गोरखपुर। शहर की मस्जिदों में चल रहे रमज़ान के विशेष दर्स के दौरान मंगलवार को पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पहली बीवी उम्मुल मोमिनीन (मोमिनों की मां) हज़रत खदीजा तुल कुबरा रदियल्लाहु अन्हा की ज़िंदगी पर रोशनी डाली गई। उनका यौमे विसाल (निधन) दस रमज़ान को हुआ था। सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाज़ार में हाफ़िज़ रहमत अली निज़ामी ने कहा कि हज़रत खदीजा बहुत बुलंद किरदार, आबिदा और जाहिदा महिला थीं। अपने व्यापार से हुई कमाई को हज़रत खदीजा ग़रीब, अनाथ, विधवा और बीमारों में बांटा करतीं थीं। गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर में मौलाना मोहम्मद अहमद निज़ामी ने कहा कि हज़रत खदीजा ने अनगिनत ग़रीब लड़कियों की शादी का खर्च भी उठाया और इस तरह एक बेहद नेक और सबकी मदद करने वाली महिला के रूप में दीन-ए-इस्लाम ही नहीं पूरे विश्व के इतिहास में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। हज़रत खदीजा गरीब मिस्कीनों की मिसाली इमदाद (मदद) की। मस्जिद खादिम हुसैन तिवारीपुर में कारी अफ़ज़ल बरकाती ने कहा कि हज़रत खदीजा का मक्का शरीफ में कपड़े का बहुत बड़ा व्यापार था। उनका कारोबार कई दूसरे मुल्कों तक होता था। मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने कहा कि हज़रत खदीजा की बताई तालीमात पर अमल करके दुनिया की तमाम महिलाएं दीन व दुनिया दोनों संवार सकती हैं।
मौलाना बदरे आलम निज़ामी ने बताया कि पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी तिजारत किया करते थे। एक रिवायत के मुताबिक हज़रत खदीजा के एक रिश्तेदार ने तिजारत में पैग़ंबर-ए-आज़म से कांट्रेक्ट की सलाह दी। हज़रत खदीजा ने सलाह मान ली और पैग़ंबर-ए-आज़म से तिजारती कांट्रेक्ट हो गया। पैग़ंबर-ए-आज़म ने कारोबार की बागडोर संभाली तो मुनाफा बहुत बढ़ गया। नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना मो. असलम रज़वी ने कहा कि हज़रत खदीजा ने हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अख्लाक, किरदार, मेहनत, लगन और ईमानदारी से प्रभावित होकर निकाह का पैग़ाम भेजा, जिसे उन्होंने कुबूल कर लिया। उस वक्त पैग़ंबर-ए-आज़म हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र 25 साल जबकि हज़रत खदीजा की उम्र चालीस साल थी। वह बेवा (विधवा) थीं। इस तरह हज़रत खदीजा हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की पहली बीवी बनीं। चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में हाफ़िज़ महमूद रज़ा क़ादरी ने बताया कि पैग़ंबर-ए-आज़म ने जब ऐलान-ए-नुबूवत किया तो महिलाओं में सबसे पहले ईमान लाने वाली महिला हज़रत खदीजा थीं। खातून-ए-जन्नत हज़रत फातिमा ज़हरा उन्हीं की बेटी हैं।