इमाम ग़ज़ाली व काज़ी अयाज़ को किया याद
गोरखपुर। सब्ज़पोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाजार में जुमेरात को हुज्जतुल इस्लाम हज़रत सैयदना इमाम ग़ज़ाली शाफई अलैहिर्रहमां व हज़रत काज़ी अयाज़ मालिकी अलैहिर्रहमां का उर्स-ए-पाक अकीदत से मनाया गया। कुरआन ख्वानी, फातिहा ख्वानी व दुआ ख्वानी की गई।
मस्जिद के इमाम व खतीब हाफिज़ रहमत अली निज़ामी ने कहा कि इमाम ग़ज़ाली 5वीं सदी हिजरी के मुजद्दिद हैं। आप दुनिया के उन मशहूर व्यक्तियों में से एक हैं, जिनकी योग्यता और इल्म का लोहा आपके जीवन काल में ही सबने मान लिया था। इमाम ग़ज़ाली अन्य विद्वानों की तरह किसी एक विद्या के नहीं, बल्कि एक ही साथ कई विद्याओं के ज्ञाता थे। वे विद्वान् भी थे और दार्शनिक भी, सूफ़ी भी थे और धर्म मीमांसक भी, मुतकल्लिम (वाद-विद्यानुयायी) भी थे और विचारक भी। परन्तु इमाम ग़ज़ाली का बड़प्पन इस बात में है कि आप पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सच्चाई की खोज में सारे विश्व का चक्कर लगाया, कठिनाईयाँ झेलीं और उस समय की समस्त विद्याओं और शिक्षाओं का नये सिरे से अध्ययन किया तथा अन्त में उस सच्चाई को प्राप्त करने में सफल हुए, जिसकी तलाश के लिए उन्होंने अध्यापन कार्य छोड़ा और अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।
उन्होंने बताया कि इमाम ग़ज़ाली, का नाम मुहम्मद बिन मुहम्मद अहमद तूसी ग़ज़ाली है। आपकी कुन्नियत अबू हामिद और लक़ब हुज्जतुल इस्लाम है। आपकी पैदाइश 450 हिजरी जिला तूस खुरासान में हुई। आपने अहया-उल-उलूम, जवाहिरुल कुरआन, मिश्कातुल अनवार, अल मुंक़ज़ मिनद दलाल, अल मुस्तसफा, कीमिया-ए-सआदत, मुकाशिफ़तुल क़ुलूब, मिनहाजुल आबिदीन सहित सैकड़ों किताबें लिखीं। जिसे पूरी दुनिया में पढ़ा जाता है। आपका इंतकाल 14 जमादी-उल-आख़िर 505 हिजरी तूस में हुआ। आपके मजार पर लाखों अकीदतमंद हाजिर होकर फैज पाते हैं।
हज़रत काज़ी अयाज़ मालिकी अलैहिर्रहमां की जिंदगी व उनकी मशहूर किताब ‘शिफा शरीफ’ और अज़ीम कारनामों पर भी रोशनी डाली गई। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमन, शांति व तरक्की की दुआ मांगी गई। उर्स में हाफिज़ आमिर हुसैन निज़ामी, अब्दुल कय्यूम, हाफिज़ जीलानी, हाफिज़ मो. मुजम्मिल रज़ा, जैद अहमद, मो. रुशान, रहमत अली अंसारी आदि मौजूद रहे