गोरखपुर मसाइल-ए-दीनीया

हैज आने से रोज़ा फासिद हो जाएगा: उलमा-ए-किराम

गोरखपुर। उलमा-ए-अहले सुन्नत द्वारा जारी रमज़ान हेल्पलाइन नंबरों पर शनिवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा। लोगों ने ईद, नमाज़, रोज़ा, जकात, फित्रा आदि के बारे में सवाल किए। उलमा-ए-किराम ने क़ुरआन व हदीस की रोशनी में जवाब दिया। इन नम्बरों पर आप भी सवाल कर जवाब हासिल कर सकते हैं 9956971232, 8604887862, 9598348521, 73880 95737, 82493 33347, 8896678117, 8563077292, 9956049501, 9956971041, 77549 59739, 9555591541

  1. ईद की नमाज़ मस्जिद में पढ़ना कैसा है? (सरवत, बख्तियार)
    जवाब : ईद व बकरीद की नमाज़ वाजिब है और उसके लिए खुले मैदान में निकलकर अदा करना सुन्नत है, बगैर किसी उज्र के ईद की नमाज़ मस्जिद में पढ़ना खिलाफे सुन्नत है। अलबत्ता किसी उज्र की वजह से ईदगाह या खुले मैदान में नमाज़ पढ़ना मुश्किल हो तो मस्जिद में पढ़ना जायज है। (मुफ्ती अख़्तर हुसैन मन्नानी)
  2. सवाल : नमाज़े चाश्त कितनी रकात है? (शहनवाज़, क्लेक्ट्रेट)
    जवाब : चाश्त की नमाज़ मुस्तहब है। कम से कम दो और ज्यादा से ज्यादा बारह रकात है। हुजूर अलैहिस्सलाम ने फरमाया जो चाश्त की दो रकातों की मुहाफजत करे उसके गुनाह बख़्श दिए जाएंगे, अगरचे समंदर के झाग के बराबर हो। (मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी)
  3. सवाल : रोज़े की हालत में अगर हैज (महवारी) आ जाए तो उसके लिए क्या हुक्म है? (इमरान, जाफ़रा बाज़ार)
    जवाब : रोज़े की हालत में अगर मगरिब से पहले पहले किसी भी वक्त औरत को हैज आ जाए तो उसकी वजह से रोज़ा फासिद हो जाएगा और पाक होने के बाद उस रोजे की कज़ा रखना लाज़िम है। (मुफ्ती मो. अजहर शम्सी)

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