गोरखुर। मुकद्दस रमज़ान का 23वां रोज़ा अल्लाह के बंदों ने सब्र व शुक्र के साथ गुजारा। तल्ख धूप व गर्मी रोज़ेदारों के हौसलों के आगे पस्त है। बड़़े तो बड़े बच्चे भी रोज़ा रखकर इबादत में मशरूफ हैं। मस्जिदें नमाज़ियों से आबाद हैं। घर पर भी इबादत का दौर जारी है। नमाज़ों के साथ क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हो रही है। दरूदो सलाम पढ़ा जा रहा है। शाम को दस्तरख़्वान पर तमाम तरह की खाने, शर्बत रोज़ेदारों का इस्तकबाल करते नज़र आ रहे हैं। हदीस शरीफ के मुताबिक रोज़ेदार के लिए दरिया की मछलियां भी दुआ करती हैं। सहरी व इफ्तारी के वक्त नूरानी शमां चारों तरफ नज़र आ रहा है। रेती पर देर रात तक होटल गुलज़ार नज़र आ रहे हैं। मस्जिदों में एतिकाफ की इबादत जारी है। रोज़ेदारों के चेहरे पर तकवा व परेहजगारी का नूर चमक रहा है।
सुब्हानिया जामा मस्जिद तकिया कवलदह में जारी रमज़ान के 23वें दर्स के दौरान मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी ने बताया कि रोज़े में अल्लाह का खौफ, उसकी वफादारी, इताअत, मोहब्बत तथा सब्र का जज़्बा हमें इंसानियत और इंसानी दर्द को पहचानने की सीख देता है। अल्लाह के पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जो शख़्स झूठ और गुनाह के काम न छोड़े, अल्लाह तआला को कोई जरूरत नहीं कि वह अपना खाना-पीना छोड़े। रोज़े का सामाजिक महत्व भी है। यह समाज के खुशहाल तबके के लोगों को ग़रीबों की परेशानी का अनुभव कराता है। रमज़ान के महीने में कसरत से नफ्ल नमाज़ पढ़ना, क़ुरआन की तिलावत करना, अल्लाह की हम्द बयान करना, दरूदो सलाम पढ़ने में मशगूल रहना, फिर दिनभर रोज़ा रखने के बाद रोज़ा इफ्तार करना, रोज़ेदार की नफ्स परस्ती वाली शख्सियत को मिटाकर उसमें इंसानियत को भर देती है।
क़ुरआन जिस महीने में नाज़िल हुआ, वह रमज़ान का महीना था। यही वह मुकद्दस किताब है, जिसे क़यामत तक अल्लाह की हिफाज़त हासिल है, जो इंसानों को अपनी मंजिल जन्नत तक पहुंचने का रास्ता दिखाती है।
गौसिया जामा मस्जिद छोटे क़ाज़ीपुर में मौलाना मोहम्मद अहमद निज़ामी ने बताया कि अल्लाह ने क़ुरआन में रोज़े का हुक्म दिया और पूरे दिन रोज़ेदार क़ुरआन में बताए रास्ते पर चलने को लालायित रहता है। दिनभर रोज़ा रखकर रोज़ेदार को जो ख़ुशी होती है, उससे बड़ी ख़ुशी वह आख़िरत में अल्लाह से रोज़े के बदले अब्दी ईनाम को पाकर महसूस करेगा। उन्होंने कहा कि मुसलमान सदका-ए-फित्र व जकात जल्द अदा कर दें ताकि जरूरतमंद अपनी जरूरतें पूरी कर लें। जकात दीन-ए-इस्लाम का अहम फरीजा है। यह ग़रीबों, मिस्कीनों, यतीमों का हक़ है। लिहाजा जल्द उन तक रकम पहुंच जायेगी तो उनकी ज़रूरतें पूरी हो जायेंगी। रमज़ान का माह इंसानियत का पैग़ाम देता है।
नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना मोहम्मद असलम रज़वी ने कहा कि रमज़ान का तीसरा अशरा जहन्नम से निजात का है। इस अशरे में अल्लाह की इबादत करने वालों को जहन्नम की आग से मुक्ति मिलती है। रमज़ान हमें बताता है कि हर किसी के साथ मिलकर रहें, बुराइयों से बचें। सिर्फ भूखे न रहें, हर नफ्स का रोज़ा रखें। मतलब एक इंसान को इंसानियत के राह पर ले जाने वाला होता है रमज़ान।