपनी-अपनी फौज की कमान संभाल ली। प्रिंस लाजार की मौत ने कहीं न कहीं ईसाइयों के बुलंद हौसले को पस्त कर दिया था लिहाजा उनका लश्कर मैदाने जंग से पीछे हटने लगा। कोसोवो की जंग में उस्मानियों की फतह ने बलकान के इलाके में उनकी हुक्मरानी को मजबूती से कायम कर दिया।
सुल्तान मुराद के क़त्ल पर सोर्सेज अलग-अलग मौजूद हैं। मगरिबी सोर्सेज के मुताबिक सुल्तान मुराद मैदाने जंग में क़त्ल किये गए थे जबकि उस्मानी मुअर्रेख़ीन के मुताबिक फतह दरअसल सुल्तान मुराद की कयादत में हुयी थी। फतह के फ़ौरन बाद उनका क़त्ल एक सर्बियन हत्त्यारे ने कर दिया था जिसका नाम मिलोस ओबिलिक था।
सुल्तान मुराद को उस्मानी तुर्कों की तारीख में पहली बार सुल्तान का लक़ब इख़्तेयार करने के लिए भी जाना जाता है। उससे पहले ओरहान ग़ाज़ी और उस्मान ग़ाज़ी ने बे का लक़ब इख्तियार किया था। मशहूर जेनेसरीज़ फौज भी सुल्तान मुराद ने ही बनायीं थी।