लेखक: नौशाद अहमद ज़ैब रज़वी
आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि 70000 कल्मा शरीफ पढ़कर अगर मुर्दे को बख्शा जाए तो दोनों के लिए ज़रियये निजात होगा,और पढ़ने वाले को दुगना सवाब और 2 को बख्शा तो तिगना युंही करोड़ो बल्कि कुल मोमेनीन मोमेनात को बख्शा तो उसी निस्बत से पढ़ने वाले को सवाब मिलेगा,आगे फरमाते हैं कि हज़रत शेख अकबर मुहिउद्दीन इब्ने अरबी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु एक जगह दावत में तशरीफ ले गए वहां एक लड़के को देखा जो अचानक खाना खाते खाते रोने लगा,आपने सबब पूछा तो कहने लगा कि मेरी मां का इंतेक़ाल हो गया है और मैं देखता हूं कि फरिश्ते मेरी मां को जहन्नम की तरफ लिए जा रहे हैं,शहर में इस लड़के का कश्फ मशहूर था,हज़रत के पास 70000 कल्मा तय्यबह (لا إله إلا الله محمد رسول الله ﷺ) पढ़ा हुआ था आपने दिल ही दिल में बिना उसे बताये उसकी मां को बख्श दिया,अब क्या देखते हैं कि वो जवान खुश हो गया फिर आपने उससे पूछा कि अब क्या हुआ तो वो कहता है कि अब मैं देखता हूं कि फरिश्ते मेरी मां को जन्नत की तरफ लिए जा रहे हैं,हज़रत शेख अकबर मुहिउद्दीन इब्ने अरबी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि आज दो बातें साबित हो गई पहली तो इसके मुक़ाशिफा की इस हदीस से और दूसरी इस हदीस की सेहत इसके मुक़ाशिफा से। (अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 72)