गोरखपुर

माह-ए-मुर्हरम के चांद के साथ होगा 1444 हिजरी का आगाज

गोरखपुर। इस्लामी कैलेंडर का पहला माह मुहर्रम है। माहे मुहर्रम का चांद निकलने के साथ 30 या 31 जुलाई से 1444 हिजरी का आगाज होगा। इसी के साथ नया इस्लामी साल शुरु होगा। हिजरी सन् का आगाज इसी माह से होता है। यौमे आशूरा यानी दसवीं मुहर्रम 8 या 9 अगस्त को पड़ेगी।

हाफिज रहमत अली निजामी ने बताया कि मुहर्रम की पहली तारीख को मुसलमानों के दूसरे खलीफा अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना उमर रदियल्लाहु अन्हु की शहादत हुई। माहे मुहर्रम को इस्लामी इतिहास की सबसे दुखद घटना के लिए याद किया जाता है। इसी महीने में यजीद नाम के एक जालिम बादशाह ने पैगंबर-ए-आज़म हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के प्यारे नवासे हज़रत सैयदना इमाम हुसैन रदियल्लाहु अन्हु व उनके साथियों को कर्बला के मैदान में शहीद कर दिया था।

माहे मुहर्रम शुरू होते ही प्रमुख मस्जिदों व घरों में कर्बला के शहीदों की याद में महफिल व मजलिस शुरु होगी। इमामबाड़ा इस्टेट मियां बाज़ार में रंगरोगन का काम जारी है। यहां से 5, 9 व 10 मुहर्रम को शाही जुलूस निकाले जाने की परंपरा है। इमामबाड़ा इस्टेट में मेला भी लगता है। जिसकी तैयारी जारी है। अबकी बार सोने चांदी की ताजिया भी दिखाई जाएगी। इसके अलावा जिले के विभिन्न मोहल्लों में स्थित इमाम चौकों से भी जुलूस निकाला जाता है। जिसमें मुस्लिम समुदाय के नौजवान करतब दिखाते हैं। कोरोना महामारी के करीब दो साल बाद मुहर्रम अपनी शानो शौकत के साथ मनाया जाएगा। मुस्लिम मोहल्लों में ताजिया बनाई जा रही है। देश विदेश की मस्जिदों व दरगाहों का अक्स ताजियों में नज़र आएगा।

मुफ्ती मो. अजहर शम्सी (नायब काजी) ने कहा कि माहे मुहर्रम दीन-ए-इस्लाम के मुबारक महीनों में से एक है। इस माह में रोजा रखने की खास अहमियत है। विभिन्न हदीसों व अमल से मुहर्रम की पवित्रता व इसकी अहमियत का पता चलता है। मुहर्रम के दसों दिन खुसूसन आशूरा (दसवीं मुहर्रम) के दिन महफिल या मजलिस करना और सही रवायतों के साथ हज़रत सैयदना इमाम हुसैन व कर्बला के शहीदों फजाइल और कर्बला का वाकया बयान करना जायज व बाइसे सवाब है। जिस मजलिस में सालिहीन का जिक्र होता है वहां रहमत बरसती है। दसवीं मुहर्रम को फातिहा-नियाज करना, पानी व शर्बत का स्टॉल लगाना, मिस्कीन मोहताजों को खाना खिलाना, परेशान लोगों की परेशानी को दूर करना सवाब का काम है। नौवीं व दसवीं मुहर्रम का रोजा रखना अफ़ज़ल है। शरीअत के दायरे में रहकर ही कोई काम करें। कुरआन ख्वानी, फातिहा ख्वानी व दुआ ख्वानी करें। पौधा रोपण करें। अमनो अमान कायम रखने में प्रशासन की मदद करें।

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