अल्लाह अज़्जा व जल्ल फ़रमाता है:

तर्जमा—– ऐ ईमान वालो तुम पर रोज़ा फ़र्ज़ किया गया जैसा उन पर फ़र्ज़ हुआ था जो तुमसे पहले हुए ताके तुम गुनाहों से बचो चंद दिनों का फिर तुम मैं जो कोई बीमार हो या सफर में हो वो और दिनों में गिनती पूरी कर ले, और जो ताकत नहीं रखते वो फिदया दें एक मिस्कीन का खाना फिर जो ज़्यादा भलाई करे तो ये उसके लिए बेहतर है और रोज़ा रखना तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम जानते हो माहे रमज़ान जिसमें क़ुरान उतारा गया लोगों की हिदायत को और हिदायत और हक़ व बातिल मैं जुदाई बयान करने के लिए तो तुम मैं जो कोई ये महीना पाए तो उसका रोज़ा रखे और जो बीमार या सफ़र में हो वो दूसरे दिनों में गिनती पूरी कर ले अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी का इरादा करता है सख़्ती का इरादा नहीं फ़रमाया और तुम्हें चाहिए के गिनती पूरी करो और अल्लाह की बड़ाई बोलो के उसने तुम्हें हिदायत की और इस उम्मीद पर के उसके शुक्रगुज़ार हो जाओ, और ऐ महबूब जब मेरे बंदे तुमसे मेरे बारे में सुवाल करें तो मैं नज़दीक हूं दुआ करने वाले की दुआ सुनता हूं जब वो मुझे पुकारे तो उन्हें चाहिए के मेरी बात क़ुबूल करें और मुझ पर ईमान लाएं इस उम्मीद पर के राह पाए, तुम्हारे लिए रोज़ा की रात में औरतों से जिमा हलाल किया गया वो तुम्हारे लिए लिबास हैं और तुम उनके लिए लिबास, अल्लाह को मालूम है के तुम अपनी जानों पर ख़यानत करते हो तो तुम्हारी तौबा क़ुबूल की और तुमसे माफ फ़रमाया तो अब उनसे जिमा करो और उसे चाहो जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिखा और खाओ और पिओ उस वक़्त तक के फ़जर का सपेद डोरा सियाह डोरे से मुमताज़ हो जाए फिर रात तक रोज़ा पूरा करो, और उनसे जिमा न करो उस हाल में के तुम मस्जिदों में मुअतकिफ़ हो ये अल्लाह की हदें हैं उनके क़रीब न जाओ अल्लाह अपनी निशानियां यूहीं बयान फ़रमाता है के कहीं वो बचें।
📚 कंज़ुल ईमान, पारा 2 सूरह बक़र आयत 183—187)
रोज़ा बहुत उम्दा इबादत है इसकी फ़ज़ीलत में बहुत हदीसें आईं उनमें से कुछ बयान की जाती हैं;
हदीस शरीफ़
सही बुखारी व सही मुस्लिम में अबू हुरैरह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं
जब रमज़ान आता है आसमान के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं, एक रिवायत में है जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं, एक रिवायत में है के रहमत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और जहन्नम के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं और शयातीन ज़ंजीरों में जकड़ दिए जाते हैं, और इमाम अहमद व तिर्मिज़ी, व इब्ने माजा की रिवायत में है जब माहे रमज़ान की पहली रात होती है तो शयातीन और सरकश जिन्न क़ैद कर लिए जाते हैं और जहन्नम के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं तो उनमें से कोई दरवाज़ा खोला नहीं जाता और जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं तो उनमें से कोई दरवाज़ा बंद नहीं किया जाता और मुनादी पुकारता है;
ऐ ख़ैर (भलाई) तलब करने वाले मुतवज्जह हो और ऐ शर (बुराई) के चाहने वाले बाज़ रह और कुछ लोग जहन्नम से आज़ाद होते हैं और ये हर रात में होता है।
इमाम अहमद व निसाई की रिवायत उन्हीं से है कि
हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
रमज़ान आया ये बरकत का महीना है अल्लाह तआला ने इसके रोज़े तुम पर फ़र्ज़ किये इसमें आसमान के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और दोज़ख़ के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं और सरकश शैतानों के तौक़ डाल दिए जाते हैं और इसमें एक रात ऐसी है जो हज़ार महीनों से बेहतर है जो उसकी भलाई से महरूम रहा वो बेशक महरूम है।
📚 पुराना ऐडीसन, बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफ़ह 89–ता–92)
📚 नया तख़रीज़ शुदा ऐडीसन, बहारे शरीअत हिस्सा 5 सफ़ह 960—962)
लेखक: मुफ़्ती मुहम्मद ज़ुल्फ़ुक़ार ख़ान नईमी
अब्दुल्लाह रज़वी क़ादरी, मुरादाबाद यू पी इंडिया