गोरखपुर। मुकद्दस रमज़ान का पांचवां रोज़ा अल्लाह की इबादत में गुजरा। रोज़ेदारों के उत्साह के आगे धूप पस्त है। मस्जिदें नमाज़ियों से भरी हुई हैं। तरावीह की नमाज़ जारी है। बाज़ार में चहल-पहल है। दिन की अपेक्षा रात खुशगवार है। इफ्तारी की दावतें शुरू हो चुकी हैं। हर तरफ मुकद्दस क़ुरआन पढ़ा जा रहा है। आख़िरी पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, उनके घर वालों व उनके साथियों पर दरूदो सलाम पेश किया जा रहा है। घरों में औरतों की जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं। इफ्तार व सहरी में दस्तरख़्वान बेहतरीन खाद्य पदार्थों से सजा नज़र आ रहा है। इफ्तार के समय मोहल्ले के बच्चे व बड़े मस्जिद में इकट्ठे हो जा रहे हैं और घरों से आने वाली इफ्तारी को जमा कर रहे हैं और मिट्टी व प्लास्टिक के बर्तन में मिलकर इफ्तार कर रहे हैं। शहर की तकरीबन हर मस्जिद में रमज़ान के तीसों दिन रोज़ेदार या मुसाफिर रोज़ा खोल सकते है। रहमत का अशरा जारी है। दस रमज़ान मुकम्मल होने के बाद मग़फिरत का अशरा शुरु होगा।
दीन-ए-इस्लाम में ज़कात फ़र्ज़ है
गुरुवार को रमज़ान के विशेष दर्स के पांचवें दिन चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में हाफ़िज़ महमूद रज़ा क़ादरी ने बताया कि दीन-ए-इस्लाम में ज़कात फ़र्ज़ है। ज़कात पर मजलूमों, ग़रीबों, यतीमों, बेवाओं का हक़ है। इसे जल्द से जल्द हक़दारों तक पहुंचा दें ताकि वह रमज़ान व ईद की खुशियों में शामिल हो सकें। जकात फ़र्ज़ होने की चंद शर्तें है – मुसलमान अक्ल वाला हो, बालिग हो, माल बकदरे निसाब (मात्रा) का पूरे तौर का मालिक हो। मात्रा का जरूरी माल से ज्यादा होना और किसी के बकाया से फारिग होना, माले तिजारत (बिजनेस) या सोना चांदी होना और माल पर पूरा साल गुजरना जरूरी है। सोना-चांदी के निसाब (मात्रा) में सोना की मात्रा साढ़े सात तोला है जिसमें चालीसवां हिस्सा यानी सवा दो माशा ज़कात फ़र्ज़ है। चांदी की मात्रा साढ़े बावन तोला है। सोना-चांदी के बजाए बाज़ार भाव से उनकी कीमत लगा कर रुपया वगैरा देना जायज है। जिस आदमी के पास साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना या उसकी कीमत का माले तिजारत है और यह रकम उसकी हाजते असलिया से अधिक हो। ऐसे मुसलमान पर चालीसवां हिस्सा यानी सौ रुपये में ढ़ाई रुपया ज़कात निकालना जरूरी है। सोना-चांदी के जेवरात पर भी ज़कात वाजिब होती है। तिजारती (बिजनेस) माल की कीमत लगाई जाए फिर उससे सोना-चांदी का निसाब (मात्रा) पूरा हो तो उसके हिसाब से ज़कात निकाली जाए। अगर सोना चांदी न हो और न माले तिजारत हो तो कम से कम इतने रुपये हों कि बाज़ार में साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना खरीदा जा सके तो उन रुपयों की ज़कात वाजिब होती है।
नूरी मस्जिद तुर्कमान में मौलाना असलम रज़वी ने बताया कि अगर आप मालिक-ए-निसाब हैं, तो हक़दार को ज़कात ज़रूर दें, क्योंकि ज़कात न देने पर सख़्त अज़ाब का बयान मुकद्दस क़ुरआन में आया है। ज़कात हलाल और जायज़ तरीक़े से कमाए हुए माल में से दी जाए।
गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर में दर्स के दौरान मौलाना मोहम्मद अहमद निजामी ने बताया कि ज़कात का इंकार करने वाला काफिर और अदा न करने वाला फासिक और अदायगी में देर करने वाला गुनाहगार है। मुसलमानों को चाहिए कि जल्द से जल्द ज़कात की रकम निकाल कर हक़दारों को दे दें।